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अन्नं च-
आख्यानकमणिकोशे
घयदाणसमयसज्जियहिययभंतरफुरंतपरिओसो । बंधड़ बंधुरबुद्धीए बोहिबीयं घणो धणियं ॥ ७२ ॥ अह घणसमए वित्ते पत्ते सरयम्मि विहसियायासे । धणसत्थवाहसत्थो मुत्थो संपत्थिओ पंथे ।। ७३ ।। पत्तो य वसंतपुरे कमेण गुरुययरबहुपयाणेहिं । विक्किय कयाणगाई बहुलाभो गयणमग्गो व्व ॥ ७४ ॥ कलकंठस उणकोलाहलेण विहरिय धणो वसंतो व्व । पुणरवि य खिड्पइट्टियनयराभिमुहं पडिनियत्तो ॥ ७५ ॥ पत्तो य तम्मि तन्नयरवासिनरनाहविहियपरिओसो । पंचप्पयारभोष उवभुंजतो गमइ दियहे || ७६ ॥ अह अन्नया जगत्तयसाधारणमरणमुचगओ जाओ । सुहदाणवससमज्जियभोगहलो मिहुणभावम्मि ॥ ७७ ॥ तत्तो य सुर महबल ललियंगय वइरजंघ मिहुणो य । सोहम्म वेज्ज अच्चुय चक्की सवट्टसिद्धे य ।। ७८ ।। एवं बारसभवे संसारसारसोक्खाइं । उवभुंजिऊण जाओ तेरसमभवे जिणो रिसहो ॥ ७९ ॥ भुंजितु रायलच्छ घेत् वयं विबोहिउं भविए । निट्टवियसेस कम्मो संपत्तो सासयं सोक्खं ॥ ८० ॥
॥ धनाख्यानकं समाप्तम् ॥ ५ ॥
इदानीं धन्यकाख्यानकस्यावसरः, तच्च दवदन्त्याख्यानके भणिष्यत इति क्रमागतं कृतपुण्यकाख्यानकमाख्यायते । तच्चेदम्
धरविल्यावासगिहे रायगिहे पवरनयर सिरितिलए । दरियारिमत्तवारणवियारणो सेणिओ राया ॥ १ ॥ सव्वंगसुंदराहिं सुनंद-चेल्लणविसिट्टभज्जाहिं । कलिओ रइ-पीईहिं व रेहइ सो कुसुमबाणो व्व ॥ २ ॥ निय बुद्धिपसरप डिह सुरगुरुणोऽभयकुमारमन्तिस्स । रज्जपमुहं समप्पिय भारं सो भुंजए भोए ॥ ३ ॥ एत्थेव मगहदेसे कम्मि वि गामम्मि दुग्गयमहेला । चारइ तग्गामे च्चिय तीए मुओ वच्छरूवाणि ॥ ४ ॥ अह अन्नदिने अडवीए वच्छरूवाण चारणगएण । दिट्टो उस्सग्गठिओ साहू अभिवंदिओ तेण ॥ ५ ॥ निच्चं पि साहु चरणारविंद सेवापवित्तगत्तस्स । वच्चति तस्स दिवसा अहन्नया कम्मि वि महम्मि ॥ ६॥ तम्गामपुरंधीणं सयासओ जाइऊण खीराइ । रद्धा तस्स निमित्तं तज्जणणीए पवरखीरी ॥ ७ ॥ उववेसिऊण पुत्तस्स अप्पियं खीरिपूरियं थालं । कज्जंतरेण केणइ तओ गया सा हिस्संतो ॥ ८ ॥ एत्थंतरग्मि साहू समागओ तग्गिहे तओ सो वि । भत्तिभरुन्भूयपभूयपुलयपरिपूरिओ संतो ॥ ९ ॥ उत्तमपत्तं साहू दाणं परमन्नमसरिसमिमं पि । इय चिंतंतो थालस्स उवरि रेहादुगं रयइ ॥ १० ॥ परमन्नस्सतिभायं मुणिणो देमि त्ति तो समुट्ठेइ । घेत्तूण खीरिथालं उच्छलिया तुच्छपरिणामो ॥ ११ ॥ आह इमो जइ कप्पड़ भयवं ! ता गिण्ह सो वि नियसुद्धिं । नाऊण धरइ पत्तं तिभागमेसो वि देइ तओ ॥ १२ ॥ परिभावइ अह थोवं वियरइ तो तम्स बीयभागं पि । पुणरवि चितइ जड़ खीरिभायणे किंचि अवररसं ॥ १३ ॥ गिण्हिम्सइ विहरंतो एसो ता पायसो विणस्सेहि । सो तम्स तइयभायं पि देइ उल्लसियबहुमाणो ॥ १४ ॥ तो बंदिउं मुणिदं उबविट्टो तम्मि चेव ठाणम्मि । साहुम्मि गए जणणी वि गेहमज्झाओ नीहरिया || १५ ॥ अवलोइऊण पुरुं तदवत्थं नृण भुत्तमेएण । इय चिंतिऊण तीए पुणो वि परिपूरियं थालं ॥ १६ ॥ रोरत्तणेण सव्वं भुक्तं तो निसि विसूइयाए मओ । मुणिदाणसमयसज्जियभोगफलो रायगिहनयरे ॥ १७ ॥ सो ववन्नो धणपालइन्भभद्दा कलत्त कुच्छिसि । उल्लवियं लोएणं कउन्नो कोइ इह भवणं ॥ १८ ॥ उपज्जिही समिद्ध धन-धन्नसमिद्धरयणरिद्धी हिं । वेलामासे भद्दा वि पसविया उत्तमं पुत्तं ॥ १९ ॥ विहियं वद्धावणयं वज्जिरवरतूरपूरियदियंतं । अह संपत्ते दसमम्मि वासरे तस्स इन्भेण ॥ २० ॥ उन्नाओ ति नामं विहियं जम्हा जणेण पुत्र्वं पि । भणियमिणं कयन्नो को वि हु उप्पज्जिही एत्थ ॥ २१ ॥
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