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३. लौकिक होते हुए भी इनमें प्रलौकिक तत्व की १०. विश्व प्रेम की भावना के विकास में इनका योगदान प्रधानता है ।
बड़ा महत्वपूर्ण हैं। ४. भौगोलिक ज्ञान की दृष्टि से ये काव्य महत्वपूर्ण है। ११. साहित्यिक, धार्मिक, नैतिक, एवं दार्शनिक, दृष्टि
से उपयोगिता असंदिग्ध है। ५. 'शील' एवं 'चित्त' जैसे भावों को दूत बनाया गया है, जो कि एक सर्वथा नवीन प्रयोग है।
इस प्रकार जैन संदेश काव्यों की कुछ निजी विशेष६. 'मेघदूत' के मूल भावों को पूर्ण रक्षा हुई है, तथा
ताएँ हैं, जो अन्य संदेश काव्यों में शायद ही उपलब्ध साथ ही कवियों की मौलिक प्रतिभा भी दर्शनीय है।
हो सके, इसका कारण यह है कि जैन धर्म त्यागपूर्ण हा
जीवन में अधिक विश्वास करता है । मानव जीवन में ७. नायक-नायिकाओं के चरित्र में मानवीय गुणों का
अहिंसा, त्याग तपस्या, सात्विकता तथा सहिष्णुता आदि समावेश हुग्रा है।
गुणों का होना अनिवार्य है। अपने काव्यों में जैन ६. इन काव्यों में जैन धर्म का उल्लेख प्रसंग वश हुमा
प्राचार्यों ने इन्हीं गुणों के महत्व को प्रतिपादित कर है; परन्तु कहीं भी सांप्रदायिकता की भावना
__ संपर्ण मानव जाति के लिये एक प्रेरणा दायक शुभ नहीं मिलती।
संदेश प्रेषित किया है जिसके अनुकरण में ही संपूर्ण है. समस्त काव्यों में महान चरित्रों की सृष्टि हई है। मानव समाज का कल्याण निहित है।
मनुष्य की उन्नति के लिए जैन धर्म का चरित्र बहुत ही लाभकारी है। यह धर्म बहुत ही ठीक, स्वतन्त्र, सादा तथा मूल्यवान है। ब्राह्मणों के प्रचलित धर्मों से वह एकदम भिन्न है। साथ ही साथ बौद्ध धर्म की तरह नास्तिक भी नहीं है।
-मेगास्थनीज, ग्रीक इतिहासकार
साफ प्रगट है कि भारतवर्ष का अधःपतन जैनधर्म के अहिंसा सिद्धान्त के कारण नहीं हुआ था, बल्कि जब तक भारतवर्ष में जैनधर्म की प्रधानता रही थी, तब तक उसका इतिहास स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है और भारतवर्ष के ह्रास का मुख्य कारण आपसी प्रतिस्पर्धामय अनैक्यता है जिसकी नींव शंकराचार्य के जमाने से दी गई थी।
-मि० रेवरेन्ड जे० स्टीवेन्सन सा० (जैनमित्र वर्ष २४ अङ्क ४० से )
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