________________
आ. विश्लेषण तथा निष्कर्ष
२०७ इन धातुओं के साथ गुजराती की 25.7 प्रतिशत देशज धातुएँ प्राप्त हुई हैं। 1160 हिन्दी देशज धातुओं में से 310 पूर्ववती काल में अस्तित्व में थीं। गुजराती को अपनी देशज धातुओं की संख्या उज्लेखनीय रूप से बड़ी है ।
3.4 हिन्दी में 367 अनुकरणात्मक धातएँ हैं। ये कुल संख्या की 12.3 प्रतिशत हैं। इनके साथ गुजराती की अपनी 103 धातएँ मिली हैं। जो हिन्दी धातुओं की 30.8 प्रतिशत है। गुजरातो की अपनी अनुकरणात्मक
ख्या काफी बडी है। ऊपर निर्दिष्ट प्रतिशत केवल तलनात्मक दृष्टि से दी गई धातुओं का है। इनके 15 गुजराती रूपों में अर्थ या अर्थच्छाया की भिन्नता लक्षित होती है। हिन्दी की 367 अनुकरणात्मक वातुओं में से 87 पूर्व-प्रचलित हैं।
3.5 हिन्दी की 246 तत्सम धातुओं के साथ गुजराती की 122 धातुएँ मिली हैं। जिनका प्रतिशत क्रमशः 8.2 तथा 49.6 होगा। पांच गजराती रूप अर्थ या अर्थच्छाया की भिन्नता रखते हैं।
3.6 धातुकोश में दी गई अर्धतत्सम धातुओं में से अधिकांश काव्य में प्रयुक्त ते कुछ कालग्रस्त भी हैं। इनकी संख्या 238 है। हिन्दी की कुल धातुओं की ये आठ प्रतिशत हुई । इनके साथ रखने योग्य गुजराती रूप 96 हैं जिनमें से कई तत्सम हैं। ये धातुएँ हिन्दी अर्धतत्सम की 403 प्रतिशत हैं। इन हिन्दी-गुजराती अर्धतत्समों में केवल दो धातुओं के बीच ही अर्थभिन्नता पाई जाती है।
3.7 हिन्दी-गुजराती में प्रयुक्त होता विदेशी शब्दसमूह बड़ा है। परन्तु संज्ञा, विशेषण आदि की अपेक्षा क्रियाएँ कम मिलती हैं। इनकी केवल 93 धातुएँ ही हिन्दी में प्रयुक्त होती हैं जिनमें से अधिकांश अरबी-फारसी हैं। अंग्रेजी से तो केवल एक ही (नाम) धातु उतर आई है ('फिल्मा')। हिन्दी धातुओं में विदेशी धातुओं का प्रतिशत केवल 3.1 है। इन धातुओं के 22.5 प्रतिशत रूप गुजराती में भी प्रयुक्त होते हैं। इनमें से केवल दो धातुओं में अर्थभिन्नता पाई जाती है।
तुलनात्मक वर्गीकरण : अ
अर्थ या अर्थच्छाया की
हिन्दी की वर्गीकृत धातु हिन्दी संख्या
गुजराती प्रतिशत
भिन्नता रखनेवाली टिप्पणी संख्या* प्रतिशत
धातुएँ
877
29.4
78
तद्भव देशज
476 308
54.2 25.7
1160
39
अनु.
अनु.
367
367
12.3
12.3
103
हिन्दी की 310 देशज-धातुएँ पूर्व
प्रचलित हैं। हिन्दी की 87
अनु. धातुएँ पूर्वप्रचलित हैं।
103
30.8
30.8
15
15
हिन्दी की 87
8.2
122
तत्सम अर्ध सम विदेशी
246 238
8
96
49.6 40.3 22.5
93
3.1
21
6
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org