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गणित
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II गणित (प्रक्रियाएँ) ४. कम स्थितिकी अन्योन्याभ्यस्त राशियाँ
प्रमाण नं० * तिर्यक् गच्छ-नाना गुणहानियोंका प्रमाण । ४ ऊर्ध्वगच्छ-गुणहानि आयाममे समयों या वर्गणाओं आदि का
प्रमाण। ४ अनुकृष्टि गच्छ-ऊर्ध्व गच्छ+ संख्यात । * ऊर्धचय-ऊर्ध्व गच्छमे अर्थात् मुल गुणहानिमें चय। ४ अनुकृष्टि चय-ऊर्ध्वचय- अनुकृष्टि गच्छ विवक्षित सर्वधनगुणहानिका कोई एक विवक्षित समय सम्बन्धी द्रव्य ।
गो. क /मु./६३७-६३६/११३७ इसलायपमाणे दुगसंवरगे कदे
दु इट्ठस्स । पयडिस्स य अण्णोण्णाभत्थपमाण हवे णियमा । अपनी अपनी इष्टशलाका प्रमाण मांडि परस्पर गुणे अपनी इष्ट प्रकृतिका अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण हो है ।१३७॥
नं०
प्रकृति
उत्कृष्ट स्थिति | अन्योन्याभ्यस्त राशि
३. गुणहानि सिद्धान्त विषयक प्रक्रियाएँ
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ज्ञानावरण । ३०-को-को-सा पस्य हैं - (पत्य )असं ख्यात
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(१) अन्तिम गुणहानिका द्रव्य
दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय
७० को को सा. (पल्य-लरि लरि पत्य) ३३ सागर राशिक विधिसे मोहनीयवत्
आयु
२० को को सा पल्य४ xअसंख्यात
नाम
गोत्र ८) अन्तराय
३० को को सा
ज्ञानावरणवत्र
७. क्षेत्रफल आदि निदंश
गो. क/भाषा/६५२/११७३ से उद्धृत-रूऊणण्णोण्णबभवहिददब्वं । सर्व द्रव्य - (अन्योन्याभ्यस्त राशि-१) (२) प्रथम गुणहानिका द्रव्य गो क/भाषा/६५२/११७३/१० ___अन्त गुणहानि का द्रव्यx( अन्योन्याभ्यस्त -२)। (३) प्रथम गुणहानिकी प्रथम वर्गणाका द्रव्य गो. जी /भाषा/५६/१५६/११ दिवड्ढ गुणहाणिभाजिदे पढमा।
सर्व द्रव्य+साधिक ड्योढ गुणहानि । गो. क./भाषा/१५६/१४/११ पचयं तं दो गुणहाणिणा गणिदे आदि णिसेयं ततो विसेसहीणकमं । चयxढो गुणहानि । (४) विवक्षित गुणहानिका चय (1) यदि अन्तिम या प्रथम निषेक तथा गुणहानि आयाम दिया हो तो अन्तिम वर्गणाका द्रव्य-दो गुणहानि (या निषेकहार)
( गो जी /भाषा/५६/१५६/१३)। अथवा-प्रथम निषेक - (गुणहानि आयाम+१)
(गो. जी./भाषा/१५१/११६३/७) (11) यदि सर्वद्रव्य या मध्यधन व गुण हानि आयाम (गच्छ) दिया
हो तो गो. क./भाषा/१५६/१६४/१० तं रूऊणद्धाणण ऊणेण णिसेयभागहारेण मज्झिमधणमवहरदे पचयं ।
१. चतुरस्त्र सम्बन्धी
क्षेत्रफल परिधि घन फल
-लम्बाईxचौडाई = ( लम्बाई+चौडाई )x२ = लम्बाईxचौडाईxऊँचाई
२. वृत्त (circle) सम्बन्धी (१) बादर परिधि - ३ व्यास अर्थात ३dia (त्रि.सा./३११)
मध्यधन+ ईदो गुणहानि- गुणहानि आयाम-}
(गो.क./भाषा/१५३/११७३/१६); (ल० सा/जी. प्र./७२/१०६)। (गो. क/भाषा/६३०/११९३/११)। नोट-मध्यधनके लिए देखो नीचे
(५) विवक्षित गुणहानिका मध्यधन गो क./भाषा/१५६/११४/१० अद्वाणेण सब्बधणे खंडिदे-मज्झिमधणमागच्छदि । विवक्षित गुणहानिका सर्वद्रव्य-+-गुणहानि आयाम । (६) अनुकृष्टि चय गो. क /भाषा/६५५/११८२/४ विवक्षित गुणहानिका ऊर्वचय+ अनुकृष्टि गच्छ। (७) अनुकृष्टि के प्रथम खण्डका द्रव्य गो. क./भाषा/९५५/११८१/१४ तथा ११८२/१ (विवक्षित गुणहानिका सर्व द्रव्य-उसही का आदिधन+अनकृष्टि गच्छ)।
(२) सूक्ष्म परिधि- ( व्यासx१०)२ अर्थात् ।
(त्रि. सा./१६); (ज.प/१/२३:४/३४); (ति.प./१/११७) (३) बादर या सूक्ष्म क्षेत्र फल
बादर या सूक्ष्म परिधिxव्यास अर्थाता, (ति, प./१/११७ ): ( ज प./१/२४,४/३४ ); (त्रि.सा/६६, ३११) (३) वृत्त विष्कम्भ या व्यास { diameter) (1) ४ वाण२ + जीवा२ .
४ वाण
(त्रि. सा/७६१,७६३) (ज, प/६/७ ). (1) वाण+- जीवा या ( ज. प./६/१२)
(धनुष पृष्ठ
(1)
(धनुष पृष्ठ
-बाण)-वा
बाण)-वाण (त्रि.सा/७६५).
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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