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गृहपा। इसके शासनकाल का वर्णन कई जैन ग्रंथों में मर्दन नामक नाटक में है। इसे वि० सं० १२८६ प्राषाढ मिलता है। प्रथम बार इसका मूलनाम "बोछुणाये" १२ बदि को पूर्ण किया गया है १५ । यह घटना वि. जैन ग्रन्थों में ही मिलता है। अमोघ वर्ष संभवतः सं० १२८४-८५ को सम्पन्न हुई थी। वि० सं० १३६० उपनाम था। १३ सोमदेव के यश तिलक की प्रशस्ति में में कक्क सूरि द्वारा लिखित "नाभिनन्दन जिनोद्धार ग्रंथ" लिखा है कि शक सं० ८८१ चैत्र सुदी १३ को जिस में अलाउद्दीन के मेवाड आक्रमण और रावल रत्नसेन समय कृष्णराज पांड्य, चोल, सिंहल चेर आदि राजाओं को पकड़ कर ले जाने का उल्लेख है। १३ यह उल्लेख को जीतकर, मेलपाटी नामक सैनिक शिविर में था उस समसामयिक फारसी ग्रंथ "खजाइन उलफतुह' में भी समय उनके सामंत वछि गकी के राजत्व काल में ग्रंथ नहीं है। इसी प्रकार तीर्थ कल्प के सत्यपुर कल्प में पूर्ण हुआ।
अलाउद्दीन के वि० सं० १३५३ में गुजरात माक्रमण का . . . मध्यकालीन इतिहास के लिए जैन सामग्री अपेक्षा- उल्लेख है। इसमें यह भी उल्लेख है कि अलाउद्दीन कृत अधिक महत्व की है। गुजरात के चालुक्यों का का छोटा भाई उलूगखां मेवाड के रावल समरसिंह से इतिहास जैन कवियों ने बड़े गौरव के साथ लिखा है। हारा था। हेमचन्द्र के द्वयाश्रय काव्य एवं कुमारपाल चरित में कई मध्य कालीन जैन शिलालेख अधिकांशतः मूर्तियों ऐतिहासिक प्रसंग हैं । मेरुतुग द्वारा विरचित "प्रबन्ध पर उत्कीर्ण हुए मिले हैं। इनके प्रारंभ में सेवन दिया चिन्तामणि" में चावडों और सोलंकियों का इतिहास दे रहता है। प्राचीनतम लेखों में संवत ही दिया गया है रखा है लेकिन प्रसंगवश कई अन्य राज्यवंशों का भी जबकि बाद के लेखों में तिथियां भी दी हुई हैं। मेवाड इतिहास है। चावडों के इतिहास के बारे में कुछ अशु- के करेडा के पार्श्वनाथ की मूत्ति के वि० सं०१०३६ के द्धियां रह गई थी जिसे पुनः विचारश्रेणी नामक ग्रंथ में लेख १८ में केवलमात्र "सं०१०३१ वर्षे' शब्द अंकित उसने ठीक किया है। कुमारपाल पर कई पुस्तकें लिखी है। सांडेराव के मूलनायक शांतिनाथ के वि० सं० गई हैं । इनमें जयसिंह सूरी और चारित्र सुन्दर की १२२१ १६ के लेख में “१२२१ माघ वदि २ शुक्र" रचनाएं बडी प्रसिद्ध हैं। वस्तुपाल चरित वि० सं० लिखा हुआ है । इनके पश्चात् तत्कालीन राजा का नाम १४४० में लिखा गया इसमें भी सोलंकियों का इतिहास दिया हा मिलता है। नाडोल के वि० सं० ११९५ के है१४। मेवाड पर हये आक्रमण का उल्लेख हमीर मद लेख में "महाराजाधिराज २० रायपाल देव विजय राज्ये"
१२. बोछणं रायरिंदे नरिंद चूडमणिम्हि भुजते ॥६॥
नाथुराम प्रेमी जै० इ० पृ० १४७ १३. वही पृ० १७८ १४. प्रोझा निबन्ध संग्रह भाग १ पृ० ३८।४८ १५. प्रोझा-उदयपुर राज्य का इति० भाग १ पृ० १६. श्री भंवरलाख नाहटा पद्मिनी चरित चोपाई की भूमिका १७. "अह तेरसय छपन्न विक्कम वरिसे अलावदोण सुरताणस्य कणिट्ठो भाया उलूखान नामधिज्जो दिल्ली
पुरानो मति मादव पेरिप्रो गुज्जरधरं पट्ठिो चित्तकूडादिवई समरसिंहेणं दउं दाउं मेवाड देसो ...... तथा रक्खि प्रो" (तीर्थ कल्प में सायपुर कल्प पृ० ६५)
१८. जैन सर्वतीर्थ संग्रह भाग २ पृ० ३४४ .:: १९. वही भाग १:खंड ii पृ० २१२
२०. वही पृ० २२४
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