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आख्यानकमणिकोशे
अह उम्गम्मि सूरे थाहायनो सपरियगो सेट्टी। जायुप्पाइ मइयं तो मग्गइ सो वि सेसधणं ॥३६॥ पंच सयाई दिलाई तुज्झ किं गग्गसे ? ति भणिऊणं । तो तं गलस्थिऊणं मइयं उप्पाडियं तेणं ॥३६५|| तो भणइ सेट्टिपुत्तो जह होही इह पुरे पहइपालो । ता सचिसेसं दव्वं गिहिस्सं तुह सयासाओ ॥३६६॥ तो दीणारसरणं दासियह? किणित्त वत्थाई। कय उन्मइसिंगारो गणियागेहं गओ रम्मं ॥३६॥ तं पविसंतं दटुं वसंततिलया समुट्टिया समुहं । उचूढजोव्वणा चमरधारिणी जा नरिंदम्स ॥३६॥ तीए समप्पड़ च उसयपमाणदीणारन उलयं सा वि । नियकुट्टणीए अप्पद संभालइ सा तमेगंते ॥३६९।। पुन्नाणि तत्थ पेच्छइ दीणाराणं सयाणि चत्तारि । तो विम्हइया चिंतइ अहह ! उदारो न से कोइ ॥३७०॥ सा जंपइ नियधूयं पडिवत्तिमिमम्स कुण सयं वच्छे ! । सा वि तहा निवत्तइ न्हाणा-ऽऽसग-भोयणाईयं ॥३७१॥ अह पत्तम्मि पओसे पविसइ सो वरबिलासभव णम्मि । कय उन्भडसिंगारा समागया सा वि पल्लंके ॥३७२॥ तं दट्टण विचिन्इ मित्ताणंदो विलासबसगाण | सिझंति न कज्जाइं ति चिन्तितं समाइसइ ॥३७३।। आणेहि पट्टमेगं जत्थुवचिसिउं करेमि भाणमहं । तो उवणीओ तीए तवणीयमओ मसिणपट्टो ॥३७४॥ . तत्थ पउमासणत्यो पिहिऊणं सियवडेणमत्ताणं । जा चिट्टइ ता पहओ रयणीए पढमओ पहरो ॥३७५।। पभणइ वसंततिलया सामि ! पसायं विहेलु मह इम्हि । अवगन्नि ठिओ सो ता पहओ बीयपहरो वि ॥३७६।। एवं तइय-तुरीया अइकता तस्स जामिणीजामा । पहए. पहायपडहे उद्वित्त गओ तडागम्मि ॥३७॥ ता कुट्टणी पयंपइ अमलियगत्ता किमज्ज तं वच्छे ! । सा वि हु साहइ तीसे निसाए निस्सेसवुत्ततं ॥३७८|| निमुणितु कासिमवयणा अका उलबइ नो थिरं दव्वं । ता अज रंजियव्यो विविहविलासेहिं सो वच्छे ! ॥३७९॥ एवं बीया तइया वि जामिणी जा तहवऽइकमइ । तो तुरियदिणे उग्गयदिणेसरे भणइ तं अका ||३८०॥ अणुरायरसियहिययं मह दुहियं किं विडंबसे सुहय ? । जा अणुवज्जियपुन्नाण दुल्लहा सुरवराणं पि ॥३८१॥ ता अमरदत्तमित्तो जंपइ जं भणसि अंब ! तं काहं । किंतु परिपुच्छियव्वं अत्थि तओ आह सा कहसु ॥३८२॥ सो भणइ रायकुमरी परियाणसि रयणमंजरीमंब ! । सा भणइ मह सुयाए वयंसिया चमरधारीए ॥३८३॥ जइ एवं ता अम्मो ! गंतूणं कह तीए मह चयणं । जह बंदियगिजंतं गुणनियरं अमरदत्तस्स ॥३८४॥ आयन्निकग संजायगरुयअणुरायरंजियमणाए । नियकरकमलेण लिहित्त पेसियं जइ इमं तुमए ॥३८॥ सामि ! तुह बंदिविंदप्पयासियं गुणगणं निसामंती । मयणानलजलियंगी संगमसलिलेण निव्ववसु ॥३८६॥ तो अमरदत्तकुमरेण पेसिओ पडिसरीरसरिसोहं । नियलिहियलेहजुत्तो त्ति जंपिए कुट्टणी भणइ ॥३८७॥ वच्छ ! करेमि समग्गं ति जंपिउं जाइ कुमरिभवणम्मि । तो रयणभंजरीए दटुं बोल्लाविया अक्का ॥३८८ अम्मो! अईवहरिसियहियया कि ? कहसु कारणं अञ्ज । सा आह तुज्झ वलहलेहेण तओ भणइ कुमरी ॥३८॥ को मज्झ वल्लहो ? कहनु अम्ब ! सा वि हु पवंचिउं अक्का । मित्ताणंदेण जहा तह साहइ तीए पुरओ वि ॥३९०॥ कि एयमघडमाणं विचिंतए रयणमंजरी जम्हा । न य को वि रायकुमरो मझगणे वल्लहो वसह ॥३९१॥ न य गुणनियरो कस्सइ निसाभिओ नेय पेसिओ लेहो । ता धुत्तविलसियभिणं ममापुरत्तम्स कस्सावि ॥३९२॥ जाणामि ताव कज सा वा उण करिता महाधुत्ता ? | परिभाविऊण एयं पयंपिया कुट्टणी तीए ॥३९३॥ मह वल्लहलेहकरो पुरिसो इह दंतवलभियाए तए । आणेयव्यो ति तओ मुणित्तु अक्का गया सगिहं ॥३९४॥ परितुट्ठमणा पमपाइ तुह कज्ज साहियं मए वच्छ ! । जंपइ मित्ताणंदो कह ? तओ काइ सा सव्वं ।।३९५।। गंतव्वं जाव तए तोए सयासे स आह आमं ति । सह तीए निसाए गओ संपत्तो रायदारम्मि ||३९६।। सा भणइ पुत्त : एत्तियमेत्तं मग्गं सुहेण पत्ताणि । पायार-पओलीथाणगाणि पिह पिहु पुरो सत ॥१७॥ ता दुप्पवेसमेयं सोउं सो भणइ कत्थ सा कुमरी ? । तो अक्का देक्खालइ वासगिहं तीए तप्पुरओ ॥३९८॥
१. दर्शयति ।
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