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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
-इस प्रकार के शास्त्रीय निष्कर्षों को लक्ष में रखते हुए हिन्दी धातुओं का मूल तथा यौगिक की श्रेणियों में वर्गीकरण करना होगा. डा. ना. नागप्पा ने यौगिक धातु के तीन प्रकार बताये हैं : (क) मूल धातु से व्युत्पन्न धातु, (ख) संयुक्त धातु-जो दो या अधिक धातुओं के संयोग से बनती है, तथा (ग) नामधातु जो क्रियेतर शब्द से बनती है. . डा. उदयनारायण तिवारी गुरु जी द्वारा प्रयुक्त 'मूल' तथा 'यौगिक' शब्दों के विकल्प में "सिद्ध' तथा 'साधित' शब्दों का प्रयोग करते हैं. इनके अनुसार मूल रूप में सुरक्षित धातुएँ सिद्ध, तथा मूल में किसी प्रत्यय के योग से बनी धातुएँ साधित हैं.
डा. वर्मा, डा. तिवारी आदि विद्वान डा. सुनीतिकुमार चटर्जी द्वारा किये गए धातु-वर्गीकरण को अधिकृत मानकर चले हैं, जो इस प्रकार है:
| १ तद्भव (१) साधारण (२) उपसर्गयुक्त क | २ प्रेरणार्थक तद्भव मूल । ३ संस्कृत से गृहीत ( तत्सम, अर्धतत्सम ) । ४ संदिग्ध व्युत्पत्तिवाली ( देशज)
|- प्राचीन | १ आकारान्त प्रेरणार्थक । - *तद्भव | - मध्ययुगीन २ नामधातु*
- नवीन (क्रिया के अतिरिक्त, किसी ! - *तत्सम, अर्धतत्सम
अन्य व्याकरणिक रूप से
बनाई गई. ) यौगिक
-- विदेशी ३ संयुक्त एवं प्रत्यययुक्त । | ४ ध्वन्यात्मक
५ संदिग्ध
मूल (क) के अंतर्गत जिन्हें प्रेरणार्थक तद्भव कहा है वे धातुएँ हिन्दी में आकर सकर्मक बनकर रह गई हैं. अन्यथा इनका समावेश यौगिक के अंतर्गत करना पड़ता.
डा. उदयनारायण तिवारी ने उपयुक्त वर्गीकरण को ही साधारण शाब्दिक स्पष्टता के साथ माना है इसलिए उसको दोहराना आवश्यक नहीं.
धातुओं के वर्गीकरण का प्रयत्न शताब्दि से अधिक पुराने व्याकरणों में भी पाया जाता है. 'भाषा-चन्द्रोदय' (1855) के लेखक पं. श्रीलाल ने हिन्दी धातु को (1) सिद्ध धातु और (2) अनुकरण धातु - इन दो वर्गों में बाँटा था. सिद्ध धातु के अंतर्गत 'करना' तथा अनुकरण धातु के अंतर्गत हिनहिनाना, चिग्घारना आदि को स्थान दिया था. राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने
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