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काल
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२. जीवोंकी कालविषयक ओघप्ररूपणा
प्रमाण-१. (ष. ख. ४/१,५,२-३२/३२३-३५७); (गो.जी./भाषा/१४५/३५६/१) संकेत-दे० काल ६१
काल विशेषों को निकालनेका स्पष्ट प्रदर्शन-दे० काल/५
नाना जीवापेक्षया
एक जीवापेक्षया
प्रमाण
गुण स्थान नं०१/सू.
जघन्य
विशेष
उत्कृष्ट
विशेष
जघन्य
विशेष
उत्कृष्ट
विशेष
| २-४
सर्वदा | विच्छेदाभाव
सर्वदा
| अनादि मिथ्यात्वी सर्वप्रथम सम्यक्त्व
पाकर गिरे।
विच्छेदाभाव अन्तर्मुहूर्त ३, ४, ५ या वें स्थानसे गिरे, अर्ध पुद्गल
मिथ्यात्व हो, पुन' ३,४,५ या ।
६४ को प्राप्त हो ६ आवली स्थितिवाले । १ समय | उपशम सम्यक्त्व में एक समय ६आवली २,३ या ४थे स्थानवाले
शेष रहनेपर सासादनको प्राप्त हो जीवोंका प्रवेश क्रमन
२
५-६
उपशम सम्यक्त्व में ६ आवली शेष रहने पर सासादनको प्राप्त हो
एक समय | २ या ३रेके १ समय पल्य/असं
स्थितिवाले सर्वजीव एकदम सासादन पूर्वक मिथ्यात्वको प्राप्त हो जाय।
प्रवेश क्रम न टूटे
चढने व गिरने वाले दोनों की अपेक्षा
|अन्तम हूतं मिथ्यात्वसे चढ़कर ३रे को प्राप्त । अन्त
गिरनेवाले की अपेक्षासे नही।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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६-१२ अन्तर्महत २८/ज वाले ७ या ८
जीव १,४,५ या छठे
से युगपद गिरे १३-१५ । सर्वदा । विच्छेदाभाव
४
सर्वदा
विच्छेदाभाव
२८/ज वाला १,३,५ या ६ स्थान ३३ सागर+१ श्वाँ, ६ठा स्थानधारी या उपशम सम्यसे गिरने ब चढ़ने दोनोंकी अपेक्षा कोडपूर्व क्त्वी मनुष्य अनुत्तर विमानोंमें समय
कम ३३ सागर रहकर पूर्वकोड आयु
वाला मनुष्य हो संयम धरे। २८/ज वाला १,४ या ईठे स्थानसे १कोडपूर्व- सम्मुलिम संज्ञी पर्याप्त तिर्यच, मच्छ, अवरोहण या आरोहण करनेकी | अन्तर्मुहूर्त । मेंढक आदिक भवके अन्तर्मुहूर्त पश्चात् अपेक्षा । आरोहण करे तो १ या
संयतासंयत हो। ४ये से वें पूर्वक ७वेको प्राप्त हो ६ठे को नहीं।
६
१९-२१
१ समय ठेवं में परस्पर आरोहण व
अबरोहण करता १ समय गुणस्थान विशेष में रहकर मरे
| सबोत्कृष्ट कालपर्यन्त प्रमत्त रहकर मिथ्यात्वी होनेवाले की अपेक्षा
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएँ
उपरोक्तवत् पर अप्रमत्तसे मिथ्यात्वी होने वाला
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