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भगवान महावीर एक सिद्धान्त थे
• पं. चैनसुखदास न्यायतीर्थ
हम यह समझने का प्रयत्न करें कि महावीर कोई व्यक्ति नहीं है। वह तो एक सिद्धान्त है, अहिंसा और अनेकान्त की बहती हुई विचार धारा है, मानव की लोकोत्तर जीवन पद्धति है। बुद्ध और ईसा पैथा गोरस और गांधी ने भी इसी जीवन पद्धति पर जोर दिया। इन सबने प्रेम सहानुभूति दया और करुणा का पावन स्रोत मानव मन में प्रवाहित करने का प्रयत्न किया है। महावीर केवल हमारे हैं यह कहकर कोई महावीर को नहीं समझ सकता । सूरज और चाँद के विशाल प्रकाश को सीमा में प्राबद्ध मानने का आग्रह करने वाला न सूरज को समझता है और न चाँद को। ___ महावीर की महत्ता को समझने के लिए हमें अपने हृदय को असंकीर्णं, उदार और महान् बनाना होगा।
भगवान महावीर बिहार के कुण्डलपुर नगर में राजा भगवान महावीर संसार के महान उपदेष्टा थे।
- सिद्धार्थ के यहाँ उनकी रानी माता त्रिशला के उनका आदर्श हमें जीवन शुद्धि की प्रेरणा देता है। गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
बंधन-मुक्ति बिना-जीवन शुद्धि के नहीं हो सकती और उनकी प्रायु करीब ७२ वर्ष की थी। ३० वर्ष की जीवन शुद्धि का प्राधार अहिंसा है, इसलिए उन्होंने अवस्था तक वे घर में रहे ! फिर जगत् से विरक्त होकर ।
और अपने प्रवचनों में सर्वाधिक जोर अहिंसा पर दिया। तपस्वी जीवन की दीक्षा ले ली। १२ वर्ष तक उन्होंने उनकी अहिंसा का विस्तार मनुष्य तक ही नहीं, ऐसा घोर तप किया जिसे देख कर लोगों को प्राश्चर्य पशु पक्षियों तक ही नहीं कीट-पतंग भृग तक ही नहीं होता था। उनका तपस्वी जीवन परीषह और उपसर्गों
अपितु पेड़-पौधे और लताओं तक है। से भरा पड़ा था, पर वे एकस्थ और एकनिष्ठ होकर महावीर ने अहिंसा में ही विश्व कल्याण देखा और विनिश्चल भाव से अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगे रहे उनका संपूर्ण जीवन अहिंसामय बन गया। किसी भी और अन्त में ज्ञानावरण और दर्शनावरण, मोहनीय धर्म, जाति, प्रांत, और देश का मनुष्य उनके लिए और अन्तराय नामक चारघाति कर्मों का नाशकर लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान को प्राप्त हए । इसके बाद की तेजस्विता इतनी प्रभावक थी कि शेर और गाय जैसे ३० वर्ष तक सारे भारतवर्ष में भ्रमण कर वे अहिंसा जाति विरोधी जीव भी उनके सामने अहिंसक हो सत्य और असम्प्रदायवाद का प्रचार करते रहे।
जाते थे।
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