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________________ १३८ ग-विचार गोष्ठी विशेष प्रवृत्तियां - भगवान के जन्मोत्सव के दिन दोपहर को समाज १. वीर वाचनालय के प्रसिद्ध सभा भवन प्रात्मानन्द सभा भवन में भारत के घी वालों के रास्ते में स्थित बनजी ठोलिया की प्रसिद्ध विद्वान, साहित्यकार श्री सत्यदेव विद्यालंकार की धर्मशाला में सभा द्वारा एक वाचनालय चलाया जाता अध्यक्षता में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। है जिसमें दैनिक, पाक्षिक, साप्ताहिक, मासिक समाचार घ-आम सभा पत्र पत्रिकायें पाती हैं। - सदा की भांति इस वर्ष भी भगवान महावीर के २. विशेष सभाओं के आयोजन जन्मोत्सव के दिन एक विशाल आम सभा का आयोजन बौद्धिक एवं मानसिक विकास के लिये तथा महान राजस्थान के गृहमंत्री श्री मथुरादासजी माथुर की मात्मानों के प्रति श्रद्धांजलियां अर्पित करने हेतु सभा अध्यक्षता में किया गया। राजस्थान के राज्यपाल द्वारा समय समय पर प्रायोजन किये जाते हैं। इस वर्ष डा० सम्पूर्णानन्दजी ने इस विशाल आम सभा का के मुख्य प्रायोजन निम्न है :शुभारम्भ किया। श्री सत्यदेव विद्यालंकार इस समारोह के (क) गुजरात के वयोवृद्ध महान सन्त क्रातिकारी विचारक मुख्य अतिथि थे। समारोह में राजस्थान के प्रसिद्ध तथा उच्चकोटि के साहित्यकार मुनि श्री सन्तसैनापी कवि मेघराजजी मुकुल ने कविता पाठ किया। बालजी का दिनांक ५ मई १६६३ को बडे अचानक अांधी और तूफान आजाने के कारण समारोह दीवानजी के जैन मन्दिर के प्रांगण में मानव के अध्यक्ष श्री माथुर साहब ने भगवान के प्रति श्रद्धांजलि धर्म विषय पर व्याख्यान करवाया गया। अर्पित करते हुये सभा की समाप्ति की घोषणा की। इस (ख) सैद्धांतिक चर्चा में भाग लेने हेतु आये हये वर्ष इस समारोह की यह विशेषता रही कि सभी कार्य जैन विद्वानों के सम्मान में तथा धार्मिक विषयों क्रमों में जैन समाज के सभी सम्प्रदायों का पूरा २ पर जनता को जानकारी मिले इस उद्देश्य से सहयोग सभा को मिला। दिनांक २१ व २२ प्रक्टूबर १९६३ को बडे 6-महावीर जयन्ती स्मारिका दीवानजी के मन्दिर में सभात्रों के प्रायोजन किये गये। गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी लगभग २५० पृष्ठ भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री सत्यदेव विद्याकी महावीर जयन्ती स्मारिका का प्रकाशन किया गया। लंकार का दिसम्बर १६६३ में बड़े दीवानजी के इस स्मारिका में भगवान महावीर के जीवन दर्शन एवं सिद्धांतों के अतिरिक्त जैन धर्म, दर्शन, कला, इतिहास मन्दिर में भाषण का आयोजन किया गया जिसमें प्रादि के विषय में महत्त्वपूर्ण लेख व रचनायें आदि हैं। उन्होंने भगवान महावीर नामक एक २५० पृष्ठ इस स्मारिका को साहित्यिक जगत के अतिरिक्त सभी की पुस्तक पं० साहब को प्रकाशनार्थ भेंट की। क्षेत्रों में भारी सम्मान मिला है। जिसने देखा है उसने (ङ) प्रमुख उद्योगपति साह श्री शांति प्रसादजी के जयपर ही मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। आर्थिक कठिनाई के प्रागमन पर एक सभा का आयोजन बडे दीवानजी कारण जैसी स्मारिका निकलनी चाहिये वैसी नहीं के मंदिर के प्रांगण में दिनांक १६ दिसम्बर प्रकाशित हो सकती है फिर भी जैसी है वह एक सफल । १६६३ को किया गया । प्रयास ही कहा जा सकता है। इसका सम्पादन भी __ अभिनन्दन समारोह श्रद्धय पं० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ ने किया है। यह सभा के सम्माननीय सदस्य श्री प्रवीणचन्द्र छाबडा उन्हीं की कृपा का शुभ फल है। सभा उनकी अत्यन्त के विदेश यात्रा से लौटने पर उनके सम्मान में दिनांक कृतज्ञ है। २४ नवम्बर १६६३ को बड़े दीवानगी के मंदिर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
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