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शब्द लिखा हुआ है । इसी प्रकार १३५६ के बाघीण २१ के शांतिनाथ मंदिर के लेख में "नडुलदेशे बाघसीग्रामे श्री सामन्त देव" शब्द है । रणकपुर के वि० सं० १४६६ २२ व बिजोलिया के १२२६ २३ के विस्तृत लेखों में पूरी वंशावली दी हुई हैं । किन्तु अधिकांशतः लेखों में वंशावलियां नहीं है । संवत के पश्चात् कहीं कहीं श्रेष्ठियों के और कहीं प्राचार्यों के नाम दिये गये हैं । दिगम्बर लेखों में प्रायः प्राचार्यों का उल्लेख पहले आता है। नागदा वि० सं० १३६१ २४ के लेख में " सं० १३६१ वर्षे चेत्र वदि ४ रवौ देव श्री पार्श्वनाथस्यमूल संघाचार्य शुभचन्द्र "बिजोलियां के वि० सं० १४८३ के लघु लेख में" श्री बलात्कारगणे । सरस्वती गच्छे | माईसंघे । कुंदकुंदाचार्यान्वये भट्टारक श्री कीर्तिदेव " लिखा है । इनके पश्चात् बिंबया शिला पत्रका जिसकी प्रतिष्ठा हुई है उल्लेख मिलता है । अन्त में शुभं भवतु आदि होता है ।
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इन लेखों में सबसे उल्लेखनीय बिजोलियां का १२२६ का श्रेष्ठि लोलाक द्वारा उत्कीर्ण कराया जैन उन्नत शिखर पुराण का लेख है । इस लेख में चोहानों को वंशावली दी हुई है । इससे चोहानों के प्रारंभिक इतिहास के शोध में बड़ी सहायता मिली है । इसी लेख के आधार से पृथ्वी राज रासों को जाली सिद्ध करने में भी सहायता मिली है, रणकपुर के वि० सं० १४६६
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२३. ज० आर० एस० बी० भाग ५५ पृ० ४१।४३
के लेख में मेवाड के गुहिलवंशी राजाम्रों का इतिहास दे रखा है । यह लेख मध्य कालीन अन्य लेखों को तुलना में वंशावली के लिए बढे महत्व का है ।
२१. वही पृ० २३८
२२. प्रावियोलोजिकल सर्वे रिपोर्ट ग्राफ इंडिया वर्ष १६०७/८ पृ २१३।२१५
इसमें कुंभा के शासनकाल के प्रारंभिक ६ वर्षों के कार्यकाल में हुये युद्धों का एवं विजयों का भी सविस्तार वर्णन है । इन लेखों के प्रतिरिक्त अन्य कई लेखों से राजनैतिक स्थिति का परिचय मिलता है । वि० सं० १२०१ के पाली के एक मूत्ति के लेख से ज्ञात होता है कि "महामात्य" वा पद प्रायः वश परम्परागत हो दिया जाता था । इस लेख में "महामात्य श्रानन्दसुत महामात्य पृथ्वी पाल” २६ शब्द अंकित हैं | वि० सं० १३३३ के भीनमाल के एक लेख के २७ अनुसार चाचिगदेव सोनगरा के मुख्यामात्य " गजसिंह " जो पंचकुल का भी प्रधान था उल्लेख है । इसमें पंचकुल संस्था को सम्बोधित कर दान दिया है प्रतएव उसकी स्थिति का पता चलता है । मंडपिकात्रों का और कर व्यवस्था सम्बन्धी भी कई उल्लेख मिलते हैं । करेडा के वि० सं० १३२६ के चाचिगदेव सोनगरा के लेख में नाडोल को मंडपिका से कुछ द्रव्य देने का उल्लेख है । चित्तौड के वि० सं० १३३५ २८ के बैशाख सुद ३ के एक लेख के अनुसार भटेश्वरगच्छ के एक जैनाचार्य के उपदेश से रावल समरसिंह की माता जयतल्लदेवी ने श्याम पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया एवं चित्तौड सज्जन
वीर विनोद भाग को शेष संग्रह में छपा मूल लेख ।
२४. प्राकियोलोजिकल सर्वे रिपोर्ट ग्राफ वेस्टर्न सर्कल वर्ष १६०५/६ पृ० ६३ २५. वही पृ० ६३७
जैन एक्टी क्युरी भाग १७ अंक १ पृ० ६७
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२६. सं० १२०१ ज्येष्ठ वदि ३ रवौ श्री पल्लि कायां श्री महावीर चैत्ये महामात्य श्री मानन्द सुत महा मात्य श्री पृथ्वीपालेनाल श्रेयार्थं जिन पुगलं प्रदत (मूल छापसे)
२७. ग्रह श्री श्रीमाले महाराजकुल श्री चाचिगदेत कल्याण विज्य राज्ये तन्नियुक्त मंह० गजसिंह प्रभूति पंचकुल प्रतिपती (जैन सर्व तीर्थ संग्रह भाग १२ पृ० १७५)
२८. प्रज्ञा उदयपुर राज्य का इति० भाग १ पृ० १७६
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