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कृतिकर्म
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४. कृतिकर्म-विधि
(५) आचार्य सम्बन्धी-सिद्ध-योगि-आचार्य-शान्ति भक्ति । (६) कायक्लेशमृत आचार्य-सिद्ध-योगि-आचार्य व शान्ति भक्ति।
(विधि नं०१) सिद्ध-योगि-आचार्य-चारित्र व शान्ति भक्ति । (७) सिद्धान्त वेत्ता आचार्य-सिद्ध-श्रुत-योगि-आचार्य शान्ति भक्ति । (८) शरीरक्लेशी व सिद्धान्त उभय आचार्यः-सिद्ध-श्रुत-चारित्र
योगि-आचार्य व शान्ति भक्ति।
(XIV) प्रतिमा योगी मुनिक्रियाः--सिद्धभक्ति योगी भक्ति, शान्ति
भक्ति । (XV) मंगल गोचार मध्याह्न बन्दना क्रिया -सिद्ध भक्ति, चैत्य भक्ति,
पंचगुरु भक्ति, शान्ति भक्ति। (XVI) योगनिद्रा धारण क्रिया'-योगि भक्ति । (विधि न.१)। (XVII) वर्षा योग निष्ठापन व प्रतिष्ठापन क्रियाः-(सिद्धभक्ति, योग
भक्ति, 'यावन्ति जिनचैत्यायतनानि', और स्वयम्भूस्तोत्रमें से प्रथम दो तीर्थकरोंकी स्तुति, चैत्य भक्ति । (२) ये सर्व पाठ पूर्वादि चारों दिशाओं की ओर मुख करके पढ़ें, विशेषता इतनी कि प्रत्येक दिशामें अगले अगले दो दो तीर्थकरोंकी स्तुति पढ़ें। (३) पंचगुरु भक्ति व
शान्ति भक्ति। नोट -आषाढ शुक्ला १४ की रात्रिके प्रथम पहरमें प्रतिष्ठापन और कार्तिक कृष्णा १४ की रात्रिके चौथे पहर में निष्ठापन करना । विशेष
दे० पाद्य स्थिति कल्प। वीर निर्वाण क्रिया-सिद्ध भक्ति, निर्वाण भक्ति, पंचगुरु भक्ति, शान्ति
भक्ति । श्रुत पंचमी क्रिया -सिद्ध भक्ति. श्रुत भक्ति पूर्वक वाचना नामका स्वाध्याय ग्रहण करना चाहिए। फिर स्वाध्याय कर श्रुत भक्ति और आचार्य भक्ति करके स्वाध्याय ग्रहण कर श्रुत भक्ति कर स्वाध्याय पूर्ण करे। समाप्तिके समय शान्ति भक्ति करे। संन्यास क्रियाः-(१) सिद्ध भक्ति, श्रुत भक्ति, कर वाचना ग्रहण, (२)
-श्रुत भक्ति, आचार्य भक्ति कर स्वाध्याय ग्रहण कर श्रुत भक्तिमें स्वाध्याय पूर्ण करे। (३) वाचनाके समय यही क्रिया कर अन्तमें शान्ति भक्ति करे। (४) संन्यासमें स्थित होकर-बृहत् श्रुत भक्ति, बृ० आचार्य भक्ति कर स्वाध्याय ग्रहण, बृ० श्रूत भक्तिमे स्वाध्याय करें। (विधि नं०१) । संन्यास प्रारम्भ कर सिद्ध व श्रुत भक्ति, अन्तमें सिद्ध श्रुत व शान्ति भक्ति। अन्य दिनोमें बृ० भूत भक्ति, बृ०
आचार्य भक्ति पूर्वक प्रतिष्ठापना तथा बृ० श्रुत भक्ति पूर्वक निष्ठापना । सिद्ध प्रतिमा क्रिया'-सिद्ध भक्ति ।
४. स्वाध्यायकी अपेक्षा सिद्धान्ताचार वाचन क्रियाः-(सामान्य) सिद्ध-श्रुत भक्ति करनी
चाहिए, फिर भूत भक्ति व आचार्य भक्ति करके स्वाध्याय करें, तथा अन्तमें श्रुत-व शान्ति भक्ति करें। तथा एक कायोत्सर्ग करें। (केवल.
चा० सा०) विशेषः-प्रारम्भमें सिद्ध-श्रत भक्ति तथा आचार्य भक्ति करनी चाहिए
तथा अन्तमें ये हो क्रियाएँ तथा छह छह कायोत्सर्ग करने चाहिए। पूर्वाह्न स्वाध्याय -श्रुतभक्ति, आचार्य भक्ति अपराह्न ५ -
१ पूर्वरात्रिक , - " " वैरात्रिक -
५. प्रत्याख्यान धारणकी अपेक्षा
भोजन सम्बन्धी -ल० सिद्ध भक्ति । उपवास सम्बन्धी यदि स्वयं करे तो-ल० सिद्ध भक्ति।
यदि आचार्य के समक्ष करे तो-सिद्ध व योगि भक्ति । मंगल गोचर बृहत् प्रत्याख्यान क्रिया'-सिद्ध व योगि भक्ति...(प्रत्या
ख्यान ग्रहण )-आचार्य व शान्ति भक्ति।
२. पंचकल्याणक वन्दना की अपेक्षा (१) गर्भकल्याणक वन्दनाः-सिद्ध भक्ति, चारित्र भक्ति, शान्ति भक्ति ।। (२) जन्म कल्याणक वन्दनाः-सिद्ध भक्ति, चारित्र भक्ति व शान्ति
भक्ति। (३) तप कल्याणक वन्दना'-सिद्ध-चारित्र-योगि व शान्ति भक्ति । (४) ज्ञान कल्याणक वन्दना'-सिद्ध-भूत-चारित्र-योगि व शान्ति
भक्ति । (३) निर्वाण कल्याणक बन्दना-सिद्ध-श्रुत-चारित्र-योगिनिर्वाण व
शान्ति भक्ति। (६) अचलजिन बिम्ब प्रतिष्ठा'-सिद्ध व शान्ति भक्ति ।...(चतुर्थ दिन
अभिषेक वन्दना में:--सिद्ध-चारित्र चैत्य-पंचगुरु व शान्ति भक्ति (विधि न०१)। अथवा सिद्ध, चारित्र, चारित्रालोचना व शान्ति
भक्ति । (७) चल जिन निम्ब प्रतिष्ठा'-सिद्ध व शान्ति भक्ति ।...( चतुर्थ दिन
अभिषेक वन्दनामें)-सिद्ध-चैत्य-शान्ति भक्ति ।
६. प्रतिक्रमणकी अपेक्षा देवसिक व रात्रिक प्रतिक्रमणः-सिद्ध-व प्रतिक्रमण-निष्ठित चारित्र व चतुर्विशति जिन स्तुति पढे। (विधि नं०१)। सिद्ध-प्रतिक्रमण भक्ति अन्तमें वीर भक्ति तथा चतुर्विंशति तीर्थंकर भक्ति (विधि नं०२। यतिका पाक्षिक, चातुर्मासिक व सांवत्सारिक प्रतिक्रमण-सिद्ध-प्रतिक्रमण तथा चारित्र प्रतिक्रमणके साथ साथ चारित्र-चतुर्विंशति तीर्थकर भक्ति, चारित्र आलोचना गुरु भक्ति, बडी आलोचना गुरु भक्ति, फिर छोटो आचार्य भक्ति करनी चाहिए (विधि न०१)(१) केवल शिष्य जनः-ल. श्रुत भक्ति, ल० आचार्य भक्ति द्वारा आचार्य वन्दना करें। (२) आचार्य सहित समस्त संघ:-वृ० सिद्ध भक्ति, आलोचना सहित बृ० चारित्र भक्ति । (३) केवल आचार्य:-ल० सिद्ध भक्ति, ल. योग भक्ति, 'इच्छामि भंते चरित्तायारो रह बिहो' इत्यादि देवके समक्ष अपने दोषोंकी आलोचना व प्रायश्चित्त ग्रहण । 'तीन बार पंच महावत' इत्यादि देवके प्रति गुरु भक्ति । (४) आचार्य सहित समस्त संध-लसिद्ध भक्ति, ल० योगि भक्ति तथा प्रायश्चित्त ग्रहण । (२) केवल शिष्यल० आचार्य भक्ति द्वारा आचार्य वन्दना। (६) गाधर वलय, प्रतिक्रमण दण्डक, वीरभक्ति, शान्ति जिनकीर्तन सहित चतुर्विशति जिनस्तव, ल० चारित्रालोचना युक्त बृ० आचार्य भक्ति, बृ० आलोचना युक्त मध्याचार्य भक्ति, ल० आलोचना सहित
ल. आचार्य भक्ति, समाधि भक्ति । श्रावक प्रतिक्रमणः--सिद्ध भक्ति. श्रावक प्रतिक्रमण भक्ति, वीर भक्ति,
चतुर्विशति तीर्थ कर भक्ति, समाधिभक्ति ।
३. साधुके मृत शरीर व उसकी निषधका की वन्दनाकी अपेक्षा (१) सामान्य मुनि सम्बन्धी:-सिद्ध-योगी व शान्ति भक्ति । (२) उत्तर व्रती मुनि सम्बन्धी'- सिद्ध-चारित्र-योगि व शान्ति भक्ति । (३) सिद्धान्त वेत्ता मुनि सम्बन्धीः-सिद्ध-श्रुत-योगिव शान्ति भक्ति । (४) उत्तरवती व सिद्धान्तवेत्ता उभयगुणी साधु-सिद्धश्रुत-चारित्र- योगि व शान्ति भक्ति।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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