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नानाजीवापेक्षया
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काल
गण
एकजीवापेक्षया विशेष
मार्गणा
प्रमाण
उत्कृष्ट विशेष
जघन्य
जघन्य
विशेष
स्थान ।
प्रमाण नं०१०३
नं०१ नं०२
विशेष ।
मूलोधवत
२७०
मूलोधवद
२७१
२७२
२७३
सामायिक छेदो०६-१ | २७० परिहार विशुद्धि ६-७ | २७१ सूक्ष्म साम्पराय उप.प. २७२ यथारख्यात । १३-१४ २७३ संयतासंयत ५ | २७४ असंयत ।१-४ | २७५ ९. दर्शन मार्गणा :चक्षुदर्शन
३८-३६ सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव
| अचक्षुदर्शन
अन्तर्मुः । चतुरिन्द्रिय पर्याप्त क्षायोप- ( २००० सागर (क्षयोपशमापेक्षा परिभ्रमण
शमापेक्षा उपयोगापेक्षा
अन्तर्मुहुर्त | उपयोग अपेक्षा १७३ अनादि अभव्य क्षयोपशमापेक्षा
अनादि अनन्त | अभव्य क्षयोपशमापेक्षा अनन्त १७४ अनादि भव्य क्षयोपशमापेक्षा | अनादि सान्त भव्य क्षयोपमापेक्षा
सान्त १७०- अन्तर्मु० उपयोगापेक्षा
अन्त
उपयोगापेक्षा
११५
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
१७२
अवधि दर्शन केवलदर्शन चक्षु दर्शन
अवधिज्ञानवद
केवलज्ञानवत् अन्तर्मु० गुण स्थान परिवर्तन
२००० सागर
परिभ्रमण
मूलोघवत्
मूलोघबद
२-१४ अचच दर्शन |१-१४ | २८० अवधि दर्शन |४-१२/ २८१ केवल दर्शन १३-१४ / २२ १०. लेश्या मार्गणा :कुष्ण
अवधिज्ञानवत केवलज्ञानव
अवधि ज्ञानवत केवल ज्ञानव
४०-४१ सर्वदा विच्छेदाभाव
सर्वदा बिच्छेदाभाव
अन्तम
१७८
नीलसे कृष्ण पुनः वापिस |३३ सा.+अंत० विवक्षित लेश्या सहित मनुष्य या
तियंचमें अन्तर्मुहुर्त रहा। फिर मर
कर नरकमें उपजा कापोत या कृष्णसे नील पुनः १७ सा.+ अंत. , (पंचम पृथिवीमें) वापिस नील या तेजसे कापोत पुनः ७ सा. + अंतर्मु. " (तीसरी " ") वापिस पद्मसे तेज फिर वापिस | २ सा.+ अंतर्मु. उपरोक्तवत् परन्तु देवों में उत्पत्ति
नोल
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएं
कापोत
तेज
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