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अवगाहुना
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१. अवगाहना सम्बन्धी प्ररूपणाएँ
स.बा.
क्रम
- ३ | वायु
___गर्भज
| थलचर
"
- इन्द्रिय ।
२. तिथंचगति सम्बन्धी प्ररूपणा
३. पृथ्वी कायिकों आदिकी जघन्य व उत्कृष्ट अवगाहना १. एकेन्द्रियादि तियंचोंकी जघन्य अवगाहना
संकेत-सू-सूक्ष्म बा.बादर; अस.- असख्यात । संकेत-असं - असंख्यात; सं.-संख्यात ।
(मू आ १०८७)। (मू आ./१०६६) (ति प/५/३१८/विस्तार) (ध ४/१,३,२४-३३)
काय समास
जघन्य (त सा./२/१४५) (गो जी /मूह४/२१५)-ति प.के आधारपर
उस्कृष्ट जघन्य अवगाहना मार्गमा
पृथिवी
घनांगुल/असं. । द्रव्यांगुल/असं, अवगाहना
अपेक्षा
२ | अप तेज | एकेन्द्रिय धनांगुल/असं जन्मके तृतीयसमयवर्ती
सूक्ष्म लब्ध्याप्त निगोद
४ सम्मूर्च्छन्न व गर्भज जलचर, थलचर आदिकी उत्कृष्ट द्विन्द्रिय | घनागुन/स अनुन्धरी त्रीन्द्रिीय घनागुल/स. कुन्थु
अवगाहना उपरोक्तxस
(मु.आ.१०८४-१०८६) (हपु श६३०)। ४/चतुरिन्द्रिय | उपरोक्तरसं काणमक्षिका ५। पंचेन्द्रिय ।
सम्मूर्छन तन्दुलमच्छ
क्रम मार्गणा २. एकेन्द्रियादि तिर्यचोकी उत्कृष्ट अवगाहना
अपर्याप्त पर्याप्त अपर्याप्त । पर्याप्त सकेत-यो-योजन (४ कोश), को -कोश ।
१ जलचर १ बालिश्त
४-८ धनुष (मू आ /१०७०-१०७१) (ति प/५/३१५-३१८) (ध ४/१,३,२/- २ महा
योजना
योजन ३३-४५) (त सा./२/१४२-१४४) (गो.जी /मु /६५-६६/२१६- मत्स्य
१०००४५००x२५०
१५००x२५०४१२५ २२१)-ति प.के आधार पर
४-८ धनुष
3 कोश अवगाहना
नभचर
४-८ धनुष अपेक्षा विशेष लम्बाई | चौडाई | मोटाई
नोट-गर्भजोंकी अवगाहना सर्वत्र सम्मूर्छनोसे आधी जानना १०००यो १ यो. १यो | कमल | स्वयम्भूरमण द्वीपके मध्यवर्ती ५. जलचर जीवोंकी उत्कृष्ट अवगाहना
भागमें उत्पन्न २.१२ यो । ४ यो. १३यो. शंख , , , समुद्र , ,
(ह पु१/६३०-६३१)।
, | ३ को ३/८को ३/१६को. कुम्भी . , द्वोपके अपरभागमें
तौर पर
मध्य में स्थान | या
उत्पन्न
लम्बाई चौडाई मोटाई | लम्बाई चौडाई | मोटाई सहस्र पद
लवण समुद्र
यो. (४६) (२३) १८यो. (E) (81) १यो, ३/४यो | १/श्यो. भवरा " . . . . ११०००यो ५००यो | २५०यो. महा-.., समुद्रके मध्यवर्ती कालोद समुद्र १८ यो. (१) | (४३) ३६यो. (१८) | ()
मत्स्य
भागमें उत्पन्न स्वयंभू रमण ५००यो । (२५०) । (१२५) । १००० १ ५०० । २५० ६. चौदह जीव समासो की अपेक्षा अवगाहना यंत्र सकेत'-सू-सूक्ष्म; बा. बादर; प. पर्याप्त, अप -अपर्याप्त: आ./असं.-आवलीका अस ख्यातवाँ भाग, पल्य/अस.-पल्य+ असंख्यात
पूर्व स्थान
पूर्व स्थान पृ.- पृथ्वी, ज= जघन्य, x= पूर्व स्थान+9- - *-पूर्व स्थान+
आ./अस
पल्य/असं. प्रमाण -(मू आ १०८७); (ति प ५१३१८ विस्तार)(गो.जी./जी R./१७-१०१/२२३-२४३)
|स्थान -५ |स्यानम् । स्थान-५ स्थान-५ स्थान%६ ।स्थान-५ स्थानम्५ । स्थान-५ । (स् अप.ज.) (वा.अपज.) । (अप.ज.) | (स्प जो (बा.प.ज.) . (प.ज) । (अप3.) | (प )
सूक्ष्म निगोद बादरवात-६ अप्र.प्रत्येक १२ सदम निगोद१७ बादर वात ३२ अप्रे प्रत्येक ५० तेन्द्रिय:५५ तेन्द्रिय ६० कूल स्थान%६४॥वात तेज-७ बेइंद्री-१३ ॥वात:२०] ॥ तेज ३५ बेन्द्रिय ५१ चौन्द्रिय:५६ चौन्द्रिय ६१
तेज ॥ अमुक तेइन्द्रि-१४ ॥ तेज २३ | ॥ अप-३८ तेन्द्रिय ५२ बन्द्रिय:५७ बोन्द्रय-६२ । ॥ अप४ |" पृथ्वी0 चतुरेन्द्रिः१५ ॥ अप:२६ ॥ पृथ्वी-४१] घौन्द्रिय-५३ अप्रतिष्ठित-५८ अप्र.प्रत्येक-६३) ॥ पृथ्वी५ । निगोद-१० पचेन्द्रिय-१६ पृथ्वी-२०॥ निगोद -४४ पझेन्द्रिय-५४) पञ्चेन्द्रिय-श्न पञ्चेन्द्रिय ६४) प्रतिस्थानवृद्धि | प्र.प्रत्येक प्रतिस्थानवृद्धि प्रतिस्थानवृद्धि प्र.प्रत्येक ४७ प्रतिस्थानवृद्धि प्रतिस्थानवृद्धि प्रतिस्थान वृद्धि क्रमश:/अस. प्रतिस्थानवृद्धि क्रमशःपल्याअस क्रमशःX प्रतिस्थान वृद्धि क्रमश पल्यास क्रमशःपल्यास- क्रमशःपल्यासक्रमश.पल्यास
क्रमश । स्थान%D५ । स्थान-६ स्थान५ स्थान -६ (स.अप.3.) (वा अप् 3.) (सूप उ.) | (बा-प) निगोद-१८ | वात- ३३ निगोद-१0 वात:३४ वाल-२१ तेज-३६ वात-२२।
तेज-३७ तेज-२४ | अप्% ३० तेज-२५ अप-४० अप:२७ पृथ्वी -४२ अपृ%२८ पृथ्वी-४३ मृथ्वी -३० निगोद्-४५ प्रतिस्थान वृद्धि प्र.प्रत्येक-
पृथ्वी-३१ निगोद-४६ प्रर्तिस्थानबृद्धि प्र प्रत्येक-80
el प्रतिस्थानवृद्धि क्रमशx क्रमश
प्रतिस्थानवाद
क्रमश: X| क्रमश जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
५ (१००००
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