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गांधारी
स्थित है। इसकी प्राचीन राजधानियों पुरुषपुर (पेशावर) और पुष्करा (हस्तनागपुर) थी (म.पु. प्र.५०/ पन्नालाल ) ३. सिकन्दर द्वारा भाजित पंजाबका जेहलुमसे पश्चिमका भाग गांधार था ( वर्तमान भारत इतिहास ) ४. भरत क्षेत्र उत्तर आर्यखण्डका एक देश - दे० मनुष्य / ४ |
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गांधारी- १. ( पां. पु. / सर्ग / श्लोक ) भोजकवृष्णिकी पुत्री थी और धृतराष्ट्रसे विवाही गयी थी। (८/१००-१११) इसने दुर्योधन आदि सौ पुत्रोंको जन्म दिया जो कौरव कहलाये । ( ८ / १८३-२०५ ) । २. भगवान् विमलनाथकी शासक यक्षिणी-दे० यक्ष । ३. - एक विद्याधर विद्या- दे० विद्या ।
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गारव - (भा.पा./ टी / १५७ / २६६२१) गारवं शब्दगारवर्द्धिगारवसातगारवमेदेन त्रिविधं । तत्र शब्दगारवं वर्णोच्चारगर्वः, ऋद्धिगारवं शिष्यपुस्तक कमण्डलुपिच्छ पट्टादिभिरामोद्भावनं, सातगारवं भोजनपानादिसमुत्पन्नसौम्यतीनामदस्त मोहमदगारः । - गारव तीन प्रकारका - शब्द गारव, ऋद्धि गारव और सात गारव । तहाँ वर्ण के उच्चारणका गर्व करना शब्द गारव है। शिष्य पुस्तक कमण्डलु पिच्छी या पट्ट आदि द्वारा अपनेको ऊँचा प्रगट करना ऋद्धि गारखं है। भोजन पान आदिसे उत्पन्न सुखकी लीलासे मस्त होकर मोहमद करना सात गारव है। (मो पा./टी./२७/३२२/१) १ २. न्याय विषयक गारव दोष- दे० अति प्रसंग । ३. कायोत्सर्गका अतिचार दे० ज्युस ९ ।
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गारवातिचार दे० अतिचार/ २०
गार्ग्य - एक अक्रियावादी- दे० अक्रियावाद । गार्हपत्य अग्नि ३० अग्नि ।
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गिरनार - भरत क्षेत्रका एक पर्वत । अपर नाम ऊर्जयंत। सौराष्ट्र देश जूनागढ़ स्टेटमें स्थित है---दे० मनुष्य ४ ।
गिरिकूट - ऐरावती नदीके पास स्थित भरत क्षेत्रका एक पत
-३० मनुष्य ४
गिरिवज्रपंजाब देशका पर्तमान जलालपुर नगर
५०/पं. पन्नालाल ) ।
गिरिशिखर - विजयार्ध की उत्तर श्रेणीका एक नगर ।
--दे० विद्याधर । गोतरति - गन्धर्व जातिके व्यन्तर देवोंका एक भेद--दे० गंधर्व । गीतरस- गन्धर्व जातिके व्यन्तर देवोंका एक भेद-दे० गंधर्व । गुंजाफल का एक प्रमाण० गणित //१/२
गुडव तौलका एक प्रमाण -- दे० गणित / I / १ ।
गुण-जैन दर्शनमें 'गुण' शब्द वस्तुको किन्ही सहभावी विशेष काक है। प्रत्येक इयमें अनेकों गुण होते हैं-कुछ साधारण कुछ असाधारण कुछ स्वाभाविक और कुछ विभाविक । परिणमनशील होनेके कारण गुणोंकी अखण्ड शक्तियोंकी व्यक्तियों में नित्य हानि वृद्धिरणित होती है, जिसे मापनेके लिए उसमें अविभागी प्रतिच्छेदों या गुणांशोंकी कल्पना की जाती है। एक गुणमें आगे पीछे अनेकों से देखी जा सकती है; परन्तु एक गुममें कभी भी अन्य गुण नहीं देखे जा सकते हैं ।
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म.पू./प्र.
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-दे० गुण /३/सामान्य विशेषादि गुणोंके उत्तर भेद ३० गुण /३। -दे० स्वभाव विभाव गुणोंके लक्षण ।
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* गुणको स्वभाव कह सकते हैं पर स्वभावको गुण नहीं। - दे० स्वभाव / २ ।
२ गुण-निर्देश
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गुणके भेद व लक्षण
गुण सामान्यका लक्षण ।
" द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः " ऐसा लक्षण
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गुणके साधारण असाधारणादि मूल-मेद । साधारण असाधारण गुणोंके लक्षण । अनुजीपी व प्रतिजीवी गुणोंके लक्षण ।
मूलगुण व उत्तर गुण । पंच परमेष्ठीके गुण |
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९. गुणोंमें परस्पर कचित् भेदाभेद ।
समन्वय ।
गुणांशोंमें कथंचित् अन्वय व्यतिरेक ।
'गुण' का अनेक अर्थ प्रयोग ।
गुणा के अर्थ में गुण शब्दका प्रयोग ।
एक अखण्ड गुणमें अभिभांगी प्रतिच्छेद रूप खण्ड कल्पना ।
उपरोक्त खण्ड कल्पना में हेतु तथा भेद - अभेद
- दे० गुण / ३/४ |
-दे० वह वह नाम । - दे० वह यह नाम ।
गुणका परिणामीपना तथा तद्गत शंका गुणका अर्थ अनन्त पर्यायोंका पिण्ड ।
३ द्रव्य-गुण सम्बन्ध
परिणमन करे पर गुणान्तररूप नहीं हो सकता । प्रत्येक गुण अपने-अपने रूपसे पूर्ण स्वतंत्र है ।
गुणों में कथंचित् नित्यानित्यात्मकता ।
ज्ञानके अतिरिक्त सर्व गुण निर्विकल्प है।
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१ गुण वस्तुके विशेष है।
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गुण द्रव्यके सहभावी विशेष हैं ।
३ गुण द्रव्यके अन्ययी विशेष है।
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गुण
- दे० सप्तभंगी /५/८१
सामान्य गुण द्रव्यके पारिणामिक भाव है।
सामान्य व विशेष गुणों का प्रयोजन ।
द्रव्यांश होनेके कारण गुण भी वास्तवमें पर्याय है ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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द्रव्यके आश्रय गुण रहते हैं पर गुणके आश्रय अन्य गुण नहीं रहते।
द्रव्योंमें सामान्य गुणोंके नाम निर्देश । द्रव्योंमें विशेष गुणोंके नाम निर्देश । प्रत्येक द्रव्यमें अवगाहन गुण ।
- दे० अवगाहन |
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