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बद्धिवर्णनाधिकारे भरताख्यानकम्
काऊण तत्थ कवियाइ नियगाममणुपयट्टो सो । जा सिप्पसरिसमीवे समागओ ताव भरहेण ॥ २५ ॥ भणियं रोहय : पुडिया वीसरिया मज्झ हट्टमन्झम्मि । चिट्ठ तुमं जाव अहं गिण्हित्ता पडिनियत्तेमि ॥ २६ ॥ इय भणिय गा भरहे बालत्तणओ य रोहाण तओ । सिप्पसरिचालुयाए विणिम्मिया तेण उजेणी ॥ २७ ॥ एत्थंतरम्मि गया बलरेणुभपण अग्गए होउं । तुरयारूढो जा एइ तत्थ रोहेण ता रुद्धो ॥ २८ ।। हे आसवार ! पुरओ उज्जैणीहट्टमग्गमांझण । जियसत्तरायराउलमुल्लंघिय किह णु वञ्चिहिसि ? ॥ २९ ॥ ता विम्हइओ राया तं पुच्छड भद्द ! कत्थ उज्जेणी ?। अह रोहओ वि वालयविणिम्मियं तम्स दसेइ ॥३०॥
तथाहि
इह ताव हट्टमग्गो इह राउलमेत्थ हस्थिसालाओ । इह पासाया इह मंदुराओ तो तं निएऊण ॥ ३१ ॥ तम्स मइविहवरंजियहियओ हियए विचिंतए राया। एस मम मंतिमंडलसिरोमणित्तम्स 'जोगो त्ति ॥ ३२ ॥ . परिभाविऊण एवं पुच्छइ तं वच्छ ! कत्थ क्थव्वो ? ! कम्स। मुओ सो साहइ भरहलुओ हं सिलागामे ॥ ३३ ॥ तम्स वरवद्धिविहवं परिभावतो गओ निवो नयरिं । सो वि समागयपिउणा समन्निओ निययगामम्मि ।। ३४॥ अन्नदिणे नरनाहो वुद्धिपरिक्षणकए समाइसइ । पासायमेगर्थभं एगसिलाए कुणह मझं ॥ ३५ ॥ तो गामीणा सव्वे मिलिया परिसाए मंतिउंलग्गा । बुद्धिमपेच्छंताणं भोयणवेला अइक्वंता ॥ ३६॥ तो रोहपण भणिओ वच्चामो ताय ! भोयणनिमित्तं । आह पिया वि य तं वच्छ ! मुत्थिओ भणइ सो वि तओ ॥३७॥ तुम्हाणं किं दुक्खं ? भग्हो अक्वेइ खुद्दयाएसं । सो भणइ ताव भुंजह अयं पच्छा भलिम्सामि ॥ ३८ ॥ तो भोयणादसाण चउपासं रोहओ खणावेइ । एगसिलाए मज्झे थंभत्थूभं विहेऊण ॥ ३९ ।। इय एगथंभभवणं कारित्ता राइणो निवेइंति । आगंतुं नरनाहो हरिसियहियओ पलोएइ ।। ४०॥ अह विम्हिओ नरिंदो पुच्छइ नणु कम्स एरिसा वुद्धी ? । तो रोयम्स बुद्धिं ते वि हु साहेति गामीणा ।। ४१ ॥ अह अन्नया य राया मेंढं पेसिय भणावए एवं । जह एसो मासद्धं धरियव्यो एगमाणेण ॥ ४२ ॥ तो रोहएण मेंढो बाद जबसाइचारिओ संतो। जा जायइ अहियवलो ता इंसिज्जइ विरुयम्स ॥ ४३ ।। धरि जहुत्तदिवसे तं मिदं पढमदिवसवलकलियं । उवणिति य नरवइणो रोहयवुद्धि पयासंता ॥ १४ ॥ तव्यद्धिपगरिसेणं पमोयपरिपूरिओ पुहइपालो । अवरं खुद्दाएसेण पसिउं कुक्कुडं भणइ ॥ १५ ॥ जह जुझावह एयं असहायं रोहएण तो भणियं । दप्पणपडिबिंबेणं जुज्झावह तंबचूडं ति ॥ ४६॥ काऊण तयं रन्नो निवइए पुच्छियम्मि मइविहवे । साहति त विजह रोहयस्स तो रंजिओ राया ॥ १७॥ अवरं च पेसिऊणं तिलभरिए सगडए भणइ राया । तिलमाणेणं तेल्लं दायव्वं मझ तुन्भेहिं ॥४८॥ उत्ताणदप्पणेणं तिले गहेऊण रोहओ तेल्लं । तेणेव दप्पणेणं पेसइ रायम्स पासम्मि ॥ १९ ॥ आइसइ पुहइपालो पेसह वलिऊण वालुयावरहं । जुन्नवरहं समप्पह पडिछंदकर भणइ रोहो ॥ ५० ॥ अह संपेसइ राया मयपायं करिवरं भणावइ य । निच्चं पि गयपवित्ती कहियव्वा मरणपरिहीणा ।। ५१ ।। ते वि पइवासरं पि हु कहेंति रायम्स हथिवुत्तंतं । अह् अन्नया गइंदे मए भणावइ भरहपुत्तो ॥ ५२॥ देव ! गइंदो न चरइ न चलइ नो ससइ न वि य नीससइ । न पियइ न नियइ नवरं चिट्ठइ निच्चेट्ठसंठाणो ॥५३॥ तो पुहइवई पभणइ रे रे ! किं करिवरो मओ ? तयणु । जंपति ते वि सामी एवं वज्जरइ नो अम्हे ॥ ५४॥ भूओ भणियं पेसवह कूवयं महुरपाणियं निययं । तेहुत्तं मत्तो देव ! कृवओ पामरत्तणओ ॥ ५५ ॥ अम्हच्चओ तओ तं पेसमु नायरयकृवियं निययं । जेणाऽऽगच्छइ तम्मन्गलम्गओ सामिय ! सयण्हो ।। ५६ ॥ अवरमकंडे वणसंडमेत्थ पुवाए तं पि पच्छिमओ। कायव्वं तेण तयं पि गाममुच्चालिऊण कयं ॥ ५७ ॥
१. जोगु त्ति २० । २. भावितो २० । ३. उवणेति २० । ४. तिल्लुं रं० ।
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