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आख्यानकमणिकोशे
तग्गुणरंजियचित्ता पणंगणा भणइ देवदत्ता सा । वामणय ! मणो मह गीयलालसं कुणमु सकयत्थं ॥ ५१ ॥ उद्दामरणंगणवीरपुरिसचरियाणुसारिचरिएण | सर- गामविहियमुच्छेण तेण आसारिया वीणा ॥ ५२ ॥ तो कुमरगीय संजाय परवसा हरियमाणसा सहसा । तडवियकन्नजुयला करिणी परिहरिय करकवलं ।। ५३ । संजयविम्या सा चिंत हिययम्मि अत्तणो गणिया । एवंविहगुणकलिओ सामन्नो होइ न हु एस ॥ ५४ ॥ ता कारणेण केणइ होयन्वमवस्स एत्थ रूवम्मि । इय चिंतिऊण हियए वामणओ तीए भोयविओ ॥ ५५ ॥ तो भोयावसाणे गते नेहनिव्भरं भणिओ । कहमु नियकुल- परक्कमपरमत्थं मज्झ एताहे ॥ ५६ ॥ तो ते नेहरंजियमणेण सव्वं पयासियं तीए । उग्गलियगुडियभावा संजायसहावरूवेण ॥ ५७ ॥ सम्भावरूयरंजियमणाए तो तीए देवदत्ताए । तरुणियणजणियकामो कामो व्व रईए सो दिट्टो ॥ ५८ ॥ पणइ य नेहसारं सा रंजियमाणसा विणयनियरा । सह रयणाहरणेहिं जीयं पि हु मह तुहाऽऽयत्तं ॥ ५९ ॥ अवहरियपरोप्पर माणसाण अन्नोन्ननेहसाराण | जा जाइ कोइ कालो परिवज्जियअवरकज्जाण ॥ ६० ॥ तो तीए अइपसंगं नाऊणं 'कुट्टणी भणइ इवं । परिहरसु पुत्ति ! एयं धणहीणं नाणदुवियङ्कं ॥ ६१ ॥
पाएण इयररमणी वि रच्चए उत्तमे वि न दरिद्दे । वेसाण पुण विसेसो नियदेहविदत्तदविणाण ॥ ६२ ॥
कयकूडकवडचाडुयरइकलिया कोढियं पि कामेइ । परिहरइ रविरत्ता धणहीणं कामएवं पि ॥ ६३ ॥ वीणा - विणोय- चिन्नाणपगरिमुप्पन्नकित्तिरमणीयं । जइ वि हु एयं तह वि हु धणहीणं पुत्ति ! परिहरसु ॥ ६४ ॥ तो भणइ देवदत्ता बहुवेणिपरंपरागया एसा । किं अम्मो ! किज्जिस्सइ रिद्धीकारट्टए तुज्झ ? ।। ६५ ।। तो तत्थ निवस सुरवइअयलो व अयलवरसेट्टी । सइभद्दसालकलिओ वररयणो कणयकडओ य ॥ ६६ ॥ सो अन्नया य गणियं वसंतमासम्मि विविहकीलाहिं । उज्जाणे कीलंतिं पेच्छन् सह मूलदेवेण ॥ ६७ ॥ तोचि सो हियए कह होही संगमो मह इमाए ? | अहवा दवुवयारो पणंगणाणं वसीकरणं ॥ ६८ ॥ इय चिंति पयट्टो तीए उचयरिउमत्थजाएण । उवरोहकयसिणेहा सा विहु अभिरमइ तं अयलं ।। ६९॥ एवं च जंति दियहा सद्धिं अयलेण देवदत्ताए । परमश्चंत सिणेहा सया वि सा मूलदेवम्मि ॥ ७० ॥ अह सा पुणरवि भणिया अक्काए निद्धणेण किह वच्छे ! ससएण व खोडेणं अणेण वणवाडओ रुद्धो ? ॥ ७१ ॥ तो भइ देवदत्ता गुणेहिं रत्ता धणम्मि न हु अंब ! | अंबा वि भणइ वच्छे ! अयलो वि हु गुणगणावासो ॥ ७२ ॥ तो भइ देवदत्ता जइ एवं अंब ! किज्जउ परिक्खा । इय भणिए नियदासि चवलं अयलम्म पेसेइ ॥ ७३ ॥ भइ तओ सागंतुं पुरओ सेट्स्सि वयणमिणमेवं । जह तुज्झ वल्लहाए इक्खहिं पओयणं अज्ज ॥ ७४ ॥ तो अलो इक्खूणं सगडं भरिऊण पेसए तीए । तो भणइ देवदत्ता पेच्छाहं अम्ब ! किं करिणी ? ॥ ७५ ॥ जेण सडाल-समूलयइक्वूणं सगडयं भरेऊणं । मह पेसिय-न्ति विन्नाणपगरिसं पेच्छ अयलस्स ॥ ७६ ॥ संपइ पुण विन्नाणं अम्ब! मिरिक्खेमु मूलदेवस्स । इय भणिउं तं दासिं संपेसइ मूलदेवम्मि ॥ ७७ ॥ तो सा साहइ गंतुं जूयफलयम्मि मूलदेवस्स । जह तुज्झ अज्ज दइया इच्छूवछं समुवह ॥ ७८ ॥ तो तेण वराडगदसदुगेण एगं गहाय वरलटिं । सिग्घमसिधेणुछोल्लियगंडलए काउमचिरेण ॥ ७९ ॥ अवरवराडगदसदुगसंगहियसराव संपुडे खिवइ । पक्खिविय चारजायं सूलानुं पोइउं तत्तो ॥ ८० ॥ पट्टवइ तीए तग्गुणरंजियहियया पजंपए सा वि । जूयार - अयलविन्नाणअंतरं एरिसं अंब ! ॥८१॥ तो कुट्टणी विचितइ केण उवाएण मज्झ गेहाओ । नीहरिही ? इय चिंतिय एगंते भणइ तं अयलं ॥ ८२ ॥
१. कु.ट्टिणी - रं० । २. सुरपतिचलः - मेरुः । ३. अज रं० । ४. कुट्टिणी रं० ।
तथा च-
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