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१३. नमस्कारपरावर्तनफलाधिकार सुदर्शनाख्यानकम्
१४३ भणियं विलक्खवयणाए एरिसं पहसिऊण कविलाए । जइ कामसत्थदक्खा सि ता इमं तं पि कामेसु ॥७४॥ देवीए तओ भणियं किमत्थ चोज्जं ? करेमि अहमेयं । कविला वि भणइ मा कुण अइसयसोहम्गगारवयं ।।७।। पभणइ अभया सो कुणइ जम्स निययं समत्थि सामत्थं । जाणे तुह सामत्थं जइ रमसि इमं भणइ इयरा ||७६।। देवी वजरइ इमं जइ नो कामेमि रइवियटुं तं । ता पजलियहुयासे पविसिय पाणे परिचयामि ||७|| एवं विवयंतीओ ताओ गंतूण मणहरुज्जाणे । सुइरं रमिऊण तहिं पत्ताओ निययगेहेमु ॥७८॥ भणिया अभयाए तओ नियधाई पंडियाभिहा एवं । अम्मो ! अज्ज पइन्ना एवंरूवा मए विहिया ॥७९॥ ता तह जएसु जह होइ मज्झ सह तेण भत्ति संपत्ती । धाईए तओ भणियं न हु सुट टु कयं तए पुत्ति ! ॥८॥
जओ--
अवि चलइ कह वि कुम्मो खिसइ वराहो नमेइ फणिनाहीं । खडखडइ धरणिवीदं न वि चलइ सुदंसणो तह वि ।।८१॥ जम्हा स महासत्तो परमहिलासंगविहियविणिवित्ती । इह-परलोयविरुद्धं न कणइ सुविणे वि कइया वि ॥८२॥ आणित्तमुवायाणं लक्खेण वि सो न तोरए तम्हा । मन्नेमि तुह पइन्ना विहला वच्छे ! न संदेहो ||८३॥ देवीए पुणो भणियं जइ एवं तहवि एकवारं तं । आणेहि तओ पच्छा तेण सममहं भलिम्सामि ।।४।। तो पंडियाए भणियं जइ एवं तुज्झ निच्छओ वच्छे ! । ता अस्थि एत्थ एक्को पवरउवाओ जओ एसो ॥८५॥ पव्वदिवसेसु गंतुं सुन्नहर-मसाणपभिइठाणेसु । चिट्ठइ काउस्सग्गे आणिजउ ता तह ठिओ वि ॥८६॥ देवीए तओ भणियं उवलद्धो अंब ! सुंदर उवाओ। अह अन्नया पुरीए समागए कोमुईदिवसे ॥८७।। तो नरवइणा पडहो पुरीए घोसाविओ वरूजाणे । सव्वेण नयरिलोएण सव्वरिद्धीए गंतूण ||८८॥ पेच्छेयत्वो कोमुहमहूसवो तं सुदंसणो सोउ । चिंतइ एगत्थ महो चाउम्मासं अहऽन्नत्थ ॥८९॥ पेच्छामि कोमुइमहं जइ ता न हु होइ देवयापूया । अह धम्मभाणमहं करेमि तो रूसए राया ॥९॥ एगत्थ गयआणाभंगो अन्नत्थ धम्मझाणस्स । ता भमिरतुंबअरयाण अन्तरे अंगुली मज्झ ॥११॥ ता पुत्वं पि हु कीरउ कोइ उवाउ ति चिंतिऊण गओ । रायपुरो उवणेउं उवायणं भणिउमाढत्तो ॥९२।। देव ! इह कोमुइमहे दियहो अम्हाण धम्मकजाणं । तो जइ कुणइ पसायं सामी ता पूइमो देवे ॥१३॥ मा होउ देवयाणं पूयाविग्धं ति चिंतिऊण नियो । अणुमन्नइ तो सेट्ठी महापसायं पयंपेउ॥९४॥ गंतूण तओ सव्वे जिणेसरे पूइपओसम्मि । कयपोसहो ठिओ सो उम्सग्गे चच्चरे गंतुं ॥९॥ तो पंडियाए अभया भणिया तुह अज्ज वंछियं वच्छे ! | पुज्जिस्सइ नियमेणं मा गच्छसु मणहरुज्जाणे ॥१६॥ तो देव ! मझ सीस पीडइ इय उत्तरं नरिंदस्स । दाऊण संठिया सा गओ नरिंदो वरुज्जाणे ॥९७|| तो पंडियाए लिप्पमयमयणपडिमा पिहित्तु वत्थेहिं । जावाऽऽणिया निरुद्धा झड़ ति ता दारपालहिं ॥९॥ किं एयं ति तओ तेहिं पुच्छिए कहइ पंडिया तेसिं । नो उजाणम्मि गया सरीरकारणवसा देवी ॥१९॥ काही ता इहई चिय पूयं देवाण तो इहाणीया । मयरद्धयस्स पडिमा इण्हि अवरा वि आणिस्सं ॥१०॥ जइ एवं ता दंससु पयंपिए तेहिं दंसिया तीए । मुक्का तेहिं तओ सा एवं च दुइज्जवाराए ॥१०१॥ वेलाए तइजाए सुदंसणं छाइऊण वत्थेहिं । तत्थ पविट्ठा नहु तेहिं निब्बियप्पेहि पडिसिद्धा ॥१०२।। अभयाए महादेवीए अप्पिओ तीए सा तयं दट्टुं । लग्गा बहुप्पयारं सविन्भमं खोहिउं एवं ॥१०३॥
तथा हि
पिययम ! महापसायं काऊणं कुण समीहियं मम । आणाविओ सि जम्हा तमेत्थ पडिमापवंचेण ॥१०४॥ तुहविरहविसमविसपरवसाई धुम्मति मज्झ अंगाई। निययालिंगणअमएण कुणसु ता नाह ! पउणाणि ॥१०॥
१. गच्छउ २०।
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