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आख्यानकमणिकोशे
सा अलहंती सोक्खं कत्थइ नियपरियण कविल्भज्जा । अहिलसइ तस्स संगममणुदियहमुवायकोडीहिं ॥४॥ अह अन्नदिणे गामम्मि पेसिओ पुहइसामिणा कविलो । कविला तओ सुदंसणपासे गंतुं इमं भणइ ॥४१॥ तुह मित्तम्स निसाए अइपउरसरीरकारणं जायं । तो एस तुह सयासे न आगओ पेसिया अहयं ॥४२॥ तुह हक्कारणकजे जम्हा सो तं विणा मणायं पि । न तरइ ठाउता एहि तस्स पासम्मि तो एसो ॥४३॥ न मए नायं ति पयंपिऊण चलिओ ससंभमो झत्ति । संपत्तो तम्भवणे भणइ तओ कत्थ मह मित्तो ? ॥४४॥ कविलाए पभणिओ सो मज्झे भवगस्स तो गओ तत्थ । पुणरवि पुच्छइ एसो सा आह तइज्जयम्मि खणे ॥४॥ तत्थ वि य अपेच्छंतो पुच्छइ कविला वि भवणदाराणि । ढक्कित्तु उत्तरीयं मेल्लइ पल्लंकपज्जन्ते ॥४६॥ सविलास-सविन्भम-सरल-तरल-सकडक्ख चक्खुखेवेहिं । कब्बुरयंती पभणइ सुदंसणं महुरवयणेहिं ॥४७॥ न ह एत्थ (अस्थि] कविलो पडिजागरणं करेसु कविलाए । किं पडिजागरियव्वं कविलाए सुदंसणो भणइ ॥४॥ सा आह सुहय ! कविलेण साहिया जप्पभीइ तुझ गुणा । तप्पभीइ मयणबाणानलेहिं तत्ता तणू मज्झ॥४९॥ एत्तियकालं तुह संगमुस्सुया संठिया सुदुक्खेण । इम्हि तु नोह नियअंगसंगसलिलेण निव्ववसु ॥५०॥ तत्तो सुदंसणेणं सम्भावं जाणिऊण कविलाए । नियसीलरक्खदक्खेण तक्खणुप्पन्नबुद्धीए ॥५१॥ भणियं सविसाएणं सुयणु ! समीहेमि संगमं तुझ । किंतु नियदुकियकम्मेण निम्मिओ पंडओ अयं ॥५२॥ अलियकयपुरिसवेसो वसामि नयरीए तो विरत्ताए। 'उग्घाडिउं कवाडे झड ति नीसारिओ तीए ॥५३॥
संपत्तो नियभवणे सुदंसणो नियमणे विचिंतेइ । अहह ! अहो ! महिलाणं अकजकरणुज्जमो अहियं ॥५४॥ तहा हि--
न गणइ कुलाभिमाणं न य इहलोगं न यावि परलोगं । नियकुलकलंककारी नारी चल्लंतिया मारी ॥५॥ महिला अयसनिवासो कवड-कुहेडाण मंदिरं महिला । महिला नरयमहापुरपायडपयवी विणिहिट्ठा ॥५६॥ मुहमहरा परिणइदारुणा य दीसह मणोहरा महिला । किंपागफलसरिच्छा महिला मूलं अणत्थाणं ॥१७॥ कंदररहिया वग्धी विसूइया भोयणं विणा महिला |पंक विणा वि कलंको महिला वयणिज्जकुलभवणं ॥१८॥ महिला मोहवरहिया अरज्जयं बंधणं जए महिला । खणरत्त-खणविरत्ता हलिद्दरागोवमा महिला ॥५९॥ करिकन्नचवलचित्ता कयंतचित्तं व निग्घिणा महिला । महिला सच्चविरहिया अणभवज्जासणी महिला ॥६०॥ ता कहमिमीए छलिओ पावाए चिंतिऊण नियमेह । एगागी परगेहे न गमिस्सं जावजीवाए ॥६॥ तद्दियहाओ जाओ विसेसओ धम्मकम्मकयचित्तो । अह अन्नया कयाई इंदमहो आगओ तत्थ ॥६२॥ समुदसणो सकविलो सपरियणो सावरोहणो राया। नीहरिओ नयरीओ उज्जाणसिरिं समणहविडं ॥३॥ एत्तो य रायदइया अभया कविलाए संगया तइया । संचलिया उज्जाणे महरिहजपाणमारूढा ॥६४॥ दइया सुदंसणस्स वि परियरिया छहिं सुएहिं संचलिया । आरुहिय महाजाणं रणंतघंटारवविसिढें ॥६॥ दट्टण तयं कविलाए जंपियं देवि ! कहसु का एसा ? नियसोहापहसियतियससुंदरी पुत्तपरियरिया ॥६६॥ देवी तओ पयंपइ हला ! तए किं न याणिया एसा ? । सेट्टिसुदंसणदइया विक्खाया खोणिवीढम्मि ॥६७॥ कविला आह इमा जइ तव्भज्जा ता इमीए ने उन्नं । उप्पाइयाणि जं एत्तियाणि वरपुत्तभंडाःि ॥६॥ वजरइ तओ देवी किं ने उन्नं ? नियम्स दइयम्स । आसाइयमुरयाए अक्खयबीयाए जं पुत्ता ॥६९|| उल्लवइ तओ कविला संभवइ इमं परं इमीए पई । संढो ति तओ देवी भणइ कहं जाणिओ तुमए ? ॥७॥ विन्नासिओ इमेणं वुत्तंतेणं इमो मए सक्खं । हसिऊण भणइ अभया हलि ! डोडिणि ! मूढमइविहवे ! ॥७॥ वरकामसत्थविन्नाणविरहिया तेण रइवियड्डण । तं वंचिऊण चत्ता अवरं च इमं पि संभविही ॥७२॥ होही नपंसओ सो जावजीवं पि परकलत्ताण । निययकलत्ताण पुणो निच्चं चिय कुसुमबाणो व्व ॥७३॥
१ उग्धाडियं -२०। २. डोदिणि !-खं० ।
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