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नानाजीवापेक्षया
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मार्गणा
| गुण स्थान
प्रमाण नं. १ नं० २ जघन्य
प्रमाण
काल
विशेष
उत्कृष्ट विशेष
| जघन्य ।
एकजीवापेक्षया
उत्कृष्ट ।
विशेष
विशेष
काययोगसामान्य १
१७४
सर्वदा| विच्छेदाभाव
सर्वदा विच्छेदाभाव १७५
१ समय
मरण व व्याघात रहित हभंग असं.पु परिवर्तन | एकेन्द्रियों में परिभ्रमण
२-१३ |
-
मनोयोगीव
औदारिक
सर्वदा विच्छेदाभाव
| सर्वदा
मनोयोगीवत्
-
१८१
औदारिक मिश्र १
१८२
सर्वदा विच्छेदाभाव | सर्वदा विच्छेदाभाव १८३
२
१८७
१ समय एक जीववत् ही पत्य/
७ या ८ जीवोंकी असं । युगपत् प्ररूपणा
मनोयोगीबत ३,४य में मरण व व्याघात रहित हभंग तथा २.५.६ठेमें केवल व्याघात रहित भी मनोयोगवत् १ समय । मनोयोगीवत ११ भंग | २२००० वर्ष-1 पृथिवीकायमें परिभ्रमण
अप० काल मनो- व्याघातवाले भंगका कहीं मनोयोगीवत् योगीवद भी अभाव नहीं क्षुद भवसे | ३ विग्रहसे उत्पन्न क्षुद्र भव- | अन्तर्मुहूर्त ल० अप० के संख्यातभव करके पर्याप्त ३ समयक्रम धारी
हो गया १ समय सासादन दृष्टि एक जीव १ समयकम
जघन्यवत स्वकालमें एक समय शेष|६ आवली रहनेपर मिभ योगी हो द्वितीय समय मिथ्यात्वको
प्राप्त हुआ। अन्तर्मुठी पृथिवीसे आ मनुष्य अन्तर्मुहुर्त
जघन्यवत् परन्तु सर्वार्थ सिद्धिसे हुबा गर्भमे अल्प अन्तर्मुहूर्त
आकर कालतक ही अपर्याप्त रहा, फिर पर्याप्त हो गया
प्रवाह
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
४
१८६
अन्तर्मु.७ या८ असंयत अन्तम. जवन्यवत-१६१नारकी औ०
पर देव, १६२ मि० योगी हो
नारको व पर्याप्त हुए ।
मनुष्य तीनों | की अपेक्षा
प्ररूपणा १ समय | दण्ड समुद्धातसे
सं०समय दण्डव कपाट १६५कपाटको प्राप्त
| में परिवर्तन १६६ हो पुनः दण्डको
करने अनेक प्राप्त हुआ
जीव सर्वदा विच्छेदाभाव
सर्वदा विच्छेदाभाव १६७
१समय
जधन्यवत
दण्ड-कपाट समुद्धातमें आरोहण व अवतरण करते हुए कपाट समुद्धात गत केवली
____
वैक्रियक
१ समय
अन्तर्मुहुर्त
१९६
विवक्षित गुणस्थानमें ही योगपरिवर्तन करे
मनो या वचन योगी विवक्षित गुणस्थानवी वैक्रि. काय योगी हो १ समय पवाद या तो मर जाये या गुणस्थान परिवर्तन करे व्याघात रहित १० भंग
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएं
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