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________________ गणित २१९ गणित विषयक प्रमाण ala) A (राशि २. अलौकिक संख्याओंकी अपेक्षा सहनानियाँ ७. क्षेत्रप्रमाणोंकी अपेक्षा सहनानियाँ ( गो.सा/जी.का/की अर्थ संदृष्टि) (ति प./६/६३; १/३३२) सख्यात जघन्य अनन्तानन्त : ज.जु.अ.व सूच्यंगुल (जघन्य युक्ता० का वर्ग) असं वात प्रतरांगुल प्र ४ अनन्त (उत्कृष्ट अनन्तानन्त जघन्य संख्यात 11 केवल ज्ञान) घनांगुल २ : के जगश्रेणी जघन्य असंख्यात :२ (मध्यम अनन्तानन्त उत्कृष्ट असंख्यात १५ (सम्पूर्ण जीव राशि):१६ जगत्प्रतर जघन्य अनन्त १६ संसारी जीव राशि : १३ लोकप्रतर : लो.प्र. : == उत्कृष्ट अनन्त के सिद्ध जीव राशि :३ धनलीक : लो :: जघन्य परीतासंख्यातः १६ पुद्गल राशि गो. सा.व. ल.सा की अर्थ संदृष्टि उत्कृष्ट परीतासंख्य. :२१ (सम्पूर्ण जीव राशिका : जगश्रेणी : र :१६ख जघन्य युक्तासंख्यात : २ अनन्तगुणा) काल समय राशि :१६खख उत्कृष्ट युक्तासंख्यात: ४१. आकाश प्रदेश राशि: १६ख स्व.ख रज्जूप्रतर : रज्जू : (७)२ : जघन्य असंख्यातासं.:४ (केवलज्ञानका प्रथम रज्जू घन उत्कृष्ट असंख्यातासं. : २५६१ - : रज्जू .(७) ३ : ३३ जघन्य परीतानन्त : २५६ (सूच्यंगुलकी अर्धच्छेद (पत्यकी अर्धच्छेद केवलज्ञानका द्वि, मूल · के.मूर उत्कृष्ट परीतानन्त : ज.जु.अ.१ केवलज्ञान राशि राशि)२ :: छे छे जघन्य युक्तानन्त : ज.जु.अ. ध्रुव राशि : २५६/१३ (सूच्यं गुलको वर्गशलाका (पत्यकी वर्गशलाका उत्कृष्ट युक्तानन्त : ज.जु.अ.ब. राशि असंख्यात लोक राशि)२ प्रमाण राशि (प्रतरीगुलकी अर्धच्छेद (सूच्यंगुलकी अर्धच्छेद : छे छे. (ग राशिx२) (प्रतरांगुलकी वर्गशलाका (१६२२ या १६/६) राशि ३. द्रव्य गणनाकी अपेक्षा सहनानियाँ (घनांगुलकी अर्धच्छेद (गो.सा/जी.का/की अर्थ संदृष्टि) सम्पूर्ण जीव राशि : १६ पुद्गल राशि : १६व. संसारी जीवराशि : १३ काल समय राशि । १६ख ख. (घनांगुलकी वर्गशलाका मुक्त जीव राशि : ३ (आकाश प्रदेश १६ख.ख ख. (राशि राशि (जगश्रेणीको अर्धच्छेद (पल्यकी अर्धच्छेद राशि : छे छे छे. ४. पुद्गल परिवर्तन निर्देशकी अपेक्षा सहनानियाँ राशि + असं)x(घनागुलकी या विछेछ, (गो.सा/जी.का/की अर्थ संदृष्टि) अर्धच्छेद राशि) (यदि वि-विरलन गृहीत द्रव्य .१ मिश्र द्रव्य राशि) अगृहीत द्रव्य अनेक बार गृहीतः (दो बार (जगश्रेणीकी वर्गशलाका घनांगुलकी वर्गशलाका+ अगृहीत या मिश्र लिखना (राशि पल्यको वर्ग. श. द्रव्यका ग्रहण ज. परी.असं४२ ५. एकेन्द्रियादि जीव निर्देशकी अपेक्षा या व२x२ १६/२ (गो.सा/जो का/की अर्थ संदृष्टि) (जगत्प्रतरकी अर्धच्छेद : जगश्रेणीकी अर्धच्छेद एकेन्द्रिय छे छे छ। संज्ञी विकलेन्द्रिय वि पर्याप्त राशि राशिx२ पंचेन्द्रिय अपर्याप्त (जगत्प्रतरको वर्गशलाका : जगश्रेणीकी वर्गअसंज्ञी राशि शलाका+१ बादर ६. कर्म व स्पर्धकादि निर्देशकी अपेक्षा (घनलोककी अर्धच्छेद छे छे छे, : वि छे छे (गो.सा./जो. का/की अर्थ संदृष्टियाँ) राशि (यदि वि-विरलन राशि) समय प्रबद्धस स्पधक शलाका ६ (घनलोकको वर्गशलाका : उत्कृष्ट समय प्रबद्ध ! स३२ एक स्पर्धकविषै जघन्य वर्गणा वर्गणाएँ र राशि :ब :४ :व. राशि या व +4 J मा. ब. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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