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গলিৰ ४. अक्षर व अंकक्रमकी अपेक्षा सहनानियाँ
I गणित विषयक प्रमाण २. अंककमकी अपेक्षा सहनानियाँ
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१. अक्षरक्रमकी अपेक्षा सहनानियाँ
(पूवोक्त सर्व सहनानियों के आधार पर)
१ : गृहीत पुद्गल प्रचय ६. एक गुणहानि विषै (पूर्वोक्त सर्व सहनानियोंके आधार पर)
२ जघन्य संरण्यात,
___ स्पर्धक, स्पर्धकशलाका जघन्य असंख्यात,
* ड्योढ गुणहानि संकेत-अ. छे-अर्धच्छेद राशि: व श-वर्गशलाका राशि प्र=प्रथम;
जघन्य युक्तासंख्यात, : संसारीजीव राशि द्वि-द्वितीय; जजधन्य; उ = उत्कृष्ट;
सूच्यंगुल, आवली
। उत्कृष्ट असंख्य, २१ : अंतर्मुहूर्त, संख्य.आव १६ : जघन्य अनन्त, ३१० : उत्कृष्ट परीतासंख्या.
सम्पूर्ण जीवराशि, अ को को : अंत कोटाकोटी । ज प्र :जगत्प्रतर
दोगुणहानि, निषेकाहार अ : असंज्ञी
: नानागुणहानि ३ : सिद्धजीव राशि
१६ख : पुद्गल राशि • उत्कृष्ट, अनन्त
: असंख्यात भाग : पल्य भाग, अपकर्षण प्रतरांगुल
जघन्य असंख्याता- १६ ख ख : काल समय राशि
संख्य०, एक स्पर्धक १६खखस्व: आकाशप्रदेश भागाहार
मादर • एकेन्द्रिय
विष वर्गणा, प्रतरां- १८ एकट्ठी गुल प्रतरावली।
४२ • केवलज्ञान, उत्कृष्ट
मादाल : प्रथम मूल अनन्तानन्त
: संख्यात भाग
रजत प्रतर द्वितीय मूल
: संख्यात गुण, ६५ : पणट्ठी के यू : 'के'का प्र. वर्गमूल |
: लक्ष
घनांगुल मु२ : 'के'का द्वि. वर्गमूल | ल को :लक्ष कोटि
: असंख्यात गुण
३४३ रज्जूधन को कोटि (क्रोड) : लोक
२५६ जघन्य परीतानन्त को. को. • कोटाकोटी लोप्र : लोक प्रतर
: रज्जूप्रतर : वर्ग,जघन्य वर्गणा,
२१६१- उत्कृष्ट असंख्याताख अनन्त ख ख ख : अनन्तानन्त
पल्मको वर्ग श. : रज्जूधन
संख्यात अलोकाकाश
: प्रतरांगुलकी व.श. ८ : अनन्तगुण, एक २५६ : अब राशि , घन, धनांगुल : घनांगुलकी व.श.
गुणहानि, धनावली घनमूल
वर घलो घनलोक
सूच्यंगुलकी व.श. अर्द्धच्छेद तथा | L१६२ : जगश्रेणीको व.श.
३. आँकड़ोंकी अपेक्षा सहनानियाँ पत्यकी अ.छे.राशि सूच्यंगुलकी अ.छे.
(पूर्वोक्त सर्व सहनानियोंके आधारपर) छे प्रतरांगुल की अ.छ..
जगत्पतरकी व.श. छ. . धनागुलकी अ.छे.
नोट-यहाँ 'x' को सहनानीका अंग न समझना। केवल आंकड़ोंका
___ अवस्थान दर्शानेको ग्रहण किया है। ३ : जगश्रेणीको अ.छे. १६२ : घनलोककी ब. श.
X । संकलन (जोड़ना) ज जृ अ-: उत्कृष्ट मुक्तानंत ६ : अगरप्रतरकी अ.छे. व.म. वर्गमूल x- : किंचिदून
साधिक जघन्य व.मू.१ : प्रथम वर्गमूल : ब्यकलन ( घटाना)
सूच्यंगुलकी वर्गघनलोककी अ.छे. क.मू.२ : द्वितीय वर्गमूल
शलाका : विरलन राशि
: जगत्प्रतरकी वर्ग: जघन्य, जगश्रेणी सं
संज्ञी र : किंचिदधिक
शलाका ; साधिक जघन्य स : समय प्रबद्ध
III: संकलनमें एक, दो,
: जगश्रेणी ज- जघन्यको आदि । स ३२ । उत्कृष्ट समयप्रबद्ध
तीन आदि राशियाँ
: जगप्रतर लेकर अन्य भी ज जु अ
: घनलोक
० : ज. युक्तानन्त
: अगृहीत वर्गणा : सागर
x : मिन्न वर्गणा जजु अ-: उ. परीतानन्त
: सूक्ष्म, सूच्यंगुल ज जु अव : ज. युक्तानन्तका
: उत्कृष्ट परीतासंख्या. वर्ग,ज.अनन्तानन्त : (सूच्यंगुल )२
: रज्जू प्रतर ज जु अव : उस्कृष्ट युक्तानन्त
प्रतरांगुल १२ : उत्कृष्ट युक्तासंख्य. ज. ज्ञा. : जघन्य ज्ञान । सूर (सूच्यंगुल), धनांगुल २५६१९ : उ. संख्यातासंख्य. | ३४३ :: रन्जू धन
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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छेछ . जगरप्रतर
छे छह
धन
.
: एक घाट
वि
१६/२
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