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२. दानस्वरूपवर्णनाधिकारे चन्दनार्याख्यानकम् चितइ य
सव्वो वि जणो पायं अहिणववत्थुम्मि कुणइ अणुरायं । चिरपरिचियमवहीरइ ता जइ एसो इमं भज्जं ॥२०॥ कुणइ गुरुरायरत्तो गेहम्स असामिणी अहं होमि । इय सा तीए पावा चिट्ठइ छिड्डाइं जोयंती ॥ २१ ॥ सो सेट्टी मझण्हे चीहीओ आगओ गिहे विजणे । एगम्मि दिणे नत्थि उ कोइ वि जो सोयई चलणे ।। २२ ।। ताहे चंदणबाला उवठ्ठिया तत्थ पाणियं घेत्तु । वारंतम्स वि य बला आढत्ता सोइउं चलणे ।। २३ ।। एत्थंतरम्गि तीए छुट्टा केसा सहावसोहिल्ला । पडिहिंति कद्दमे इय चिंतेउं सेटिणा झत्ति ॥२४॥ हत्थट्टियलीलाजट्टियाए धरिया तहेव बद्धा य । ओलोवणोवविट्ठा मूला चिंतेइ तं दट्ठ ॥२५॥
नूण विणटुं कजं ता तरुणो चेव छिज्जए वाही। जइ पुण परिणेइ इमं ता मज्झ मुहे भवइ छारो ॥२६॥ अन्नं च
वरि हउं मुय वरि हउं म जाय वरि विसहरि खद्धी, वरि उब्भिय सूलियहिं भिन्न वरि हुयवहि दद्धी । वरि उबंधिय रुक्खडालि वरि खड्डुर्हि घल्लिय । मैं मई दिट्ट सवत्तिजुत्त पिउ हियडासल्लिय ॥२७॥ इय एवमाइ चिंतिय सेट्टिम्मि विणिग्गए गरुयरोसा । निद्दयचित्ता पहणइ सिरं च मुंडावए तीए ॥२८॥ नियलेहि य बंधावइ चलणेसुं ओयरम्मि पक्खिवइ । पभणइ जो सेट्टिम्सा साहिस्सइ सो ममं वइरी ॥२९॥ गिहमागओ य पुच्छइ सेट्ठी भो ? चंदणा कहिं चिठे । मूलाए य भएणं न परियणो साहई कोइ ॥३०॥ सो मुणइ रमइ कत्थइ रतिं जाणाइ नवरि सा सुत्ता । बीयदिवसे न दिट्टा पुट्ठा य न केणई सिठ्ठा ॥३१॥ तइयदिणे परिकुविओ भणइ य मारेमि जइ न साहेह । ताहे एगा थेरी चिंतइ कि मज्झ जीएण ? ॥३२॥ सा जियउ महाभागा मज्झवि जीएण पाविया एसा । मूला जं सियबीयास सिलेहानिक्कलंकाए ॥३३॥ एईए इमं ववसई नरयनिमित्तं तओ य थेरोए । सेठिस्स जहावत्थं मूलाए चेठ्यिं कहियं ॥३४॥ सेठ्ठी वि अहो ! पावा मूला निद्धम्म-निद्दयसहावा । इय चिंतन्तो ओवरगदारमुग्घाडए सिग्धं ॥३५॥ दट्टुं तं सुसियंगि तिस-भुक्खकिलामियं सुदीणमुहं । रे जीव ! सहसु दुक्कयकम्मफलं एव भावंती ॥३६॥ बाहजलभरियनयणो गुरुदुक्खो पायए जलं थोयं । नियइ य भोयणजायं नत्थि य भवियव्वयवसेणं ॥ ३७॥ कुम्मास च्चिय दिट्ठा न य दिट्ट तत्थ भायणं किं पि । उम्सुगभावेणं चिय सुप्पे काऊण कुम्मासे ॥ ३८ ॥ पासेसु पुत्ति ! एए तुह भंजामि जाव नियले हैं । इय भणिय ते पणामिय लोहारघरं गओ सेट्टी ॥ ३९ ॥ सा तयवस्था सुमरिय पिउगेहं हथिणीव नियजूहं । मुत्ताहलसरिसाइं रोयइ अंसूणि मुयमाणी ॥ ४०॥ जणयविओगं पत्ता जणणीमरणं च बंधुविरहं च । परदेसमिममवत्थं हा हा ! देवस्स परिणामो ॥ ४१ ॥ ता रिसकुलजायाए तारिससीलाए एरिसं वसणं । ता नस्थि सा अवस्था कम्भवसा जा न संपडइ ॥ ४२ ॥ एवं चिंतेमाणी उद्धठिया गरुयदुक्खपन्भारा । पुरओ कयमुप्पा सा चिट्टइ पुरओ पलोयन्ती ॥ ४३ ॥ जइ कोइ एज अतिही ता अट्ठमपारणं करेमि अहं । एए च्चिय कुम्मासे दाउमवत्थोचिए तस्स ॥ ४४ ॥ एवं चिंतंतीए तीए पुन्नाणुभावओ सामी । संपत्तो तं दट्टुं खणेण जाया विगैयदुक्खा ॥ ४५ ॥ गुरुहरिसभरा चिंतइ दरिद्दगेहे हिरन्नवुट्टि व्व । संपत्तो मे भयवं कयपुन्नाए इहावसरे ॥ ४६ ॥ तो सुप्पं दरिसित्ता पयमेगं काउमेलुगाबाहिं । बीयं चंऽतो पभणइ भयवमणुग्गहह कुम्मासे || १७ ॥ पुन्नो अभिम्गहो मे दव्वाइचउन्विहो वि इय नाउं। कुम्मासम्गहणत्थं पसारिओ सामिणा पाणी ।। ४८ ।। दिन्ना य चंदणाए पंच य दिव्वाणि पाउभूयाणि । जिणपारणगं जायं पंचदिणेणूण छम्मासे ।। ४९ ।। देवा य सन्निवइया केसा तीए य वरतरा जाया । तुट्टा तडत्ति नियला सुवन्नमणिनेउरा जाया ॥ ५० ॥
१. विलसइ-खं० । २. विगयसोया-२० ।
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