SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्कालीन धर्मात्माओं के मस्तिष्क रूपी क्षेत्र के तत्य ज्ञानरूपी बीज बोने में सिद्धहस्त थे और उनको उस समय इस कला का विशारद मानते थे । मूर्तियों की स्थापना की तिथि शक सं० १५०६ के फाल्गुण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया बताई गई है । यह तिथि मकबर सम्राट के शासन काल में जाकर पड़ती है। शक सम्बत का समकालीन विक्रम सम्वत भी इस लेख में कभी दिया हुआ था पर अब वह मिट सा गया है । इस लेख की तीन से लेकर ११ पंक्तियों में अकबर के सम्बन्ध में प्रशस्ति दी गई है। इस प्रशस्ति के आधार पर अकबर ने अपने शौर्य की पाक पारों दिशाओं में जमादी थी। यही नहीं उसने प्रपने विरोधियों के समूह रूपी अन्धकार का नाश किया था और नल, रामचन्द्र, युधिष्ठिर और विक्रमादित्य के समान प्राचीन राजाओं की उत्तम श्रेणी वाली ख्याति को प्राप्त कर लिया था। सम्राट अकबर भी हरि विजय सूरिजी महाराज के दया सम्बन्धी धर्मोपदेशों से इतने प्रभावित हुये कि उन्होंने अपने राज्य भर में १०६ दिन 'समारी' की माज्ञा प्रसारित करदी। इससे सब प्रकार के जीवों को अभयदान कम से कम वर्ष के १०६ दिन सब समय मिल गया । यह प्राज्ञा सम्राट अकबर द्वारा सन् १५८२ ई० को जारी की गई। इसके अनुसार पशुवध सारे राज्य में १०६ दिन में दण्डनीय अपराध था। इन १०६ दिनों में १५ दिन पर्युषण पर्व के, ४० दिन अपने जन्म दिवस के उपलक्ष में और वर्ष के ४५ रविवार सम्मिलित थे। बेराठ के जैन मन्दिर में स्थान पाने वाले शिलालेख में दानी इन्द्रराज की वैशखली के साथ साथ महात्मा होर विजयसूरि की वंशावली का भी उल्लेख है । हमें इस शिलालेख से यह भी ज्ञात होता है कि हीर विजय सूरिजी महाराज को संसार का गुरु उस समय कहा जाता था । यह उपाधि सम्राट अकबर ने Jain Education International ७२ उनके प्रति श्रद्धावनत होकर दी थी। इस उपाधि के साथ साथ सम्राट ने उन्हें एक ग्रन्थ भण्डार भी भेंट किया था तथा बहुत से बन्दियों को मुक्त करने का प्रादेश भी प्रदान किया था । शिलालेख में लिखा है कि यद्यपि हुमायूँ के पुत्र जलालुद्दीन अकबर के चरणों की रज मे विभूषित होने के लिये कश्मीर, कामरूप, काबुल, वदखशां, मरुस्थली, गुर्जराभा, मालव आदि के राजा लोग तत्पर रहते थे । श्री हीर विजय सूरिजी महाराज उन्हें अपने देवीरणों के कारण नतमस्तक करने में सफल हुये थे । यहां यह ध्यान रखने की बात है कि श्री हीर विजयसूरि की फतेह सीकरी जाकर अकबर से मिलने की घटना का उल्लेख तथा वर्ष की कुछ तिथियों पर राज्य भर में पशुवध बन्द करने की याज्ञा का उल्लेख देवविमल गरि रचित महाकाव्य हीर सौभाग्यम में बड़ी रोचक भाषा में वरिंगत है। इस ग्रन्थ में मुनिवर के विषय में काव्यमय विशद उल्लेख है । किन्तु जो तिथि पशुवध निषेध की इस काव्य में वर्णित हैं, वह बैराठ में प्राप्त शिलालेख में दी गई तिथियों से विभिन्न है यद्यपि इस महाकाव्य के १४ सर्ग के २६१ और २६३ श्लोकों में इन्द्रराज के निमन्त्रण पर श्री होर विजयसूरि द्वारा बैराठ में जैन मन्दिर की प्रतिमानों की प्रतिष्ठा का वन दिया हुआ है । इस महा काव्य का रचना काल ज्ञात नहीं है पर दोनों महा काव्य और शिलालेख के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर हम यह परिणाम निकाल सकते हैं कि महा काव्य वैराठ के शिलालेख के बहुत बाद रखा गया होगा । कुछ भी हो बैराठ का जैन मन्दिर तथा उनमें स्थान पाने वाला शिलालेख जैन संस्कृति तथा इतिहास की प्रारम्भ विधियां हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy