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नानाजीवापेक्षया
गुण
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एकजीवापेक्षया
काल
मार्गणा
स्थान
प्रमाण
जघन्य
विशेष
उत्कृष्ट विशेष
प्रमाण ... अधन्य नं०१ । नं०३ |
विशेष
उत्कृष्ट ।
विशेष
क्षायिक सम्य०
सर्वदा सर्वदा| विच्छेदाभाव | सर्वदा विच्छेदाभाव
अन्तर्मु०
वेदक सम्य०
८ वर्ष कम २ को कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि देव या| पूर्व +३३ सागर नारकी मनुष्योंमें उपजा/सर्व लघु |
कालसे क्षायिक सम्यक्त्व सहित संयता होकर रहा/मरकर सर्वार्थ सिद्धिमें | | गया/वहाँसे आ पुनः को० पूर्व आयु
वाला मनुष्य हो मुक्त हुआ। ६६ सा०+४ (दे० काला)
पू० को स्वकाल पूर्ण होने पर अवश्य अन्तर्मुहूर्त
जघन्यवद 'सासादन गुणस्थान परिवर्तन । उपशम सम्यक्त्व में १ समय आवली | उपशममें ६ आवली शेष रहनेपर शेष रहने पर सासादन
सासादन अनादि अनन्त
उपशम ..
४६-४८ अन्तर्मु० सासादन
पल्य/
१६८
"
असं०
सम्यग्मिध्यात्व सासादन
" , गुण स्थान परि ४६-५१ १ समय, मूलोश्वव
४४-४५ सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
मिथ्यात्व (अभव्य)
(भव्य) (सादि सान्त)
११८
| अनादि सान्त व सादि सान्त
-
कुछ कम अर्ध
पु० परि०
मूलोषवद
मूलोधपद
सम्यग्दृष्टि |४-१४ | ३१७ | - | -
सामान्य क्षायिक सम्य०४
-
मूलोधवत
+- सम्य० देव या नारकी मनुष्यों में वर्ष कम १ कोड़ा उपजा/३ अन्तर्मुः गर्भ काल, ८ वर्ष
पूर्व पश्चात संयमासंयम १ अन्तर्मु०
विश्राम, १ अन्तर्मु० क्षपणा काल १ पूर्व कोड़की उत्कृष्ट आयु तक रहकर
मरा -
मूलोधवत
वेदक सम्य०४-७। उपशम सम्य०४-५ |
३१८ अन्तर्मु० गुण स्थान परि० पन्य// प्रवाह क्रम | ३२१-
(एक जीववव) असं०] (जघन्यवत) ३२२
| अन्तर्मु० मिथ्यासे उप० सम्य० असंयत अन्तर्मुहुर्त | जघन्यवर पर सम्यग्मिथ्यात्व, अथवा संयतासंयत पुनः सा
मिथ्या० या वेदक सम्यक्रवको प्राप्त सादन पूर्वक मिथ्या
कराना सासादन नहीं
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएँ
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