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गणित
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गणित विषयक प्रमाण
५. उपमा कालप्रमाण निदेश
१पर्व
१ त्रुटितांग
क्रम रा.वा ; ह. पु.; ज.प. | ति. प; महापुराण | प्रमाण निर्देश
८४ लाख वर्ष ८४ लाख वर्ष ५ पूर्वांग ८४ लाख पूर्वांग ८४ लाख पूर्वांग ८४ पूर्व
१पांग ८४ लाख पर्वांग ८४ लाख पूर्व ८४ पर्व
१नियुतांग ८४ लाख नियुतांग ८४ लाख नियुतांग
१नियुत ८४ लाख नियुत ८४ नियुत
१ कुमुदांग ८४ लाख कुमुदांग ८४ लाख कुमुदांग १ कुमुद ४ लाख कुमुद ८४ कुमुद
१पद्मांग ८४ लाख पांग ८४ लाख पद्मांग १पद्य ८४ लाख पद्म ८४ पद्म
१ नलिनांग ८४ लाख नलिनांग ८४ लाख नलिनांग
१ नलिन ८४ लाख नलिन ८४ नलिन
१ कमलांग ८४ लाख कमलांग ८४ लाख कमलांग १ कमल ८४ लाख कमल ८४ कमल ८४ लाख त्रुटितांग ८४ लाख त्रुटितांग १त्रुटित ८४ लाख त्रुटित ८४ त्रुटित
१अटटांग ८४ लाख अटटांग
८४ लाख अटटांग |१अटट ८४ लाख अटट ८४ अटट
११अममांग ८४ लाख अममांग ८४ लाख अममांग १ अमम ८४ लाख अमम
८४ अमम
१हाहांग ८४ लाख हाहांग ८४ लाख हाहांग
१हाहा ८४ लाख हाहा ८४ हाहा ८४ लाख हहू अंग ८४ लाख हूहू अंग १हूहू ८४ लाख हूहू
१लतांग ४४. ८४ लाख लतांग
८४ लाख लतांग |१ लता ८४ लाख लता ८४ लता
१महालतांग ८४ लाख महालतांग | ८४ लाख म. लतांग १महालता ति.प.रा.वा; ह.पु.ज.प म. पु.
प्रमाण निर्देश | ८४ लाख महालता ८४ महालता १ श्रीकल्प ४८ ८४ लाख श्रीकल्प | ८४ लाख श्रीकल्प हस्तप्रहेलित 8 | ८४ लाख हस्तप्रहेलित | ८४ हस्त प्रहेलित १ अचलात्म
१. पल्य सागर आदिका निर्देश ति. प./१/१४-१३०; ( स. सि/२/३८/२३३/५); (रा. का/३/३८/७/२०८/७); (ह. पु/७/४७-५६ ): (त्रि. सा/१०२); (ज. प./१३/३५-४२) (मो.जी./3; जी. प्र./११८ का उपोद्भात/पृ. ८६/४)। व्यवहार पत्यके -१ प्रमाण योजन गोल व गहरे गर्त में १-७दिन तकके
उत्तम भोगभूमिया भेड़के भच्चेके बालोंके अग्रभागोंका प्रमाण १०० वर्ष = x ४३ ४२०००३ ४२३ ४२३ ४२३ ४२२x६३ x००३ x x८३ ४८३ ५.३ ५८३४८३ ५८३ -४५ अक्षर प्रमाण बालाग्र ४१०० वर्ष अथवा-४१३४,५२६३,०३०८,२०३१, ७७७४, १५१२,
१९२००००००००००००००००००x१०० वर्ष व्यवहार पत्यके = उपरोक्त प्रमाण वर्ष x २४३४ २४२४१५४३०४ समय २४३८३४७४७(आवलोप्रमाण संख्यात जिघन्य
युक्तासंख्यात)समय उद्धार पत्यके- उपरोक्त ४५ अक्षर प्रमाण रोमराशि प्रमाण असंसमय ख्यात क्रोड़ वर्षीक समय)। अदापल्यके - उद्धार पत्मके उपरोक्त समयxअसंख्य वोके
समय समय। व्यवहार उद्धार मा अद्धासागर =१० कोडाकोड़ी विवक्षित पत्य ति. प./४/३१५-३१६: (रा. वा/३/३८/७/२०८/२०) १० कोड़ाकोड़ी अद्धासामर-अक्सपिणीकाल या१उत्सर्पिणीकाल १ अवसर्पिणी या १ उत्सर्पिणी- एक कल्प काल
२ कल्प (अव०+उत०)- १ युग एक उत्सर्पिणी या एक छह काल-सुषमासुपमा, सुषमा, सुषमा दुषमा,
अबसर्पिणी दुषमा सुषमा, दुषमा, दुषमा दुषमा । सुषमा मुषमा काल-४ कोड़ कोड़ी अद्धा सागर सुषमाकाल ३
" सुषमा दुषमा काल-२ . . . दुषमा सुपमा काल-१ को. · को. अद्धासागर-४२००० वर्ष दुधमाकाल -२१००० वर्ष दुषमा दुषमा काल =२१००० वर्ष
१ हूहू अंग
ति.प्र./४/३०८ अचलात्म-(८४)३१४ (१०)८०वर्ष
-
निमष
।
२. क्षेत्र प्रमाणका काल प्रमाणके रूपमें प्रयोग
२. दूसरे प्रकारसे काल प्रमाण निर्देश पं.का/ता. वृ/२५/५२/५
असंरण्यात समय-निमेष एक मिनट -६० सैकेंड १५निमेष =१काष्ठा
२४ सैकेड - १पल (२ सैकेंड) ६० पल (२४ मिनिट)-१घड़ी ३० काष्ठा -१कला ___ शेष पूर्ववत्
(मिनट) एक मिनिट-५४०००० प्रति(कुछ अधिक २० कला (२४ मिनट)
विपलांश (महाभारतको - १घटिका
६० प्रतिविषलांश-प्रतिविपल (अपेक्षा १५ कला) (घड़ी)
६० प्रतिविपल -१विपल
६० विपल = १ पल (२ बड़ी ( महाभारतकी अपेक्षा
६० पल = १घड़ी १३ कला+३ काष्ठा) =१ मुहूर्त शेष पूर्ववत् - ( आगे पूर्ववत :
घ. १०/४:२,४.३२/११३/१ अंमुलस्स असंखेजविभागो असंखेज्जाओ
ओसप्पिणी उस्सप्पिणीओ भागाहारो होदि । अंगुलके असंस्थातवें भाग प्रमाण है जो असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणोके समय, उतना भाषाहार है । (ध. १०४.२,४,३२/१२)। गो जी./भाषा/११७ का उपोद्घात/३२४/२ कालपरिमाणविर्ष जहाँ लोक परिमाण कहें तहाँ लोकके जितने प्रदेश होंहि तितने समय जानने।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा० २-२८
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