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________________ अनुपस्थिति में उसके घर पहुंचना उचित समझ दोपहर का समय हो चला था । गांव के कुछ रहा था। लोगों ने मोहन को आते देखा तो परस्पर अभि वादनों का आदान-प्रदान करने लगे। ___ गांव मील भर बचा तो मोहन को वह वृक्ष दिखा जिस पर बैठकर वह चरते मवेशियों को मोहन आंगन में पहुंचा तो वृजलाल के सातों देखता रहता था । जब भी वृजलाल उसे इस भाड़ बच्चे मुस्काते हुए दीर्घ स्वर में पुकारने लगे पर चढ़ा देखता था तो दौड़कर पास आता और कक्काजी आये.... । भाभी ने आवाज सुनी तो उसे नीचे उतर पाने का आदेश देता और फिर चूल्हा-चौका छोड़कर आ गई। चूल्ले से उत्पन्न समझाता कि ऐसे में गिर पड़े तो हाथ-मुह टूट धुवां सम्पूर्ण घर में फैल रहा था । एक थका हारा, सकता है, और फिर हार खेत की ओर चला भूखा-प्यासा चेहरा उनके सामने खड़ा था, भाभी जाता। दोनों का स्नेह और ममत्व सारे गांव में को अनुमान लगाते देर न लगी कि कुवर साहब चर्चा का विषय बना रहता था। बड़ा भाई जब शहर से पैदल चल कर आये हैं । उन्होंने यहां-वहां तक नहा-धो नहीं लेता छोटा भाई थाली पर नहीं की बातों के बाद मोहन से भोजन के लिये अनुरोध बैठता था। छोटा भाई रात में जामनगर से देर से किया । दो दिन की भूख और आगे तक खिचना न लौटता सौदा लेकर तो बड़ा भाई लालटेन और चाहती थी। अतः मोहन खाने बैठ गया । डंडा लेकर उसे गांव से मील भर दूर तक ढूढ़ता बड़े भैया का हाल पूछकर अपने हृदय के निहारता लेने जाता था। . मालिन्य से प्रेरित हो वृजलाल के बड़े बेटे शिखर मोहन को आज भी अपने भाई पर उतनी ही से बोला-अरे शिखर तुम्हारी काकीजी भी आई प्रगाढ़ श्रद्धा है और वृजलाल को मोहन से अभी हैं। जामनगर चौरस्ते पर हैं। घोड़ा लेकर चले भी पूर्व सा स्नेह है । इस सात्विक विचार से मोहन जानो उन्हें लाने के लिये । शिखर हंसते हुए कहने की आखें डबडबा आई । भूख और विवशता पर लगा-हम तो जामनगर ही जा रहे थे । सात दिनों रह-रह कर क्रोध आने लगा उसे । वह सोचता भूख में दुकान पर लगभग मन भर गेहूं इकट्ठा हो गया शांति के लिये आज मैं अपने बड़े भाई से हिस्सा- है। उसी को बेचकर किराना लाने के लिये बोल बांट करने जा रहा हूं, नहीं."नहीं"मैं आज उस गये थे पिताजी । मोहन ने शिखर के मुंह से यह पर डाका डालने जा रहा हूं। मैं नीच हूं, संसार बात सुनी तो उसे अपनी योजना सफल होते लगने का कोई भी भाई क्षमा नहीं करेगा । उसके पैर लगी। कहने लगा-ठीक है तो मैं भी जामनगर डगमगाने लगे । उसका मन किया कि अभी भी चलता हूं वहां एक किसान से पैसा लेना है । भाभी कुछ नहीं बिगड़ा, गांव के "छ म्योड़े" से ही लौट और बच्चों के मना करने पर भी मोहन शिखर के जाना चाहिये मुझे । मन में जनित प्रावेश शिथिल घोड़े के साथ हो लिया। जामनगर रामपुरा से पड़ने लगा। तभी उसे याद हो पाया -बच्चे दो पांच मील पड़ता था और रास्ते में दो गांव जुनदिन से भूखे हैं और सुशीला " । उसकी आँखें फिर वानी और हिनोतिया। लाल पड़ गई । उसे मस्तक में कुछ ठनका-भैया ने मेरे लिये आज तक क्या किया? मुझे क्या दिया रास्ते में उसने शिखर को फुसलाते हुए कहाउनने ? और सोचते-सोचते गांव में धंसता चला न हो तो तुम हिनोतिया पर से सीधे निकल जागो गया। मैं चक्कर देकर आता हूं। हिनोतिया में मुझ पर महावीर जयन्ती स्मारिका 76 3-11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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