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________________ - - --2 प्रागागागाना BASE । संपादक का प्राकथन मागम Mamine w ala जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरिजी के अन्तेवासी एवं वाचकरत्न श्रीसकलचन्द्र गणि के शिष्य महोपाध्याय श्रीशान्तिचन्द्रगणि द्वारा रचे गये ग्रन्थ ‘कृपारसकोश' की यह संशोधित आवृत्ति जिज्ञासुओं एवं अभ्यासीओं के करकमलोंमें अर्पण करते हुए आज प्रसन्नताकी अनूभूति हो रही है। मुघल सम्राट अकबरकी प्रशस्ति के रूपमें रचा गया यह ग्रन्थ इसलिये । महत्त्वपूर्ण है कि इस की रचना एक जैनमुनिने की है। सामान्यतया जैन मुनि विशिष्ट प्रयोजन के अलावा कभी किसी सम्राट की प्रशस्ति करना नहीं चाहते, नहीं करते । फिर यह तो ठहरा म्लेच्छ या यवन सम्राट् ! इस की प्रशस्ति जैन साधु भला क्यों करेगा ? करेगा, अवश्य करेगा, क्योंकि यह व्यक्ति कोई सामान्य या परंपरागत ढंग का एकांगी मुस्लिम शासक नहीं था, यह तो था मूलतः क्रूर होते हुए भी सत्संग व धर्मभावना के प्रभाव से अहिंसा व धर्मसहिष्णुता के सद्गुणोंका धनी एक परम । उदार सम्राद । इसने जैन मुनियों के समागम में आने के बाद जो दयाभरपूर कृत्य किये, वह ऐसे थे कि जिससे न केवल जैनधर्मियोके, अपितु हिन्द की समस्त हिन्दुप्रजा के चित्तमें एक तरह की शांति व स्वस्थताकी लहर पसर गई। । थी। उनके ऐसे सत्कृत्योंकी अनुमोदना के वास्ते ही श्रीशांतिचन्द्र गणि जैसे । महाविद्वान संतने अपनी कलम उठाई, जिसका सुफल है यह "कृपारसकोश" ___इस ग्रंथ के विषय का विस्तृत परिचय पाने के लिये तो मूल संपादक मुनि श्रीजिनविजयजीने लिखी विस्तृत भूमिका ही पढनी होगी। उन्होंने कृति का भाषान्सर भी पृष्ठ भाग में लिख दिया है, वह भी कृतिके अंतरंग परिचय पाने में उपयुक्त सिद्ध होगा। यह कृतिका प्रथम संपादन व प्रकाशन मुनि जिनविजयजीने ई. १९१७ में भावनगर की जैन आत्मानंद सभा के माध्यम से किया। यह प्रकाशन आज तो अलभ्य ही है, किन्तु तत्कालीन संपादन व मुद्रणकला का एक उत्कृष्ट नमूना है | यह पुस्तक, इसमें कोई सन्देह नहीं । ई. १९५९ में आ. श्रीविजयसमुद्रसूरीश्वरजी-प्रेरित, आगरा स्थित श्री जैन आत्मानंद पुस्तक प्रचारक मंडल द्वारा इस ग्रंथ का यथावत् पुनर्मद्रण हुआ है, appa Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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