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चैन कवि नवल और उनकी भक्ति
• डा. सोमनाथ गुप्त
जयपुर ..
भक्ति पदक कविता केवल वैष्णव कवियों की ही वपौती नहीं है। जैन धर्मावलम्बियों ने भी भवित भाव से अपने आराध्य का स्तवन किया है और उनकी कविता में भगवान के प्रति अलौकिक अनुराग, असीम श्रद्धा एवं अतुल विश्वास कूट-कूट कर भरा हुअा व्यंजित हुअा है । नवल भी एक ऐसे ही कवि थे। हिन्दी साहित्य में उनका साहित्य अपने स्थान का अधिकारी है।
याध्यात्म की परम्परा में 'भक्ति' का बड़ा महत्व है। माना जाता है । इनके दो अन्य प्रसिद्ध हैं-"वर्तमान
"भागवत सम्प्रदाय के विकास के साथ साथ भक्ति- पुराण" और बुद्धि-विलास"। भावना ने भी बड़ा प्रसार पाया। और भक्ति मार्ग अनेक
एक तीसरी रचना फुटकर पदों के रूप में है । इन रूपों में जन साधारण को प्रानन्दानुभूति एवं प्रात्म- पदों संतोष में सहायक सिद्ध हुप्रा।
भक्ति की यह प्रवहमान धारा किसी एक टी नवल क आराध्य सम्प्रदाय तक सीमित न रह सकी, हिन्दू धर्म, संस्कृति जैन तीर्थंकर-'जिन भगवान' भक्त कवि नवल और उनके विभिन्न भेदों-प्रभेदों में भक्ति के अनेक रूपों के प्राराध्य थे । अपने उपास्य का वर्णन उन्होंने अनेक का प्रचार हमा। भागवत की "नवधा भक्ति" से प्रत्येक प्रकार से किया है । उनको उपाधियों का वर्णन करते विद्वान परिचित ही है। कुछ मूल, कुछ रूपान्तरित हुए नवल कहते हैंप्राकृतियों के साथ यही भक्ति भावनायें सम्प्रदायों में जड़ १. सांत छवि मति प्रानन्द कारी. पकड़ती चली गई।
देखत नैन भजत भ्रम भारी । वास्तव में अपने उपास्य के प्रति प्रलौकिक अनुराग
कुमति कुभाव सकल हू टारी, का नाम ही 'भक्ति' है। यह अनुराग प्रेम के द्वारा प्रगट
नवल गही प्रभू सरनि तिहारी॥' होता है। अतएव भक्ति के तीन प्रधान तत्व हैं-भक्त,
२. वाह्य अभ्यंतर तज्यो उपास्य और भक्ति का स्वरूप ।
परिग्रह आत्मकाज करईया । जैन कवि 'नवल' ढूंढाड़ प्रदेश के अन्तर्गत बसवा
तप करि केवल ग्यान उपायो ग्राम के निवासी थे । इनका समय सं० १७६०-१८५५
पाठी करम खिवईया ॥२
१. पदस नं० १०८७ पत्र सं० १३-१४; वधीचन्द्र मंदिर जयपुर २. वही, पत्र १३
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