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आख्यानकमणिकोशे परियाणियपरमत्यो मुदसणो नेय चलइ भाणाओ । अभयाओसग्गेहिं बहुपवर्णहिं सुरगिरि व्व ॥१०६॥ अणुरायरसियहिययं अहिणवजोव्वणमणोहरसरीरं । वरमुरयकरणदक्खं सुवियर्ल्ड पवररूवं च ॥१०॥ किं बहुणा अमराण वि दुल्लहलंमं ममं तए पत्तं । माणेसु मगभिवंछिय विसएहि सामि ! कयकरुणो ॥१०७॥ अवरं च दंसणं पि हु न मम पावंति राय-सूरा वि । तं पुण मए सयं चिय आणीओ ता ममं रमसु ॥१०९॥ तं नाह ! मए निसुओ दयालुओ सावओ त्ति ता पसिय । रममु ममं अह न रमसि मह मरणे तुझ थीवझा ॥११०॥ एवं वुत्तो वि न जाव किं पि जंपइ सुदंसणो ताव । कंकल्लिपल्लवारुणकरकमलेहिं परामुसइ ॥११॥ परिरंभइ अइगाढं मुणालमुकुमारदीहरभुयाहिं । चक्कलपीणघणत्थणजुयलेण निपीडिऊण उरं ॥११२॥ तह कह वि कामतवियाए तीए संताविओ महासत्तो । अवरो जहा विलिज्जइ अग्गी इव मयणपुत्तलओ ॥११३॥ सो हि हु महाणुभावो जह जह सा पाविया कुणइ विग्धं । तह तह वि सुथिरचित्तो धम्मझाणं समारहइ ॥११४॥
तथाहि--
अमुणियसुइसम्भावा कुडिला उकंचुया महाभोगा । जीव ! भुयंगि व्व इमा खंडइ तुह सिद्धिपुरमग्गं ॥११५।। अवरं च असुइ-वस-मंस-पूय-रुहिरेहिं पूरियसरीरा । एसा ता जीव ! तुमं इमीए मा रच्चसु खणं पि ॥११६॥ चिंतइ य जइ इमाओ उम्सज्गाओ कहं पि मुंचेजा । पारेमि तओ अह नो होइ इमं अणसणं मम ॥११७॥ ता बद्धभीमभिउडीए पभणियं रूसिऊण अभयाए । जइ सावेक्खो नियजीवियस्स ता कुणसु मह वयणं ॥११॥ इय जंपिओ वि एसो धम्मज्भाणं झियाइ दढचित्तो । निम्सेसं पि हु रयणिं कयत्थिओ तह वि नो खुहिओ ॥११९॥ नाउं पभायपायं तमम्सिणिं तयणु तीए पावाए । तिक्खनहरेहिं निययं वियारिडं थोरथणजुयलं ॥१२०॥ पोक्करियं तो धावह धावह एसो नरो दुरायारो । खंडइ बलिपंडाए, अखंडियं सीलरयणं मे ॥१२१॥ तं सो उद्धाया पाहरिया मुक्कहक्कहुंहारा । काउम्सग्गेण ठियं सुदंसणं तत्थ पेच्छंति ॥१२२॥ न ह एरिसम्स एरिसकम्मं संभवइ इय विचिंते। विनत्तं नरवइणो राया वि समागओ तत्थ ॥१२३॥ संपुच्छिया य देवी पिए ! किमयं ? ति सा वि विन्नवइ । देव ! अहं एत्थ ठिया सरीरकारणवसेण तओ ॥१२४॥ आगंतणं इमिणा पावेण कयत्थिया बहपयारं । निन्भच्छिओ य निट टरवयणेहिं इमो मए नाह ! ॥१२५|| मड्डाए मज्झ सीलम्स खंडणं जाव काउमारद्धो । ताव मए पोकरियं तं सोउचिंतए राया ॥१२६।। जइ कहवि अमयकिरणो किरइ कराले जलंतअंगारे । तह वि सुदंसणसेट्टी न कुणइ असमंजसं किं पि ॥१२॥ इय चिंति नरिंदेण सायरं पुच्छिओ किमेयं ? ति । देवीअणुकंपाए न कि पि सो कहइ मणयं पि ॥१२८॥ एवं पुणो पुणो वि य पुट्टो वि निवेण जंपइ न किं पि । संभाविज्जइ एयं पि मनितो नरिदेण ॥१२९।। सो वझो आणत्तो भणिपउराण दोसमेयस्स । सयलं पयारिऊणं तो वावायह दुरायारं ॥१३०॥ गहिऊण तओ आरक्खिएहिं रत्तंदणेण परिलित्तो । खित्ता सरावमाला गलम्मि मसिपुंडयं रइयं ॥१३१॥ विहिया य मुंडमाला सुरत्तकणवीरकुसुममालाहिं । आरोहियों य रासहपिट्टि सिरिधरियछित्तरओ ॥१३२॥ वजंतडिंडिमेणं पारद्धो भामिनयरिमझे । उग्घोसिज्जइ एयं रच्छामुह-तिय-चउक्केसु ॥१३३॥ निसुणंतु जणा अन्तेउरम्मि चुक्को सुदंसणो सेट्टी । तेण इमो मारिजइ नय अंवराहो नरिंदम्स ॥१३४॥ तं निसणि समग्गो परजणो मिलिय भणि उमाढत्ती । ह द्धी किमयमेयस्स आगयं सुद्धसीलम्स ? ॥१३५॥ जइ अमयं पि हु परिणमइ कहवि हालाहलम्सरूवेण । तहवि सुदंसणसेट्टी न कुणइ एयारिसमजुत्तं ॥१३६॥ एवं बहुप्पयारं साहुक्कारं जणाओ निसुणंतो । पेच्छंतो परजणं रुयमाणं थूलअंसूहि ॥१३७॥ संपत्तो नियमंदिरपओलिदारम्मि जाव ता दिहो। दइयामणोरमाए धसकियाए किमेयं ? ति ॥१३८॥ हा हा हयविहि ! विहियं मह पइणो कि तए अदोसम्स ? । संभाविजइ सुविणे वि जं न कइया वि एयस्स ॥१३९॥
१. चन्द्रसूर्यावपि । २. पविलित्तो -२०।३. आरोविश्रो-२० ।
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