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आख्यानकमणिकोशे
अह अन्नया परकम-चायपरिक्षणकए कुमाराण | काराविय परमन्नं भोएड निवो नियकुमारे ॥ ३४॥ परमन्नं परिवेसिय निवेण लिल्लिक्किओ सुणयवग्गो । सम्मुहमागच्छंतं तं नियवि पलाइया इयरे ॥ ३५॥ सेणियकुमरो इयराणमुभयपासट्ठिए गहियथाले । मुणयाण खिवइ जेमेइ अप्पणा भयविमुक्कमणो ॥ ३६॥ तब्वइयरमवलोइय चिंतेइ पमोइओ पुहइपालो । एसो उदार-वीरो त्ति कायरा इयरकुमरा मे ॥ ३७॥ अवरसमयम्मि राया बुद्धिपरिक्षणकए कुमाराण । मुद्देइ गणियलड्डयकरंडए सलिलकलसे य ।। ३८ ।। हक्कारिउ तओ ते भणेइ वच्छा ! सवुद्धिविहवेण । मुदमभंजिय भुंजेह मोयगे पियह सलिलं पि ॥ ३९ ॥ एवं वुत्ता नियबुद्धिगचिया वि य उवायमलभंता । ते छुह-पिवाससोसियगत्ता दीणत्तमणुपत्ता ।। ४०॥ सेणियकुमरेण पुणो घेत्तु पगलंतकलसबिंदुजलं । धुणिकरंडप मोयगाण चूरीऍ भोयविया ॥४१॥ तयणंतरं कुमारे विविहविणोयप्पसंगवक्खित्ते । पासित्तु नरवरिंदो वाहरिपुच्छई एवं ।। ४२ ॥ मुद्दाभंग काऊण मोयगा भक्खिया कइ ? कहेह । एवं वुत्ता राएण ते पुणो विन्नवंति अओ ॥ ४३ ।। ताय ! नियगणिय-मुदियमोयगसंखं समुद्दकलसे य । परिभाविऊण कइ भक्खिय ? ति दोसं पयासेह ॥ ४४ ॥ इय भणिए भूवालो संभालइ जा तहेव तं सव्वं । पुच्छइ य पुणो कुमरे कहेह जहवत्त वुत्तंतं ॥ ४५ ॥ तो अक्खिओ समग्गो वि वइयरो तेहिं रायपायाणं । जह भिंभसारकुमरेण भोइया निययबुद्धीए ॥ ४६॥ इय निमुणिऊण सेणियमइविहवं विम्हिओ महाराओ। चिंतेइ जहा जुत्तो एसो रज्जाहिसेयम्स ।। ४७ ॥ नवरं जइ सपसायं एयं पेच्छामि ता न संदेहो। सव्वे वि य मिलिऊणं वावाइम्संति कुमरमिमं ॥४८॥ संपइ अलीढभावो एयरस पराभवं पयासेमि । रजसमयम्मि नियमा इमस्स काहामि अहिसेयं ॥ ४९ ।। तो तस्स रक्खणकए करेइ राया पसायमियराण । कुमराण तुरय-रहवर-वारण-आभरणनियरेण ।। ५० ।। नियअंगरक्खपुरिसे वाहरि ऊणं नरेसरो भणइ । रक्खेयव्वो कुमरो अलक्खिएहि अवायाण ।। ५१॥ इयराण गुरुपसायं निएवि चिंतेइ नियमणे कुमरो । पेच्छ अहं तारण वि जेट्टो वि जहा पराभूओ ॥ ५२ ॥ अवमाणमहादुहदुहियमाणसो माणगुणगरिठ्ठो वि । गुरुसोयजलणजालाकरालिओ गमइ तद्दियहं ।। ५३ ॥ मज्झ नियंतस्स कहं कुमरो अवमाणिओ ? त्ति रत्ततणू । पगलंतअंसुजालो मित्तो अदंसणीहूओ ॥ ५४ ।। जासुयणरायरत्ता सिणिद्धतारा कुमारअवमाणं । पेच्छिय सुरसरणिठिया सइ व्व विलयं गया संझा ॥ ५५॥ राएण केइमजुत्तं सेणियकुमरोऽवमाणिओ जमिह । अजसपसरो व्व भुवणे वित्थरिओ तिमिरपन्भारो ।। ५६ ॥ अवमाणजलणजालाकरालियं सेणियं नियकरहिं । निव्वविउं व विचितिय समुग्गओ सिसिरकिरिणो वि ॥ ५७ ॥ तम्मि समयम्मि कुमरो महंतअवमाणपूरियसरीरो। चिंतेइ पेच्छ ताएणन गणिओ तिणसमो वि अहं ॥ ५८ ॥ ता किं करेमि संपइ ? माणं चइ किमित्थ चिट्ठामि ? । अहवा उत्तमसत्ताण माणमुयणं महादोसो ॥ ५९ ॥ जम्हा गुणाण मूलं माणो पुरिसाण वीरचित्ताण । परदेसे वि न पावंति परिभवं जेण संजुत्ता ॥ ६०॥ अवमाणिया वि जे नियगिहं पि न चयंति हीणमाणधणा । अभिमाणगुणविहूणा साणसमाण व्व ते नियमा ॥६१॥ वियडुब्भडभिउडिभिडंतसुहडकोदंडडंबरे वि रणे । जइ अपरिमॅलियमाणा सुयणा ता किं न पचत्तं ? ।। ६२॥ अवि चलइ धरणिवीटं रइकेलिविसंटुलस्स फणिवइणो । अभिमाणं माणधणा मणयं पि मुयंति न तहा वि ॥ ६३ ।। अवि करवालकरालियरणंगणे कप्परिंति ससरीरं । न सहति सयणविरइयपराभवं पोरिसेक्करसा ॥ ६४ ॥ ता उद्दालेमि सिरिं करवालबलेण अक्कमिय तायं । हा हा ! न जुत्तमेयं उत्तमवंसप्पसूयाणं ॥ ६५ ॥ ता वच्चामि विएसं ति चिंतिउं माणसाहससणाहो । गमणेकबद्धबुद्धी समुट्ठिओ सेणियकुमारो ॥६६॥ रहंतरयणहारो विरइयवरवीरपुरिससिंगारो । करकलियरिउवियारणरुहिरारुणकरकरवालो ॥६७॥ वंचियनियपरिवारो दूरं परिहरियपुरिससंचारो। नीहरिओ नयराओ रयणीए तुरियपहरम्मि ॥ ६८ ॥
१. विक्खित्ते-२०। २. कृतायुक्तम्। ३. गलिय० २० ।
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