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'चौवीसी' कहा जाता है। इन चौवीस तीर्थंकरों में ढाल, लावणी सज्झाय आदि काव्य रूप भी कथाकवियित्री ने नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी काव्य से संबंधित हैं। सीमंधरजी री ढाल, देवानंदारी को ही विशेष रूप से अपना गेय विषय बनाया है। ढाल, नेमजी री लावणी पारसनाथ री लावणी, मेघरथ जैन-परम्परा के अनुसार महाविदेह क्षेत्र में सदा सर्वदा राजा री लावणी, नेमजी री सज्ज्ञाय आदि रचनाएं बीस तीर्थंकर विचरते रहते हैं । इस समय भी वे वहां धर्म प्रचार का कार्य कर रहे हैं। इसी कारण इनकी एक ३. उपदेशात्मक संज्ञा 'विहर मान भी है। कवयित्री ने इन बीस विहर जैन काव्य धारा की प्रवृत्ति काव्य-चमत्कार और रस मानों की भी स्तुति की है । इस काव्य रूप को बीसी' बोध की अोर उतनी नहीं रही जितनी आत्म परिष्कार संज्ञा दी जाती है। इन विहरमानों में प्रथम विहरमान और प्रात्म-बोध की प्रोर। ये कवि पहले साधक और श्री सीमंधर स्वामी ही उसके प्राराध्य रहे हैं । इनके उपदेशक होते थे। प्रात्म-कल्याण और लोक कल्याण जितने स्तवन मिले हैं उतने किसी और के नहीं। की भावना परत बोका रविले
अन्य संत महात्माओं के सम्बन्ध में जो गुण कीर्तन उसी वैराग्य-भावना को जन-जन में जगाने की इनकी किया गया है उसे 'स्तवन' की अपेक्षा गुण कहना अधिक दृष्टि होती । कविता का सृजन वे इसी प्रौपदेशिक भाव समीचीन है। इस गुरण वर्णन में संतों का संक्षिप्त जीवन से करते । यही कारण है कि यहां उपदेश की प्रधानता वृत्त भी समाविष्ट हो गया है । कवयित्री ने जिन मुनि- है। इनके उपदेश एक रस और सामान्य होते हैं। सब महात्माओं का गुणगान किया है उनमें प्रमुख हैं-तपस्वी में लगभग कषाये (क्रोध, मान, माया, लोभ) त्याग, बालचन्दजी प्राचार्य विनयचन्दजी, सुजान मलजी चन्दन- इन्द्रिय-दमन, मन-निग्रह, व्यसन-त्याग, व्रत पालन, मल कजोडमली मं० प्राचार्य विनय चन्दजी मं०, सुजान- प्रात्म-निंदा, ब्रह्मचर्य-पालन, सत्य वचन, प्राण-रक्षा, मलजी मं० चन्दनमलजी मं० कजोड़मलजी देवीलालजी जीव दया, तप-त्याग, दान-महिमा, कर्म सिद्धान्त प्रादि म० । साध्वियों में अपनी गुरुणी रम्भाजी के प्रति का विवेचन रहता है। पालोच्य कवयित्री ने इन्हीं बातों कवयित्री ने श्रद्धा-भावना प्रकट की है।
को अपने ढंग से रखा है। विधि-निषेध की शैली ही २. कथात्मक
सामान्यतः उपदेशात्मक रचनामों में प्रयुक्त की जाती ___कथात्मक रचनाओं में सामान्यत- पौराणिक धार्मिक है। यहाँ जड़ावजी ने बारह भावना भाने की, समकित कथानों को पद्यबद्ध किया गया है। जन साधारण को
धारण की चंचल मन को वशीभूत करने की प्रेरणा दी धार्मिक शिक्षा देने के लिये ये कथा काव्य बडे उपयोगी है तो भांग तम्बाखू छोड़ने की, जमीकंद न खाने की. होते हैं। इन कथा-काव्यों में इतिवृत्त की ही प्रधानता क्रोधादि कषाय न करने की बात भी कही है। है । रसात्मक स्थलों की पहचान कर उनका मनोवैज्ञानिक ४. तात्विक विश्लेषण यहां नहीं किया गया है । एक रूढ़िगत शैली जैनागम प्राकृत भाषा में है। जैन दर्शन का अटूट में ही ये कथाएं प्रारंभ होती हैं और किसी प्राध्यात्मिक भण्डार प्राकृत भाषा ही सुरक्षित f भावना का संकेत कर साधारण ढंग से समाप्त हो जाती साधारण को जैन धर्म से परिचित कराने के लिये जैन हैं। इन कथाओं को कई ढालों में विभक्त किया जाता विद्वानों ने एक पोर इन ग्रंथो की लोक भाषा में है। चार ढालों की कथा 'चौढ़ालिया, नाम से और "बालावबोध" व "टब्बा" नाम से टीकाएं की तो दूसरी सात ढालों की कथा "सातालियां नाम से अभिहित और सार्वजनीन सिद्धान्तों को लोक भाषा में पद्य बद्ध होती है ।" श्रावक रोचौढालियों, "सुमति कुमति रो कर जन साधारण के लिये सुलभ बनाया। तात्विक चौढालियो",अनाथो मुनि रो सतढालियों, “जबू स्वामी रचनाएं इसी कोटि की हैं। इनमें मौलिकता का प्राग्रह रो सत ढालियो" ऐसी ही रचनाएं हैं।
नहीं, तत्व प्रचार की दृष्टि ही प्रधान है। जड़ावजी
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