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ग्रन्थसम
ग्रन्थसम-द्रव्य निक्षेपका एक भेद दे० निक्षेप /५/८ ।
( एक ग्रह - दे० प्रह ।
ग्रन्थिग्रन्थिम
द्रव्य निक्षेपका एक भेद - दे० निक्षेप /५/६ । ग्रह -- १. अठालो ग्रहोंका नाम निर्देश ति.प./०/१५-२२ का भाषार्थ १.
२. २. बृहस्पतिः ४, मंगल ५. शनि; ६. कालः ७ लोहित ८ कनक; ६. नील; १० विकाल; ११ केश ( कोश ); १२. कवयव ( कचयव ); १३. कनक संस्थान; १४. दुन्दुभक (दुन्दुभि); १५. रक्तनिभ: १६. नीलाभास; १७. अशोक संस्थानः १ स ११. रूपनिम (रूपनिर्भास) २०. समर्थ (कंस वर्ग ) २१. शंखपरिणामः २२ तिलपुरुष २३ २४ कर्ण (उदय) २५. पंचवर्ण २६. उत्पात २७ धूमकेतुः २८. वि; २६. नभः ३०, क्षाराशि: १९. विजिष्णु (विजविष्णु ): १२. सह ३३ संधि (शान्ति) २८ लेवर २२. अभिन ( अभिन्न सन्धि ); ३६. ग्रन्थि; ३७. मानवक ( मान ) ३८ कालक; ३६. कालकेतु; ४०. निलय; ४१ अनय ४२ विद्य, ज्जिह: ४३. सिंह: ४४. अलक; ४५. निर्दुःख, ४६. काल; ४७. महाकाल ४८. रुद्र; ४६. महारुद्र, ५०. सन्तानः ५१. विपुल; ५२. संभव; ५३. स्वार्थी; १४. सेम (लेमंकर); १५. र ६ निर्मन्त्रः ४०, ज्योतिष्माणः ४०. दिवस स्थित (दिशा) ५१. मिरत (विरज); ६०० वीतशोक; ६९. निश्चल २. ६२. भासुर: ६४. स्वयंप्रभः ६५. विजय ६६. वैजयन्त ६० सीमंजर ६८ अपराजित ६१- जयन्त ७०. विमल; ७१. अभयंकर; ७२. विकस; ७३. काष्ठी ( करिकाष्ठ ); ७४. ७५. ७८. अग्निज्वाल ७०. अशोक केतुः ७६. क्षीररस; ८०. अघ; ८१. श्रवण ८२. जलकेतुः ८३. केतु ( राहु ); ८४. अंतर ८५. एकसंस्थान; ६. अश्वः ८७ भावग्रहः महाग्रह, इस प्रकार ये ग्रहोंके नाम हैं।
नोट- व्रकेटमें दिए गए नामें त्रिलोक सारकी अपेक्षा है । नं. १७; २६; ३८ : ३६; ४४; ५१: ५५ ७५ ७७ ये नौ नाम त्रिसा में नहीं है । इनके स्थानपर अन्य नौ नाम दिये हैं- अश्वस्थान; धूमः अक्ष; चतुपाद; वस्तून; त्रस्त; एकजटी; श्रवण ( त्रि. सा / ३६३ - ३७० ) * ग्रहोंकी संख्या व उनका लोकमें अवस्थान--- (दे० ज्योतिष देव/२)।
ग्रहण- १. ज्ञानके अर्थमै
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रा.वा./१/१/१/३/२५ हितमात्मसात्कृतं परिगृहीतम् इत्यनर्थान्तरम् । = आहित, आत्मसात् किया गया या परिगृहीत ये एकार्थवाची हैं । २. इन्द्रियके अर्थ में
रा. वा /२/८/११/१२२/२५ यान्यमूनि ग्रहणानि पूर्व कृतकर्मनिर्वर्तितानि हिस्कृत स्वभावसामर्थ्यजनितभेदानि रूपरसगन्धस्पर्शशब्दग्राहकाणि रसनालागि जो यह पूर्व कृतकर्म निर्मित रूप रस, गन्ध, स्पर्श व शब्दको ग्रहण करनेवाली, चक्षु रसन घाण त्वक् और श्रोत्र रूप 'ग्रहणानि' अर्थात् इन्द्रियाँ हैं ।
३. सूर्य व चन्द्र ग्रहणके अर्थ में
त्रि. सा. / ३३६ / भाषा टीका- राहू तो चन्द्रमाको आच्छादे है और केतु सूर्यको अच्छा है. माहीको नाम ग्रहण कहिए है। विशेष ० ज्योतिष /८
* ग्रहण के अवसर पर स्वाध्याय करनेका निषेध
ग्रहावती
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- दे० स्वाध्याय / २
- पूर्व विदेहकी एक विभंगा नदी- दे० लोक / ७ ।
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घनमूल
ग्राम - ( ति प /४/१३६८), वडपरिवेढो गामो । वृत्ति ( बाड ) से येष्टि ग्राम होता है। (४ १३/२२.६४/२३६/२) (/०६) म.पू./११/१६४-१६६ ग्रामवृत्तिपरिलेपमात्रा: स्युरुपिता थियाः शूद्रवर्षष्ठाः सारामाः जलाशयाः ॥ १६४॥ ग्रामा कुलतेनेष्टो निकृष्टः समधिष्ठित । परस्तरपञ्च स्यादसमृद्रकृत ॥१६५॥ क्रोश द्विकोशसीमानो ग्रामा. स्युरधमोत्तमा । संपन्नसस्यसुक्षेत्रा' प्रभूतवोदका ॥१६६॥ जिसमें माइसे घिरे हुए घर हों, जिसने अधिक तर और किसान लोग रहते हों तथा जो बगीचा और
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बोसे सहित हो उन्हें ग्राम कहते हैं। १४ जिसमे सौ पर हॉ उसे छोटा गॉव तथा जिसमें ५०० घर हों और जिसके किसान धनसम्पन्न हों उसे बडा गाँव कहते हैं ।१६५। छोटे गाँवकी सीमा एक फोकी और बड़े गाँवकी सीमा दो कोकी होती है । १६६६
ग्रास (ह. पु / ११ / १२५ ) सहस्र सिक्थ कवलो । १००० चावलोंका एक कवत होता है। (१३/५.४,२६/२६/६)
* स्वस्थ मनुष्योंके आहार में प्रासोका प्रमाण
-३०/1/
=
ग्राह्य -१ ग्राह्य ग्राहक संबंध दे० संबंध । २ ग्राह्य वर्गणा(दे० वर्मा)।
ग्रीवावनमन --- कायोत्सर्गका एक अतिचार-दे० व्युत्सर्ग/१ ग्रीवोन्नमन - कायोत्सर्गका एक अतिचार दे० व्युत्सर्ग / १ | ग्रैवेयक कल्पातीत स्वर्गोका एक भेट - दे० स्वर्ग /१/४ : ५/२ | रावा. /४/११/२/२० लोकपुरुषस्य ग्रीवास्थानीयत्वात् ग्रीवाः, ग्रीवासु भवानि चैवेयकाणि विमानानि तासापर्यात् इन्द्रा अपिवेका। पुरुषमकी तरह वेवक है। जीवामें स्थित हों वे डोक विमान है। उनके साहचर्य से महक इन्द्र भी हैं। ग्लान (स.सि /६/२४/४४२ / ८) रुजादि क्लिष्टशरीरो ग्लानः- रोग आदिमे कान्त शरीरवाला ग्लान कहलाता है। ( रा. वा./१/२४/७/ ६२३/१६) ( सा ९५९/३)
ग्लानि
१. घृणा या ग्लानिका निषेध दे० निर्विचिकित्सा । २. मोक्ष मार्ग में जुगुप्साकी कर्मचा अनिष्टता दे० सूतक
[घ]
घटा - चौथे नरकका ७ पटल- दे० नरक/५/११ । घटिका
घड़ी
परस्पर गुणना ।
घन - Cube अर्थात् किसी राशिको तीन बार घनधारा- १. घनधारा, २. द्विरूप घनधारा ३. धनमातृकाधारा; ४. द्विरूप घनाघनधारा- दे० गणित / II /५/२ घन प्रायोगिक शब्द - (दे० शब्द ) |
-कालका एक प्रमाण ( अपर नाम घडी या नाली ) - दे० गणित / I / १ / ४ ।
कालका एक प्रमाण ( अपर नाम घटिका या नाली ) • - दे० गणित //१/४ ।
घनफल - (ज. प./प्र./ १०६ ) Volume - दे० गणित / II / ७ / १ । घनफल निकालनेका प्रक्रिया दे०/II/७/१ ।
घनमूल - Cube root-३० गणित / 13/१/८ ( प्र प्र १०६) (5, 1/920) 1
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