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________________ अपरिग्रह और समाजवाद • बिरधीलाल सेठी अपरिग्रहवाद अचेतन (प्रकृति ) से भिन्न चेतन तत्व (प्रात्मा ) के प्रनादि अस्तित्व को मानता है ( कि सुख दुख अनुभव करना अचेतन का गुण नहीं हो सकता ) जब कि समाजवाद प्रकृति को मूल तत्व मानता है, आत्मा को नहीं ( वह अचेतन से ही चेतन को उत्पत्ति मानता है ) । यही अपरिग्रहवाद और समाजवाद में सबसे बड़ा और बुनयादी अन्तर है कि जिसके कारण दोनों की "सुख क्या है" इस विषय की धारणा अलग अलग हो गई है। समाज को शोषणमुक्त करके भौतिक दृष्टि से सुखी सुख साधनों की वृद्धि ही उनका उद्देश्य है तथा उसकी " बनाने के लिए "समाजवाद" ( जिसे प्राधुनिक पूर्ति के लिए राज्य सत्ता पर मजदूर वर्ग के एकाधिपत्य भौतिक वाद या आधुनिक वैज्ञानिक समाजवाद भी कहते तथा उत्पादन के साधनों के समाजीकरण के लिए संघर्ष हैं) वर्तमान समय में अधिकांश देशों में किसी न किसी किया जाता है मौर संघर्ष में हिंसात्मक उपायों की भी रूप में अपनाया जा रहा है। इसके प्राचार्य कार्ल मार्कस प्रावश्यकता हो तो उनका भी प्रयोग किया जा सकता है के अनुसार इसका ध्येय ऐसी वर्गहीन समाजव्यवस्था और किया गया है समाजवाद में कोई भी व्यक्ति स्थापित करना है कि जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्य- निठल्ला या बेरोजगार नहीं रह सकता और वयक्तिक तानुसार काम करे और अपनी प्रावश्यकतानुसार संपत्ति भी समाजवाद के लिए असह्य है । समाजवाद भोगोपभोग के पदार्थ प्राप्त करे। इसका चरम लक्ष्य ऐसे मानता है कि व्यक्ति समाज के लिए है। व्यक्ति समाज राज्यसत्ता रहित समाज (Stateless society) की का एक कलपुरजा मात्र है, उसका कोई स्वतंत्र महत्व स्थापना है कि जिसमें मानव समाज एक सम्मिलित नहीं है। कुट्रम्ब के रूप में बदल जावे और कोई भी व्यक्ति, वर्ग समाजवाद का सर्वप्रथम और महत्वपूर्ण प्रयोग या समुदाय दूसरे व्यक्ति, वर्ग या समुदाय का शोषण सोवियत रूस ( सोवियत समाजवादी गणराज्य ) में नहीं कर सके । उनकी मान्यतानुसार प्रकृति ही मूल हुमा है। वहां सशस्त्र क्रांति के द्वारा रूस की जारशाही तत्व है (मात्मा नहीं) और उनके द्वारा प्रतिपादित, का अंत किया गया तथा पूंजीपति और जमींदार वर्गों विकास की द्वदात्मक प्रणाली, इतिहास की भौतिक को समाप्त कर दिया गया। उनके संविधान के अनुसार व्याख्या और वर्गसंघर्ष के सिद्धांतों के अनुसार आर्थिक शासनतंत्र में प्रजातंत्रीय पद्धति से चुनाव होते हैं । प्राधार पर ही शोषण करने वाले और शोषित वर्गों के प्रत्येक वयस्क को चाहे वह समाजवादी पार्टी का सदस्य बीच समाज में संघर्ष रहता प्रारहा है प्रतः उनका है या नहीं, मत देने का समान अधिकार है। मतदान इष्टिकोण केवल प्रार्थिक है और भौतिक सुख एवं भौतिक गोपनीय प्रणाली से होता है। परन्तु श्रमिक वर्ग ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
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