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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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मार्गणा
पद्म शुक्ल
कृष्ण
नील
कापोत
तेज
गुण
प्रमाण
स्थान | नं ० १ | नं ० २ | जघन्य
२-३
४
१
२-३
४
१
Bir
२-३
४
१
२-३
४
२८३
२०६
२८७
२८८
२८३
२८६
२८७
२८८
२८३
२८६
२७
२८८
२६१
२६४
२६५
२११
५-६ २६६
I
सू. ४०-४१ सदा विच्छेदाभाव
1
15
35
नानाजीवापेक्षया
सर्बदा
विशेष उत्कृष्ट विशेष
मूलोवद
विच्छेदाभाव
सर्वदा विच्छेदाभाव
:
23
C
::
२९४
२८५
२६२८७
समदा विच्छेदाभाव २८१
२६०
सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव २८४
२५ २८६
1
गुलोद
२८७
सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव २६
२६०
-
1
;
मूलोद
२८७
सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव २८
प्रमाण
नं.०१/०२
1
"
-
मूलोद
२६४
२६५
सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव २६२ -
२६३
ॐ
༢- सू.
१९१- अन्तर्मुः शुक्र या तेजसे पद्म फिर वापिस १८ सा. उपरोक्त परन्तु देवो में उत्पत्ति
१८२
पद्म शुक्ल फिर वापिस नीलसे कृष्ण पुनः वापिस
२९४२८६ २८६
२१०
२२
२६३
२१७२६०
1
I
1
जघन्म
1
मूलोघवत्
अन्तर्मुοमोलले कृष्ण फिर वापिस
अन्तर्मुहूर्त कृष्ण या कापोती नील
पुनः वापिस
अन्तर्मुहूर्त
विशेष
अन्तर्मुहूर्त
अन्तर्मुहूर्त
१ समय
- मूलोषवत्
स्व मिध्यादृष्टिवद
- मूलोघवत्
एकजीवापेक्षया
उत्कृष्ट
मिथ्यादृष्टिवद
या परिवर्तन या गुणस्थान परिवर्तन से दोनों विकल्प (देखो काल / ५)
३३ सा + अंत
३३
+ उपरोक्त स्वय
नील या तेजसे कापोत पुनः वापस
- मूलोघवद
स्वमिष्याविद
७ सागरसे
३ अन्तर्मु० कम
पद्मसे तेज फिर कापोर सागरपश्य
असं०
३३ सागर से ६७ पृथिवी में (भधारण ५ अन्तर्ग अन्तर्मु० कम पश्चात्से लेकर भवान्तके १ अतर्भु पहिलेतक भवान्तमें नियमसेमिध्यात्व ५ वीं पृथिवीमें (स्व मद
१७ सागर +
२ अन्तर्मुहूर्त
विशेष
१७ सागर से
कृष्णवत् पर भवान्तमें सम्यक्त्व
३ अन्तर्मु• कम सहित मर कर मनुष्यों में उत्पत्ति
(५वीं पृथिवी ) स्व ओपन (३री पृथिवीमें)
७ सागर +
९. अन्तर्मु
२५ सागरसे १ अन्तर्मु० कम
अन्तर्मुहूर्त
नीलबदरी पृथिवीमें
मरण से अन्तर्मु० पहिले कापोतसे तेज सौधर्म में उत्पत्ति / मरण समय रोश्णा परिवर्तन
|
मिथ्यादविन्द पर अगले भ उसी लेश्या के साथ गया / १ अन्तर्मु० तक वहाँ भी वही लेश्या रही विवक्षित लेश्या विवक्षित गुण स्थान में रहकर अविवक्षित लेश्याको प्राप्त
हुआ
काल
११६
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएं