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अपवाद
साधनाको उत्सर्ग और शरीर चर्याको अपवाद कहते है। इन दोनो
के सम्मेल सम्बन्धी विषय ही इस अधिकार मे प्ररूपित है।
१. भेद व लक्षण
१. अपवाद सामान्यका लक्षण |
२ अपवादमार्गका लक्षण |
३ उत्सर्गमार्गका लक्षण
* उत्सर्ग व अपवाद लिंगके लक्षण
२. अपवादमार्ग निर्देश
१ मोक्षमार्ग मे क्षेत्र काल आदिका विचार आवश्यक है। २. अपनी शक्तिका विचार आवश्यक है।
३. आत्मोपयोगमे विघ्न न पढे ऐसा ही त्याग योग्य है। ४. आत्मोपयोग विप्न पडता जाने तो अपवाद मार्गका आश्रय ले ।
प्रथम व अन्तिम तीर्थमे छेदोपस्थापना चारित्र प्रधान होते है । - दे० छेदोपस्थापना |
* उत्सर्ग व अपवाद व्याख्यानमे अन्तर ।
३. परिस्थितिवश साधुवृत्तिमें कुछ अपवाद
१ कदाचित् ९ कोटि शुद्धकी अपेक्षा ५ कोटि शुद्ध आहारका ग्रहण |
२. उपदेशार्थं शास्त्रोका और वैयावृत्त्यर्थ औषध आदिका संग्रह |
आचार्यकी वैयावृत्त्य के लिए आहार व उपकरणादिक माँगकर लाना ।
३ क्षपकके लिए आहार माँगकर लाना । ४. क्षपकको कुरले व तेलमर्दन आदिकी आज्ञा । ५. क्षपकके लिए शीतोपचार व अनीमा आदि । ६. क्षपकके मृतशरीरके अगोपागोका छेदन |
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कालानुसार चारित्रमे हीनाधिकता सम्भव है । - दे० निर्यापकमें/भ, आ मू ६७९ । * कदाचित लौकिक ससगंकी आज्ञा दे० गत * कदाचित् मन्त्र प्रयोगकी आज्ञा । - दे० मन्त्र । ७. पुरोपकारार्थ विद्या व शस्त्रादिका प्रदान । * कदाचित् अकालमे स्वाध्याय । ८. कदाचित रात्रिकी भी बातचीत |
-दे० स्वाध्याय २/२ ।
* कदाचित् रात्रिको करवट लेना-देना
* कदाचित् नौकाका ग्रहण व जलमे प्रवेश ।
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दे लिंग १ |
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- दे. विहार । दे भिक्षा
* शूद्रसे छू जानेपर स्नान ।
* मार्गमे कोई पदार्थ मिलनेपर उठाकर आचार्यको
- दे. अस्तेय ।
दे दे ।
* एकान्तमे आर्यका संगतिका विधि-निषेध |
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कदाचित् स्त्रीको नग्न रहनेकी आज्ञा ।
अपवाद
४. उत्सर्ग व अपवादमार्गका समन्वय
१ वास्तवमे उत्सर्ग ही मार्ग है अपवाद नही ।
२ कारणवश हो अपवादका ग्रहण निर्दिष्ट है सर्वतः
नही ।
३ अपवादमार्गमे योग्य ही उपधि आदिके ग्रहणकी आज्ञा है अयोग्यकी नही ।
साधुके योग्य उपधि ।
दे सगति ।
-दे लिग १/४ ।
स्वच्छन्दाचारपूर्वक आहार ग्रहणका निषेध | ----दे, आहार 11/२/७ ।
५ अपवादका ग्रहण भी त्यागके अर्थ होता है | ६. अपवाद उत्सर्गका साधक होना चाहिए । ७. उत्सर्ग व अपवादमें परस्पर सापेक्षता ही श्रेय है। ८ निरपेक्ष उत्सर्ग या अपवाद श्रेय नही
-दे परिग्रह ।
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१. भेद व लक्षण
१. अपवाद सामान्यका लक्षण
/९/२/९४९ पर्याय विशेषोऽदो व्यावृत्तिरित्यर्थ पर्यायका अर्थ विशेष अपवाद और व्यावृत्ति है ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
दपा / टी / २४/२१/२० विशेषोक्तो विधिरपवाद इति परिभाषणात 1 - विशेष रूप से कही गयी विधिको अपवाद कहते है । २. अपवादमार्गका लक्षण
प्रमा/सप्र / २३० शरीरस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनभूतसयमसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदो न यथा स्यात्तथा बालवृद्वभान्तग्लानस्य स्वस्य योग्य मृद्वेनाचरणमाचरणीयमित्यपवाद । =बाल, वृद्ध, श्रान्त व ग्लान मुनियोका शुद्धात्म तत्त्व के साधनभूत सयमका साधन होनेके कारण जा मूलभूत है, उसका छेद जिस प्रकार न हो उस प्रकार अपने योग्य मृदु आचरण ही आचरना, इस प्रकार अपवाद है। साता २३० असमर्थ पुरुष शुद्धात्मभावनासहकारित किमपि
काहारानीपराधिक गृहातोत्पादो व्यवहार एकदेशपरित्यागस्तथा चातसयम सरागधारित शुभपयोग इति यावदेकार्य - असमर्थ जन शुद्धात्मभावना सहकारीत जो कुछ भी प्राक आहार ज्ञान व उपकरण आदिका ग्रहण करते है, उसीको अपवाद, व्यवहारनय, एकदेशत्याग, अपहृत सयम, सराग चारित्र, शुभोपयोग इन नामोसे कहा जाता है। ३. उत्सर्ग मार्गका लक्षण
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प्रसा/२२२ आत्मद्रव्यस्य द्वितीयभामास एवोपि प्रतिषिद्धरसर्ग मार्ग यह है जिसमें कि सर्व परिग्रहका त्याग किया जाये, क्योंकि, आत्माके एक अपने भावके सिवाय परद्रव्यरूप] दूसरा पुद्गलभाव नही है। इस कारण उत्सर्ग मार्ग परिग्रह रहित है।
प्रस / २३० मालामा संयमस्य शुद्धात्मसाधनत्येन मूलभूतस्य छेदो न यथा स्यात्तथा सयतस्य स्वस्य योग्यमतिकर्कशमाचरणीयमित्युत्सर्गः । बाल, वृद्ध, अमित या ग्लान (रोगी श्रमण ) को
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