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आख्यानकमणिकोशे
पणवीस जोयणाई भद्दवई हस्थिणी गया तत्तो। मिलिओ नलगिरिहत्थी मुत्तघडी पाडिया एगा ।। २४२॥ उम्सिंघइ जाव तयं हत्थी ता हन्थिणी पवणवेगा। पणुवीसजोयणाइं गया पुणो नलगिरी पत्तो ॥ २४३ ।। तो अदरा मुघडीउ तप्पुरो पाडियाओ जा तिन्नि । ता संपत्तो कोसंबिनियपुरि उदयणनरिंदो ॥ २४ ॥ जाया य अम्गमहिसी वासवदत्ता इओ अवंतीए । केत्तियकालम्मि गए असिवग्गी दारुणो जाओ॥२४५ ॥ पज्जलइ उचल-इट्टाल-धूलिमाई वि सयलनयरीए । तण-कट्ट-करीसाणं का गणणा दाहजोगाण ? || २४६ ॥ तो पुट्ठोऽभयमंती तेणुत्तं खिवह एत्थ अवरग्गी । तह विहिए विज्झाओ समम्गनयरीए असिवग्गी ॥ २४७॥ लद्धो चरो तइज्जो तहा निहित्तो निवम्मि अभएण । अह अन्नया समुट्टियमसिवं अइभीसणं तत्थ ।। २४८ ॥ तो पुच्छह पुह इवई अभयं सो भणइ देव ! अत्थाणे । कयरायअलंकाराओ इंतु देवीओ सव्वाओ ॥ २४९ ।। जा का वि जिणइ तुम्भे दिट्टीए मज्झ सा कहेयब्वा । तह विहिए सव्वा विहु देवीओ अहोमुहीउ ठिया ।। २५० ॥ मोत्तण सिवादेवि निवेइयं तो निवेण अभयस्स । सो भणइ सा अवसणा निसाए आढगबलिं घेत्त ॥ २५१ ॥ चच्चर-च उक्क-रच्छा-गोउर-अट्टालपमुहठाणेसु । जत्थ समुट्टइ भूयं तस्स मुहे निव्यिसंकाए ॥ २५२ ॥ खिवियवो बलिकृरो तहा कए तो अवंतिनयरीए । जाओ असिवोवसमो तओ चउत्थो वरो लद्धो ॥ २५३ ॥ को चिट्टिही परगिहे ? इय चिंतिय अभयमंतिणा भणियं । चउरो वि वरा दिज्जंतु देव ! जे मज्झ पडिवन्ना ।। २५४ ।। आरूढो एगेणं खंधे नलगिरिकरेणुरायस्स । अवरेण तुमं मिठो तइएण सिवाए उच्छंगे ।। २५५ ॥ अवरमिह अम्गिभीरुयरहवरदारूहिं मह चउत्थेणं । वियरसु कट्ठाई चियाए जेण पविसामि निविन्नो ॥ २५६ ॥ नियमेणं गंतुमणो एसो एवं जओ परांपेइ । सम्माणिऊण मुक्को निवेण तो तेण पडिभणियं ॥ २५७ ॥ धम्मच्छलेण छलिओ तए अहं तं पुणो मए नियमा । रविणा दीवेण अवंतिपुरवरीलोयपच्चक्खं ॥ २५८ ॥ बंधेउं नेयव्यो त्ति 'जंपियं सो पुरम्मि रायगिहे । संपत्तो तो कइय वि दिणाणि तत्थेव गमिऊण ॥ २५९ ।। तरुणजणनयणमोहणअहिणवजोव्वणमणोहरंगीओ। गणियाओ दोन्नि घेत्तृण सो गओ नयरिमुज्जेणिं ॥ २६० ।। गुडियकयावररूवो रायदुवारम्मि आवणं घेत्तु । पारद्धो ववहरिउं अभओ अह अन्नदिवसम्मि ।। २६१ ॥ गच्छंतेण नरिंदेण ताओ गणियाओ गिहगवक्खम्मि । उवविट्ठाओ दिट्ठाओ भुवणअभहियरूवाओ ॥ २६२ ॥ सविलास-सविन्भम-सालसेहिं नेत्तेहिं ताहिं नरनाहो । आबद्धपंजलीहिं पलोइओ जा गिहं पत्तो ॥ २६३ ॥ तत्तो गणियासविलासनयणबाणेहिं सल्लियसरीरो । पेसइ ताण सयासम्मि दूइयं सा वि गंतूण ॥ २६४ ॥ जंपड़ जहा नरिंदो तुम्हाण समागमं समीहेइ । न कुणइ राया एयं ति ताओ कुवियाओ जपंति ॥ २६५ ॥ पुणरवि बीय-तइज्जम्मि वासरे दूइयाए तह भणिए । गणियाओ भणंति जहा बीहेमो भाउणो अम्हे ॥ २६६ ॥ परमेत्थ देवजत्ताए बाउलो सत्तमम्मि दिवसम्मि । सो होही तो राया मज्झण्हे एगगो एउ ॥ २६७ ॥ अभएण चंडपज्ज़ोयनामगो वाइओ कओ भिच्चो । वेज्जसयासे निच्चं निज्जइ एवं पर्यपंतो ॥२६८ ॥ भो नयरजणा ! तुम्हाण नायगो एस चंडपज्जोओ । निज्जइ बद्धो अभएण तयणु धावइ जणो सयलो ॥ २६९ ॥ किं एस इमं जंपइ ? पयंपिए भणइ अभयवरमन्ती । मझ कणिट्टो भाया कम्मवसा वाउलीहूओ ॥ २७० ।। अणुवासरं पि वेज्जस्स मंदिरे कारवेमि उवयारं । उज्जेणिजणो सब्यो एवं विस्सासिओ तेण ॥ २७ ॥ सत्तमदिणमझण्हे नरेसरो जा गवक्खमग्गेण । आरूढो ता बद्धो पच्छन्ननिउत्तपुरिसेहिं ।। २७२ ॥ पक्खित्तो पल्लंके वाहरमाणो तहेव अभएण | आणीओ रायगिहे खित्तो सेणियनरिंदपुरो ॥ २७३ ॥ तो बद्धभीमभिउडीभयंकरो सेणिओ पुहइपालो । आयड्डियकरवालो समुट्टिओ तम्स हणणत्थं ॥२७॥ पडिसिद्धो अभएणं पयंपए वच्छ ! कहा कि जुत्तं ? । तो भणइ अभयमन्ती देव ! महानरवई एसो ॥ २७५ ॥ ता सम्माणं काउं महरिहरिद्धीए तत्थ गंतूण । मुच्चइ तत्तो सेणियनिवेण विहियं तह च्चेव ॥ २७६ ॥
१. जंपिउं रं०। २. कइवह दिणाणि २०॥
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