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समता, सरसता जैसे पावन गुणों की सरिता प्रात्मा नदी संयम तोयपूर्ण सत्यावहः शील तटो बहानो तो निश्चय ही सर्वस्व तुझे प्राप्त हो जायगा
दयोमि। पौर एक दिन सर्वगुणसम्पन्न बनकर श्रमण तत्राभिषेक कुरु पाण्ड पुत्र न वारिणा शुद्धमति संस्कृति के स्थान पर पहुँच जाओगे। यदि यह सब
चान्तरात्मा ॥ मंजूर नहीं चल मेरे साथ, फिर देखना क्या से क्या होता है।
अर्थात् प्रात्मा रूपी नदी का सहारा ले जिसमें
संयमरूपी जल भरा हुआ है, सत्य का प्रवाह और डर गया, डरपोक कहीं का, मैदान छोड़कर दयारूपी लहरों से युक्त सुन्दर शीलरूपी तट बने भागना चाहते हो, पर मैं ऐसा कभी भी नहीं होने हुए हैं ऐसे पवित्र जल से स्नान कर जिससे प्रात्म दूंगा । तुमने मुझे मोमका समझ रक्खा, जो कि से परमात्म की ओर जा सकता है। थोड़े ही में पिघलकर तेरी बातों में आ जाऊंगा। मैं तुझ जैसा कायर नहीं, जो कि थोड़े से प्रलोभन .
"गंगा, यमुना, नर्मदा में मैंने ही स्नान किया में प्राकर कुछ से कुछ कर बैठू। तम्हें अन्त तक है । मेरे जैसा पवित्र कोई है भी नहीं। नहीं छोड़ने वाला । मैं भले ही मिट गया, पर
पुकारकर उन नदियों से कह 'कोई सुनेगा ?' दूसरों को मिटते हुए देखकर मुझे दुःख होता है। तब निश्चय ही तर जायगा, और शायद पवित्र भी
तुझे, वो भी दुःख, ऐसा सपने में नहीं सोच हो जायगा तथा पुकार सुनकर मुक्ति मार्ग तक सकता है । तुम मेरी हंसी उड़ानोगे।
पहुँचा देगा। बहुत खुशी की बात है बन्धु कि तू
मुक्त हो रहा है, पर एक बात का ध्यान रखना कि हंसी उड़ाऊंगा यह निश्चित बात है, पर हंसी तुने सिर्फ काया को नदियों में स्नान कर उज्जवल उसी की उड़ाई जाती है, जो पथभ्रष्ट हो जाता बनाया, नदियों की पवित्रता को नहीं पहचाना । है। छोड़ो इन सभी बातों को।
अतः तेरी पुकार कोई नहीं सुनेगा ? बल्कि परछाई
बनकर इधर-उधर भटकता रहेगा, फिर मुक्त कैसे कोई सुनेगा ?
समझ लिया। अब कहीं मत भटक अपने अस्तित्व फिर वहीं बात, वही रुदन, शोरगुल तुम की पहचानकर तभी कोई सुनेगा ? बच्चे थोड़े ही हो । अपना बुरा-भला समझने वाले तुम्हीं हो उठो, हृदय तंत्री को झंकृत करो। तब कोई सुनेगा ? का प्रश्न तेरी आत्मा से ही देखना कि सुनने वाला वो तू ही है, अन्य कोई निकला और उसी से समाधान प्राप्त कर नहीं।
सकता है। महावीर ने कहा था असुभो जो परिणामो सो हिसा। अशुभ भाव ही हिंसा है। भूतहितं ति अहिंसा। जीवों का उपकार करना ही पहिसा है ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76.
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