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१३. नमस्कार परावर्त्तनफलाधिकारे सोमप्रभाख्यानकम्
ते पेच्छिवि सो संखु जाव, छलियउ मंताद्द्विदेवि ताव | कंपंतु जाव मंडलए पडिउ, तो उदयगिरिहिं दिणनाहु चडिउ । एत्यंतरि पत्त लोहनंदि, रतंबरु पणयहं विहियनन्दि | तव तत्थ सोते दिदु, कुवि विज्जासाहणि इह बटू टु ॥ उवसग्गहि चलियर, विज्जए छलियउ, इय जाणिवि रत्तंवरिण । वरमंतपओगिहिं, मूलियजोगिहि, परणीकड सो आयरिण ॥ १२ ॥ उवयारि भणिवि रक्तंचरम्स, सो नमिउ कमेहिं करुणाय रस्स । तोपुच्छतिं किं भद्द एउ ?, तेण वि तसु अक्खिउ न किउ खेउ | तो चल्लि रिट्ठउराभिमुह, चिंतंतु विसन्नउ दीणमुह् ।
पडिकूल मज्झु किह पेच्छ विही ?, न वि होड़ पुन्नसंच सविही । जायद संपय अप्पमाण, महु होइ विवय मरणावसाण । ता किं भमेमिं संतरम्मि ?, इहि पि जामि नियपुरवरम्मि । गमण अहव किं निययनयरि, विलसिरसुहि- सज्जण-बंधुनियर ? । वरि निद्धणु उच्चधिवि मरउ, मा बंधवधरिहि कुकम्मु करउ ॥ जीवं विद्धि, विद्धणु, मुयह समाणु गणिज्ज | स्वर्ग-सुणय समूहिहि, सहुवजूहिहिं, जइ इम्वइमवि खज्जइ ॥ १३ ॥ ता अज्ज विकिज्जउ पुरसियारु, पेच्छिज्जउ मा बंधवनियारु । आराहिमि देव कावि पवर, जा देइ दविणु होएवि सवर । तो चलिउ रिट्टउरकाणणम्मि, चामुंड दिट्ट तहिं तो मणम्मि । चितइ आराहिमि एह देवि, अदरिदु करइ जिं दविणु देवि । इय चिंतिऊण सो संझयालि, तं नमिवि भणइ हउं कलिउ कालि । तु भव ! दुक्खदुक्खहरणि !, पयपणयजणह कल्लाणकरणि । मह दुक्खियम्स विविनडियस्स, दारिद्दमय रहर निवडियस्स । इय पिऊण सो तीए पुरउ, ठिउ निवडनिपाई (?) धरणिनिरउ || तो पहियतरणिहिं, तमभरि स्यणिहिं, गरुयमभ्गपरिसंतद् । तमु निद्द समागय, देविहिं संगय, निम्मलगुण समरंतरह ॥ १४ ॥ एत्थंतरि रायह वाररमणि, गच्छंती पेच्छिवि निययभवणि । तो केणवि तक्खणि तक्करेण तहिं कन्नजुयल तोडिवि करेण । वरकुंडल हाराऽऽभरणु लेवि, उज्जाणि नट्टु भड्डयणु छलेवि । तत्थेव देविमंदिर पविट्टु, तमु पासि दच्छु मिल्लिचि बट्टु । तो वेदिविटियभड देविभवणु, उग्गयउ जाव गयणयलि तवणु । तो तेहिं दिट्टु दिउ दच्छजुत्तु, संगहिउ चोरु जाणिव निरुत्तु । तो तेण पर्यपि संभ्रमेण, हउं चोरु न बंभणु कारणेण ।
देसंतरि पत्थिउ पयइसच्छु, इह सुत्तह केणइ मुक्क दच्छु ॥
तो तकरु बंधिवि, बंभणु संधिवि, दो वि नीय रायह भवणु । तेहिं अक्खड रायह, निवनयपायहं देव! चोरु आयहं कवणु ? ||१५||
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