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सचिव !
अहिंसा इंटरनेशनल न्यू दिल्ली ।
।। जयन्तु ते जिनेन्द्राः । ।
धर्मलाभ !
भाग्यवान ! दुःख है कि वर्तमान-काल में हिंसा के लिए व्यक्ति को प्रशिक्षित किया जाता है, अहिंसा के लिए नहीं; असत्य के लिए व्यक्ति को प्रोत्साहित किया जाता है, सत्य के लिए नहीं; भ्रष्टाचार को पनपाया जा रहा है, सदाचार को नहीं। मगर आपने जाति, भाषा, राष्ट्र आदि की संकीर्ण परिधियों को गौण करके जीवमात्र के हित की कामना से अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि संस्कार -प्रधान जो-जो कार्य किए हैं वे स्तुत्य एवं प्रेरणास्पद हैं। मैं उनकी अनुमोदना करता हूं एवं अपेक्षा करता हूं कि जीवमात्र के हितार्थ, कल्याणार्थ संस्था आगे ही आगे बढ़े।
चरम-तीर्थाधिपति भगवान् श्री महावीर स्वामी जी ने प्राणिमात्र हितार्थ सदियों पूर्व जो उपदेश दिए थे वे आज भी वैसे ही उपयोगी हैं। जिनेन्द्र भगवंतों के उपदेश त्रैकालिक सत्य एवं एकांततः हितकर ही होते हैं।
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मैं संस्था से अपेक्षा करता हूं कि वह जन-जन को जीवन में अहिंसा, व्यवहार में अपरिग्रह, विचारों में अनेकांतवाद सिखाए ! सदाचार एवं प्रामाणिकता के प्रति मन में दृढ़ता जगाए !
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आचार्य विजय जनकचंद्र सूरि
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