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गुण - प्रमाण
नाना जीवापेक्षया
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एक जीवापेक्षया
मार्गणा
কতি
प्रमाण विशेष नं०/१ नं०/३] जघन्य
स्थान नं०१ नं०/२ जघन्य
विशेष
उत्कृष्ट
विशेष
उत्कृष्ट
विशेष
नपुंसक वेद
१२४
सर्बदा | विच्छेदाभाव
अन्तर्मु.
बीवेदवत्
जीवेदवद
असं० पु. परिवर्तन
२-३
।
२४
-
मूलोधव
सर्वदा विच्छेदाभाव २४१
२४२ - २४३
२४४ सर्वदा विच्छेदाभाव २४६
२४७
मूलोघवत्
२४४
सर्वदा विच्छेदाभाव
अन्तम०
स्त्रीवेदवत्
६ अन्तर्मुः कम, २८/ज. ७ वी पृथिवीमें जा ६ मुहूर्त ३३ सागर | पीछे पर्याप्त व विशुद्ध हो सम्यक्त्व
को प्राप्त हुआ।
| ५-६ | २४८ १०-१४ । २४९
मुलोधवत्
मूलोघवत
अपगत वेदी
२४६
६ कषाय मार्गणाः
चारों कषाय
(२६-३० सर्वदा। विच्छेदाभाव | सर्वदा विच्छेदाभाव
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
अकषाय उप०
, क्षपक चारों कषाय
कषाय । १ ।
२५०
१२६- १ समय | क्रोधमें केवल मृत्यु वाला | अन्तर्मुहूर्त कषाय परिवर्तन
भंग और शेष तोनमें मृत्यु व व्याघात वाले दोनों भंग अपगत वेदीवत्
अपगत वेदीवर अन्तर्मुक
कुछ कम पूर्णको १ समय | कषाय, गुणस्थान परिवर्तन| अन्तर्मुहूर्त स्व गुणस्थानमें रहते हुए ही कषाय व मरणके सर्व भंग-काला
| परिवर्तन क्रोधके साथ व्याघात नहीं होता शेष तीनके साथ होता है। मरणकी प्ररूपणामें क्रोध कषायीको नरकमें उत्पन्न कराना, मान कषायीको नरकमें, माया कषायीको तिर्यचमें और लोभ कषायी को देवोंमें। इस प्रकार यथा योग्य रूपसे सर्व हो गुण
स्थानोंमें लगाना। १ समय
६ आवली
अन्तर्मुहूर्त | उपरोक्तवत् परन्तु ७ वें में त्र्याघात नहीं
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएँ
له فه
१ समय मुलोधववत् पव्य/अ० मूलोघ वत् | , २१ भंगोंसे परि० , अविच्छिन्न
-दे० काल/५ | प्रवाह सर्वदा | विच्छेदभाव | सर्वदा विच्छेदाभाव
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