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गणित
१६. जघन्य युक्तानन्त
१७ उत्कृष्ट युक्तानन्त १८. मध्यम युक्तानन्त
१६. जघन्य अनन्तानन्त
रा.वा./२/१८/२०५/२६
४ महा अधिक तृण फल
१६ श्वेत सक्षम फल
२ धान्यमाष फल
२ फ
८
= ( जघन्य युक्ता०)
(दे०
१० अनन्त ७)
२०. उत्कृष्ट अनन्तानन्त - जघन्य अनन्तानन्तको तीन बार वर्गित संवर्गित करके उसमें कुछ राशिमें मिलान (दे० अनन्त),
२१. मध्यम अनन्तानन्त = ( जघन्य + १) से (उत्कृष्ट - १) तक
२. तौलकी अपेक्षा द्रव्यप्रमाण निर्देश
१३ रूप्यमाष फल २३ धरण
४] सुवर्ण या ४ स
१०० पल
३ तुला या ३ अर्धकंस
४ कुडन (पुसेरे)
४ प्रस्थ (सेर)
४ आढक
१६ द्रोण
२० खारी
द्रव्यका अवि
भागी अंश परमाणु अनन्तानन्त परमा०
अवसन्नासन्न
८ सन्नासन्न
त्रुटरेणु
सरेषु
३ क्षेत्रके प्रमाणों का निर्देश
वि. प./१/१०२-१९६ ( रा. वा/२/१८/६/२००/२६) (ह.पु/०/३६-४६ ) ( जं प . / १३ / १६-३४ ); ( गो. जी./जी. प्र. / ११८ की उत्थानिका या उपोदघात / २८५/७); (प./३/५/३६ ) ।
माला ८ लीख
- जधन्य अनन्तानन्त - १
= ( जघन्य + १) से (उत्कृष्ट - १) तक (जयन्य युक्ता०)
१ अवसन्नासन्न
-
= जघन्य परीतानन्तकी दो बार वर्गित संगित राशि (दे० अनन्त
१ सन्नासन्न
१ त्रुटरेण
= १ श्वेत सर्षप फल
= १ धान्यमाष फल
= १ गुंजाफल
- १ रूप्यमाष फल
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(व्यमहाराष्ट्र) = १ त्रसरेणु ( त्रस जीवके पाँबसे उड़नेवाला अ १रथरे रसे
उड़नेवाली धूल
बालाय. - १ लिक्षा (सील) = १ जू
१ धरण
- १ सुवर्ण या १ कंस
१ पल
-
- १ तुला या १ अर्धकंस
- एक कुडब ( पुसेरा )
९ प्रस्थ (सेर)
१ आढक
एवरे
का अणु.) -उत्तम भोगभूमिजका वालाग्र. उ.भो.भू.बा. = मध्यम भो. भू. मा. मो. भू. बा. = जघन्य भो. भू. मा. ...मा. कर्मभूमि का
- १ द्रोण
- १ खारी
- १ वाह
२१५
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८ यव
= १ यव
- १ उत्सेधांगुल ५०० उ. अंगुल = १ प्रमाणां गुल आत्मगुल - भरत ऐरावत (ति. १/२/९०६/१३) क्षेत्र चक्रवर्तीका अंगुल ६ विवक्षित - १ विवक्षित अंगुल
२ वि. पाद
पाद = १ वि. वितस्ति २ वि. वितस्ति १ वि. हस्त
3200
=१ वि. कि
२ वि. हस्त २ किष्कु
- युग, १ दंड,
धनुष, मूसल या नाली नाही,
२००० दण्ड
या धनु = १ कोश ४ कोश = १ योजन नोट- उरांगुल से मानव या व्यवहार योजन होता है और प्रमाण गुलसे प्रमाण योजन।
(वि.प./१/१११-१२२). (रा बा./३/३०/०/२०८/१०,२३)
५०० मानव योजन
१ योजन
१ प्रमाण योजन गोल व गहरे कुण्डले
उत्पन
(१ अद्धापल्य या प्रमाण
योजन३ )
जब कि छे अद्धापल्यकी
=
अर्द्धछेद राशि या log२
I गणित विषयक प्रमाण
पल्य
(श्रेणी)२
(जगत् श्रेणी) ३
(प./६/४.१.२/३६/४)
= १ प्रमाण योजन ( महायोजन या दिव्य योजन ) ८० लाख गज ४५४५.४५ मील
०६८००० अंगुल = १ अद्वापत्य
( दे० पस्य )
१ सूच्यंगुल
-प्रतर्रा
गुल
-१ घनांगुल
( १ घनांगुल) अद्धापल्य + असं = जगत्श्रेणी (प्रथम मत
असे असंख्यात
= १ सूच्यंगुल
(गजी जी.प्र./पृ. २८/४)
(ध./३/१.२४/२४/२०
+
= जगत् श्रेणी (द्वि मत) (१ घनांगुल) (छे व असं. दे० ऊपर) = (ध. /३/१,२४/३४/१) जगत्श्रेणी -
-७
१ रज्जू (दे० राजु
- १ जगत्प्रतर
१ जगत्त्रन या घनलोक
(आवली + असं) आवली + असं (आवती आवली के समय प्रमाणआकाश प्रदेश)
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४. सामान्य काल प्रमाण निर्देश
१. प्रथम प्रकारसे काल प्रमाण निर्देश
ति १/४/२८५१०६ (रावा /३/२०/७/२००/२५) (६.५/०/२८-३९) (प./३/१.२.६/गा. २४-२४/६५-६६) (/४/१५.८/६९८/२) (म. / ३/२१०-२२७) (मं.पी./१२/४-१५). (गो.जी./मू./५०४-२०१/२०१ १०२८); (चा.पा./टी./१०/४० पर उद्धृत)
नोट-तिपना अनुयोगद्वार आदि प्रयुक्त नामक कम कुछ अन्तर है वह भी नीचे दिया गया है (ति.प / Fo/HI. Jam) ( जं. प./ के अन्त में प्रो. लक्ष्मीचन्द )
पि. रा.मा. आदिमें पूर्व पूर्वांगसे लेकर अन्तिम अवतारमवाले विकल्प तक गुणाकारसे कुछ अन्तर दिया है वह भी नीचे दिया जाता है।
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