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गणित
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II गणित (प्रक्रियाएँ)
२. लधुरिक्थ विषयक प्रक्रियाएँ
२. अर्द्धच्छेद या लघुरिक्थ गणित निर्देश १. अर्द्धच्छेद आदिका सामान्य निर्देश
ध.५/प्र.६-११ (ध.३/१.२,२-५/पृष्ट ): (त्रि. सा./गा.)
(१) लरि २म
-म (राशिको जितनी बार आधा
(किया जा सके ), (त्रि.सा/७६ )
(२) लरि (२)२
त्रि.सा./७६ दलवारा होंति अच्छिदी। राशिका दलवार (अर्थात् जितनी बार राशिको आधा-आधा करनेसे एक रह जाय) तितना तिस राशिका अर्द्धच्छेद जानना । जैसे २म के अर्द्धच्छेद म है। (गो. जी /भाषा/११८ का उपोद्धात/पृ. ३०३/७) । त्रि.सा /७५ वग्गसला रूवहिया सपदे पर सम सवग्गसलमत्तं । दुगमाहदमच्छिदी तम्मेत्तदुगे गुणे रासी ७५॥ = अपनी वर्गशलाकाका जेता प्रमाण तितना दूबा मांड परस्पर गुणें अर्द्धच्छेद होंहि । जैसे (२)म के
अर्द्धच्छेद =२।
(३) २ लरिम
-२1 वर्गशलाका प्रमाण दूवोंका पर
स्पर गुणनफल (त्रि.सा./७५) =म (राशिके अर्द्धच्छेद (लरि म)
प्रमाण दूवोंका परस्पर गुणनफल
घ५५) =लरि म+लरि न (त्रि. सा./१०५) =लरि म -लरि न (ध. ६०; त्रि. १०६ )
(४) लरि ( मन ) (५) लरि (म-न)
ध./प्रह (अँगरेजी में इसका नाम logarithm to the base २ अर्थात् लघुरिक्थ, है। ) अर्द्धच्छेदका संकेत 'अछे' मान कर इसे आधुनिक पद्धतिमें इस प्रकार रख सक्ते सक्ते है। 'क' का अछे ( या अछे 'क' ) - लरि, क । यहाँ लधुरिक्थका आधार दो है ।
(६) लरि (कख)
=ख लरि क (त्रि. सा/१०७)
(७) लरि ( कख )२
-२ ख लरि क (ध २१)
(८) लरि (कख
त्रि.सा./७६ वग्गिदवारा बग्गसला रासिस्स अद्धच्छेदस्स। अद्धिदवारा
वा खलु १७६। स राशिका जो वर्गितवार (दोयके वर्ग” लगाइ जितनी बार कीए विवक्षित राशि होइ (गो जी./भाषा/११८ का उपोद्धात/३०३/२) तितनी वर्गशलाका राशि जाननी। अथवा राशिके जेते अर्द्धच्छेद होंहि तिनि अर्द्धच्छेदनिके जेते अर्द्धच्छेद हो हि तितनी तिस राशिकी वर्गशलाका जाननी।
=ख खलरि क (ध २१) (E) लरि लरि (२) २-म (त्रि. सा/७६ ) (१०) लरि लरि (करख ) - लरि ( २ ख लरि क )
=लरि ख+लरि २+लरि लरि क -लरि ख+१+लरि लरि क (ध २१)
(११) मान लो 'अ' एक संख्या है, तो---
'अ' का प्रथम वर्गित संवर्तित - अ-ब ( मान लो)
ध/प्र जैसे 'क' की वर्गशलाका-वश के अछे अछे कलरि, लरि, क । यहाँ भी लघुरिक्थका आधार २ है ।
जितनी बार एक संख्या उत्तरोत्तर तीनसे विभाजित की जाती है उतने उस संख्याके त्रिकच्छेद होते हैं। जैसे-'क' के त्रिकच्छेद -त्रिछे क = ल रि, क। यहाँ लघुरिक्थका आधार ३ है। (ध.१/ १,२,५/५६)।
जितनी बार एक संख्या उत्तरोत्तर ४ से विभाजित की जा सकती है उतने उस संख्याके चतुर्थच्छेद होते हैं। जैसे 'क' के चतुर्थ च्छेद-चछे कल रि, क । यहाँ लघुरिक्थका आधार ४ है। (ध.३/१,२.५/५६)।
धवलामें इस सम्बन्धमें निम्न परिणाम दिये हैं(ध.३/१,२,२/२१-२४)
( क ) लरिब -अ लरि अ (दे. ऊपर नं ६) (ख ) लरि लरि ब-लरि अ+लरि लरि अ (ग) लरि भ म लरि ब (घ)) लरि लरि भ -लरि ब+लरि लरिब
-लरि अ+लरि लरि अ+अल रिअ (ड) लरि म भ लरि भ (च) लरि लरि म = लरि भ+लरि लरि भ इत्यादि
नोट-और इस प्रकार लघुरिक्थका आधार हीन या अधिक कितना भी रखा जा सकता है। आजकल प्रायः १० आधार वाला लघुरिक्थ व्यवहारमे आता है। इसे फ्रैंच लॉग कहते है। २ के आधार वाले लघुरिक्थका नाम नैपीरियन लॉग प्रसिद्ध है। जैनागम मे इसीका प्रयोग किया गया है। क्योंकि तहाँ अर्द्धच्छेद व वर्गशलाका विधिका ही यत्रतत्र निर्देश मिलता है। अत इन दोनों सम्बन्धी ही कुछ आवश्यक प्रक्रियाएँ नीचे दी जाती हैं।
(१२) लरि लरि म< २
(ध २४) इस असाम्यतासे निम्न असाम्यता आती है
बलरि न+लरि ब+लरि लरि ब<बर
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा०२-२९
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