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सं. 49 (128) होयसल नरेश विष्णुवर्धन की संलेखनापूर्वक प्राणोत्सर्ग करने की भ वना का पटरानी शान्तलदेवी की माता माचिकब्ब ने यहां सम्बन्ध पूरी जीवन-पद्धति और जीवन दर्शन से एक माह से अनशन व्रत के पश्चात् संन्यास विधि है। अतः यहां की नारी ने जहां मृत्यु के समय से प्राणोत्सर्ग किया। उसने अपने गुरू प्रभाचन्द्र अपनी आत्म-वीरता का परिचय दिया है, वहां सिद्धान्तदेव, वर्धमानदेव और रविचनुदेव की साथी मन्दिर निर्माण, मूर्ति-प्रतिष्ठा, पूजा-अभिषेक आदि से संन्यास ग्रहण किया था लेख सं. 53 (143) प्रसंगों में उसने धर्मवीरता व दानवीरता का भी पंडित देव के शिष्य संनबोव सामण्ण के पुत्र जिन- परिचय दिया है। एचिगांस की आर्या पोचिकब्बे भक्त हिरिमण्ण की पत्नी महादेवी ने गोम्मटनाथ ने अनेक धार्मिक कार्यों के साथ-साथ कई मन्दिर स्वामी के चरणकमलों की वन्दना पर मुक्ति मार्ग भी बनवाये । दण्ड नायक बलदेव के पौत्र बल्लण प्राप्त किया। लेख सं. 117 (259) दोशियगण की स्मृति में उसकी माता और भागिनी ने एक कुन्दकुदान्वय के शिष्य योगी दिवाकर नन्दि की पट्टशाला स्थापित की और उसके चलाव के लिए शिष्या श्रीमती गन्ती (लेख सं. 139 35, एवं कुछ जमीन दान में दी। लेख सं. 56 (32) से साध्वी कालब्बे (लेख सं. 479 (389) ने भी यहीं सूचित होता है कि विष्णुवर्धन की पटरानी शान्तल समाधिकरण प्राप्त किया था।
देवी अत्यन्त धर्मप्रारण व्यक्तित्व थी। उसे भक्ति
में रुकमणी, सत्य भामा सीता जैसी देवियों के धर्मसाधना और तप-त्याग में वीरता प्रदर्शित
समान बताया गया है। उसने सवति गन्धवारण करने वाली नारियों के उल्लेख तो कई भिलते हैं
वस्ति का निर्माण कराया और अभिषेक के लिए पर यहां एक ऐसी नारी का उल्लेख भी मिलता है एक तालाब बनवाया तथा एक ग्राम का दान जिसने युद्ध क्षेत्र में भी अपनी वीरता का प्रदर्शन
मन्दिर के लिए अपने गुरु प्रभाचन्द सिद्धान्तदेव को किया। यह वीरांगना थी सावियब्बे । इसका पति
किया। लेख सं. 229 (137) से ज्ञात होता है कि धोर का पूत्र लोक विद्याधर था। लेख स. 61 होयसल नरेश के प्रसिद्ध सेठी पोयसलसेट्रि और (139) में बताया गया है कि यह स्त्री. रेवती. नेमिसोट्टि की माताओं-माचिकब्बे और शान्तिकब्बे देवकी, सीता, अरुंधती के सदश रूपवती, पतिव्रता
ने जिन मन्दिर और नन्दीश्वर निर्माण कराकर और धर्मप्रिया थी। जिन भगवान् में उसकी भानुकीति मुनि से दीक्षा ग्रहण की। शासन देवता के समान भक्ति थे। उसने अपने पति के साथ युद्ध में लड़ते हुए “बगिपुर” नामक लेख सं 494 से सूचित होता है कि होयसल स्थान पर अपने प्राण विसर्जित किये । लेख के नरेश बल्लदेव के मन्त्री चन्द्रमोलि की पत्नी ऊपर जो चित्र खुदा है उसमें यह स्त्री घोड़े पर प्राचलदेवी भक्तिप्रवण महिला थी। उसने बेलगोल सवा • हुई हाथ में तलवार लिये हुए एक हाथी पर तीर्थ पर पार्श्वनाथ मन्दिर निर्माण कराया और सवार वीर का सामना करती हुई चित्रित की गई इसके लिए बल्लालदेव से बम्मेयनहाल्लि ग्राम है। हाथी पर चढ़ा हुया पुरुष इस पर वार करता प्राप्त कर मन्दिर को दान किया। सेनापति गंगहा दिखाया गया है।
राज की पत्नी लक्ष्मीमति ने श्रवणबेलगोल में एक
जिनालय का निर्माण कराया। अपने पति की इस प्रकार धर्मवीरता और युद्धवीरता का तरह वह चारों प्रकार का दान देती थी-पाहार. अनुपम संगम हुआ है इस नारी-चरित्र में। दान औषध दान, ज्ञानदान और अभयदान ।
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