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नाना जीवापेक्षया
एक जीवापेक्षया
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काल
गुण स्थान
प्रमाण न०१/मू.
जघन्य
विशेष
उत्कृष्ट
विशेष
जघन्य
विशेष
उत्कृष्ट
विशेष
उपश मकः
| १समय 1२ या ३ अवरोहक- अन्तर्मुहूर्त ७.८ या ५४ तक जीव | १ समय २२-२५
|१समय जीवन शेष रहनेपर वे अन्तम हुर्त ७ से ८वे मे वव मे से ८वे मे तथा उपशामक व से वे व १०वे स्थानोमे से वे में या वे से हवे में, १वें
इसी प्रकार सर्वत्र आरोहण या अव८वे में आ १ समय परस्पर अवरोहण व सेहवें मे वा वे से १०वेमे: ११वे
रोहण द्वारा प्रवेश कर अन्तमुहर्त रह पश्चात् युगपद मरे। आरोहण रे । ११वे में से १०व में या १०वे से ११वे में |
गुणस्थान परिवर्तन करे। हवे व १०वे मे भी केवल आरोहण करके
आ १ समय पश्चात मरे। उपरोक्तवत् पर अब
गुणस्थान बदले। फिर रोहण व आरोहण |
अवश्य विरह होता है। दोनोकी अपेक्षा। ११वे में केवल आरो
ह्णकी अपेक्षा २६-२६ | अन्तमुहूतं ७,८ या १०८ जीव | अन्तमुहूत जघन्यवत् अन्तर्मुहूर्त | ७३ स्थानसे क्षपक श्रेणी चढ
जघन्यवाद ज्वे स्थानसे क्षपक
क्रमेण अयोगी स्थानको प्राप्त हुआ श्रेणी चढ़ क्रमेण युगपत् अयोगी
स्थानको प्राप्त ३०-३२ | सर्वदा | विच्छेदाभाव
विच्छेदाभाव १२खें से १३ में आ समुद्धात कर | १ कोड पूर्व
| १ पूर्वकोडकी आयुवाला मनुष्य ७ मास अयोगी स्थानको प्राप्त हुआ (७ वर्ष व ७
गर्भ में रहा, ८ वर्ष आयुपर दीक्षा ले अन्तर्मुहूर्त अप्रमत्त हुआ। ७ अन्तर्मुहूर्तोमे क्रमसे
सर्व गुणस्थानोको पार कर सयोगी स्थानको प्राप्त हुआ। शेष आयु पर्यन्त वहाँ रहा । अन्त मे अयोगी हुआ।
क्षपक
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
००४
सर्वदा
१४ । २६-२६ । अन्तर्मुहूर्त | उपरोक्त क्षपकोंवत् | अन्तर्मुहूर्त | उपरोक्त क्षपकवत् । अन्तर्मुहूर्त | उपसर्गकेवली १३-१४
उपरोक्त क्षपकोंवत् (क० पा/पु१पृ० ३४२)
- अन्तर्मुहूर्त ।
उपरोक्त क्षपकोंबत् (क. पा./पु१/पृ० ३६०)
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएँ
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