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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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मार्गणा
५ वेद मार्गणा स्त्री वेद
पुरुष द
नपुंसक वेद
अपगत वेद उप
:
स्त्री वेद
पुरुष द
क्षपक
गुण
स्थान
:
१ २२७
२-३ २३०
२३१ २३२
20
४
५
६-६
प्रमाण
नं०/१ | नं०/२ | जघन्य
ބނ
२-४
५ ६-६
२३५
२३५
२३६
२३६
11
२४-२८ सर्वदा विच्छेदाभाव
=
い
:
:
| 11
""
:
=
नानाजीवापेक्षा
विशेष उत्कृष्ट विशेष
I
। ।।।
11
मूलोघवत्
सर्वदा विच्छेदाभाव
:
मूलोघवत्
सर्वदा महाभाव
तोपनय स्त्रीदवद गुलोपपद
:
:
T
२३१
सर्वदा विच्छेदाभाव २३३
२३४
:
|
प्रमाण
이 아이
२२८
२२६
२३०
।।।
।।।
२२५
सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव २३७
२३८
२३६
२३५
जघन्य
१२११२२
१२४
१ समय
११५११६
-
११६
उपशम श्रेणीसे उतर सवेदी हो द्वितीय समय मृत्यु ११० अन्तर्मु० उपशम श्रेणी उतर सवेदी १०० सागर होकर पुनः अवेदी हुआ । मृत्यु होनेपर तो पुरुष बेदी देव ही नियमसे होगा अतः समयकी प्ररूपणा नहीं की स्त्री वेदवत
१ समय
99
१२५
१२०- बन्ार्मु●
१२८
I
विशेष
अन्तर्मु
एकेन्द्रियोंमें परिभ्रमण
स्त्री व नपुंसक वेद सहित उपशम श्रेणी चढ़े तो ।
कुछ कम कोडि
सर्व जघन्य काल में संयम घर अवेदी हुआ और उत्कृष्ट आयुपर्यन्त रहा
अन्तर्मुहूर्त गुणस्थान प्रवेश कर पुनः लौटे पदात पृथनत्व वेद परिवर्तन करके पुनः सीटे
लोभनद
अन्तर्मुο
एकजीवापेक्षया
अवेदी उपराम श्रेणीमें बदी होकर पुनः सवेदी हो जाना
गुणस्थान परिवर्तन
- लोपद
उत्कृष्ट
स्त्रीवेदवत
३०० से ६०० अविवक्षित वेदसे आकर तहाँ परिपल्य तक
असं ० पु० परिवर्तन अन्तर्मुहूर्त
३ अन्तर्मुकम ५५ पल्य
विशेष
श्मास + मुहूर्त ० पृथक्त्व कम १ को० पूर्व
सागरशत पृथक्त्व
भ्रमण ।
नपुंसकसे आ पुरुष हो यहाँ
परिभ्रमण
अविवक्षित वेदी ५५ पल्य आयु वाली देवियोंमें उपज अन्तर्मु० से पर्याप्त पूरीकर सम्यक्वी हुआ।
२८/ज श्री बेरी मर्कट आदिकमें उपजा २ मास गर्भ में रहा। निकलकर मुहूर्त पृथक्त्वसे संयता संयत हो रहा (ओघमें सम्मुनिका ग्रहण किया है)
स्त्रीवेदवत
काल
१११
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएँ