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कृष्ण
असंख्यात गुणा है । तदनन्तर इन नवीन रचित कृष्टियों में अपकृष्ट द्रव्य देने करि यथायोग्य घट-बढ़ करके उसकी विशेष हानिक्रम रूप एक गोपुच्छा बनाता है।
इ.स २०० भाषा अनिवृतिकरण कासके अन्तिम समयमे लोक तृतीय कृष्टिका तो सारा यक्ष्मष्ट रूप परिणम चुका है और द्वितीय संग्रहकृष्टिमें केवल समय अधिक उच्छिष्टावली मात्र निषेक शेष है । अन्य सर्व द्रव्य सूक्ष्मकृष्टि रूप परिणमा है। .सा./५८२ / भाषा-अनिवृत्तिकरणका अन्त समयके अनन्तर सूक्ष्मकृष्टिको वेदता हुआ सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानको प्राप्त होता है। यहाँ सूक्ष्म कृष्टि विप्रा मोहके सर्व द्रव्यका अपकर्षण कर गुणश्रेणी करें है।
क्ष.सा./५६७ / भाषा - मोहका अन्तिम काण्डकका घात हो जानेके पश्चाद जो मोहकी स्थितिविशेष रही, ता प्रमाण ही अब सूक्ष्मसाम्परायका काल भी शेष रहा, क्योकि एक एक निषेकको अनुभवता हुआ उनका अन्त करता है । इस प्रकार सूक्ष्म साम्परायके अन्त समयको प्राप्त होता है। डा.सा./२१८- ६०० / भाषा यहाँ आकर सर्व कमका अक्षम्य स्थितिमन्ध होता है। तोन बाटियाका स्थिति सफल अन्तर्मुहूर्त मात्र रहा है। मोहक स्थिति सत्त्वक्षयके सम्मुख है। अघातियाका स्थिति सत्त्व असंख्यात वर्ष मात्र है । याके अनन्तर क्षीणकषाय गुणस्थानमें प्रवेश बरे है।
१९. साम्प्रतिक कृष्टि
.सा./६९६ / भाषा-साम्प्रतिक कहिए वर्तमान उत्तर समय सम्बन्धी अन्तको केवल उदयरूप उत्कृष्ट कृष्टि हो है ।
२०. जघन्योत्कृष्ट कृष्टि
.सा./११ / भाषा की सर्व स्तोक अनुभाग लिये प्रथम कृष्टि सो यष्टिकहिये ते अधिक अनुभाग लिये जन्कृष्टि सो उत्कृष्ट कृष्टि हो है।
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| कृष्ण ह.पू./वर्ग/ श्लोक "पूर्वके चौथे भगने अमृतरसायन नामक मांस पाचक थे (३३/९५१) फिरतोस भन लोसरे नरकमे गये (२३/ १५४) वहाँ आकर यक्षत्तिक नामक वैश्य पुत्र हुए (३३ / १५८) फिर पूर्व के भने निर्नामिक राजपुत्र हुए ( २२ / ९४४) वर्तमान भवमें
सुदेव के पुत्र थे (३५/१६) । नन्दगोपके घर पालन हुआ (३५/२८) । कंसके द्वारा छल से बुलाया जाने पर ( ३५/७५ ) इन्होने मल्लयुद्ध में कंस को मार दिया ( ४१/१८) । रुक्मिणीका हरण किया (४२ / ७४ ) तथा अन्य अनेकों कन्याएँ विवाह कर (४४ सर्ग) अनेकों पुत्रोंको जन्म दिया ( ४८ /६६) महाभारत के युद्धने पाण्डवोंका पक्ष लिया तथा जरासंधको मार कर (२२/०३) नव में नारायण के रूपमें प्रसिद्ध हुए (२२/१७) अन्तमे भगवाद नेमिनाथकी भविष्यवाणीके अनुसार ( ५५/ १२) द्वारकाका विनाश हुआ (६१/४८ ) और ये उत्तम भावनाओंका चिन्तन करते, जरत्कुमारके तीरसे मरकर नरकमें गये (६२/२३) विशेष दे० ताकापुरुष भावि चोमोसोमें निर्मल नामके सोलहवें तीर्थकर होंगे। दे० कर कृष्ण गंगा - ज. प . / प्र. १४१ A. N. up & H L यह हरमुकुटं पर्वतकी प्रसिद्ध गगाल झीलसे निकलती है। कश्मीर में बहती है। इसे आज भी वहाँ के लोग गंगाका उद्गम मानते हैं । इस गंगाके रेतमें सोना भी पाया जाता है, इसी लिए इसका नाम गांगेय है। इस नदीका नाम जम्बू भी है। जम्बू नदोसे निकलनेके कारण सोनेको जम्बूनद कहा जाता है ।
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केतुमाल
कृष्णदास - म.पु. / प्र. २० पं० पन्नालाल - आप ब्रह्मचारी थे। कृतिमुनिसुव्रत नाथ पुराण, विमल पुराण । समय-वि. १६०४ ई० १६१७ | ग्रथ का रचना काल वि० १६८९ (तो. /४/१८४) । कृष्णपंचमी व्रत
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बर्द्धमान पुराण/१ कुल समय = ५ वर्ष; उपवास ५ ।
व्रतविधान संग्रह / १०९ विधि - पाँच वर्ष तक प्रतिवर्ष ज्येष्ठ कृष्णा ५ को उपवास करे । जाप्य - नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप ।
कृष्णमति - भूतकालीन बीसवें तीर्थंकर – दे० तीर्थंकर / ५ | कृष्णराज — १, ह.पु./६६/५२-५३; (ह. पु. / प्र.५ पं० पन्नालाल ) (स्याद्वाद सिद्धि / प्र./२५ पं० दरबारी लाल ) दक्षिण लाट देशके राजा श्रीवल्लभके पिता थे । आपका नाम कृष्णराज प्रथम था। आपके दो पुत्र थे- श्रीवल्लभ और धवराज । आपका राज्य लाट देशमें था तथा शत्रु भयंकरकी उपाधि प्राप्त थी। बड़े पराक्रमी थे। आचार्य पुष्यसेनके समकालीन थे। गोविन्द प्रथम आपका दूसरा नाम था । समय ०६४ १०७५६-७७२ आता है। विशेष दे० इतिहास ३/४ १२. कृष्णराज प्रथमके पुत्र ध वराजके राज्य पर आसीन होनेके कारण राजा अकालवर्षका ही नाम कृष्णराज द्वितीय था (दे० अकालवर्ष) विशेष इतिहास / ३ / ४ २. यज्ञस्तिलक / प्र. २० पं० शुन्दर लाल - राष्ट्रकूट देशका राठौर वंशी राजा था। कृष्णराज द्वि० (अकालवर्ष) का पुत्र था । इसलिए यह कृष्णराज तृतीय कहलाया । अकालवर्ष तृतीयको हो अमोघवर्ष तृतीय भी कहते हैं । ( विशेष दे० इतिहास / २/४) यशस्तिलक चम्पूके कर्ता सोमदेन सुरिके समकालीन थे। समय- भ० १००२-१०२१ ( ई० १४५-६०२) अकालवर्ष के अनुसार (ई० ११२-१७२ ) जाना चाहिए।
कृष्णलेश्या -- दे० लेश्या ।
कृष्णवर्मा - समय १४०२३०४६६) (द. सा. प्र.३८ प्रेमीजी)
( Royal Asiatic Society Bombay Journal Vol. 12 के आधार पर )
कृष्ण वर्मा - आर्यखण्डकी एक नदी – ३० मनुष्य ४ ॥ केंद्रवर्ती वृत - Inital Circle, Central Core (ध./पु. ५/प्र २७ ) केकय१ पंजाब प्रान्तकी वितस्ता ( जेहलुम) और चन्द्रभागा ( चिनाब ) नदियोका अन्तरालवर्ती प्रदेश। इसकी राजधानी गिरिवज्ज ( जलालपुर ) थी । ( म. पु/प्र.५० पं० पन्नालाल ); २. भरत क्षेत्र आर्यखण्डका एक देश । अपरनाम कैकेय था । - दे० मनुष्य / ४ । केकयी - १. पु. / सर्ग / श्लोक- शुभमति राजाकी पुत्री ( २४/४ ) राजा
दशरथकी शमी (२४/१२) व भरतकी माता थी (२५/२५) पुत्र के वियोगसे दुखित होकर दीक्षा ग्रहण कर ली ( ८६ / २४ ) । केतवा - भरत क्षेत्र आर्यखण्डकी एक नदी - दे० मनुष्य ४ ॥ केतु एक ग्रह दे० ग्रह ।
केतुभद्रवंशी था। कलिंग देशका राजा था। कलिंग राजका संस्थापक था । महाभारत युद्धमें इसने बड़ा पराक्रम दिखाया था । समय ई० पू० १४६० (खारयेलकी हाथी गुफाका शिलालेख उड़ीसा 1 )
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केतुमति
-प.पु./१५/६-८ हनुमानकी दादी थी। केतुमाल - १. विजयार्थी उत्तर श्रेणीका एक नगर ०
घर । २. बैक्ट्रिया और एरियाना प्रदेश ही चतु द्वीपी भूगोलका केतुमाल द्वीप है। (ज.प./प्र. १४० A.N. up. & H.L. )
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