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________________ जनधर्म की उत्क्रान्तिमूलक शाखायें में प्रस्फुटित हुई है। साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से उनके . _ एक विशाल पेड़ अपनी शाखामों से फलता-फूलता, सम्बन्ध में विचार करना उनके ऐतिहासिक महत्त्व से और फैलता है। बहुत से पेड़ ऐसे होते हैं, जो अपनी ___ इनकार करना है। उनके ही कारण जैन धर्म की आत्मा शाखामों का भार सहन न कर सकने के कारण उनके का निरन्तर निखार एवं परिष्कार भार से नष्ट होजाते हैं। लेकिन, ऐसे पेड़ भी कुछ कम समाज के जीवन व्यवहार में उसकी प्रतिष्ठा की उत्तरोत्तर नहीं हैं, जिनकी शाखाओं पर फल-फूल उपजते है । उनके वृद्धि हुई है। इस उदार एवं व्यापक दृष्टि से जैनधर्म ही कारण उसकी शोभा और उपयोगिता में चार चांद के सम्बन्ध में विचार किया जाना चाहिए और लगते रहते है। नि.सन्देह जैनधर्म दूसरे प्रकार के पेड़ उसकी उत्क्रांतिमूलक परम्परा का महत्त्व प्रांका जाना के समान है। उससे विभिन्न शाखायें उत्क्रांति के रूप चाहिए। पाश्चात्य विद्वान मि० सर यिलियम और हैमिल्टन के मध्यस्थ विचारों के विशाल मन्दिर का आधार जैनों के इस अपेक्षावाद का ही दूसरा नाम नयवाद है। 'विशेषतः प्राचीन भारत में किसी धर्मान्तर से कुछ ग्रहण करके एक - नूतन धर्म प्रचार करने की प्रथा ही नहीं थी, जैन-धर्म हिन्दू-धर्म से सर्वथा स्वतन्त्र है, उसकी शाखा रूपान्तर नहीं।' -वैदज्ञ प्रो० मैक्समूलर सा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
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