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________________ मस्तक पर पांच बेल लटका, भस्म शरीर में पोत, कथा के मूल स्वरूप का विश्लेषण प्रावश्यक हो गधे पर बिठाकर नगर का भ्रमण कराना। जाता है। अपभ्रंश के 'कहाकोसु' में भी (श्रीचन्द्र विरचित दूसरी बात अवतारवाद को परिकल्पना के 1055 ई०) कथा का यही संस्करण प्रस्तुत किया सम्बन्ध में है। अवतारों के होने के मूल उद्देश्य गया है । कुछ स्थलों में छोटे-मोटे परिवर्तन अवश्य 'यदा यदा धर्मस्य ग्लानि भवति' की अनेक अवहैं पर नगण्य । तीन पग भूमि यहां मढ़िया तार ब्रहण से सिद्ध नहीं होती। बलि का बंधन (मण्यिका) हेतु मांगी है। वामन ने इसलिए किया कि उसने देवताओं को ___ इस प्रकार वसुदेव हिण्डी की विष्णुगीतिका उस कार कर दिया की वासना उसके राजा इन्द्र सहित पराजित कर दैन्य अवस्था की कथा वस्तु का जो संस्करण हमें हरिषेण के में पहुंचा दिया था। मधु-कैटभ ने वेद ज्ञान पर कथाकोष में मिलता है उसका अांशिक झकाव कब्जा कर लिया था। इसलिए अवतार लेना पडे । पौराणिक कथा और प्रांशिक लोकतत्वों के और विष्णु ने उन्हें आमने-सामने के युद्ध में नहीं समन्विति का परिणाम है । हराया। इसी तरह यज्ञ विधान का ज्ञाता ब्राह्मण पूजक को छलने के लिए वामन अवतार लेना किस जैन कथा साहित्य में इस कथा को प्रवेश कैसे धर्म की हानि के लिए हुआ समझ में नहीं पाता। मिला ? जबकि उसे वैदिक परम्परा का कथित यह भागवत धर्म के प्रभाव में जन्मी कथा-परिविरोधी विवेचित किया जाता है। इस प्रश्न का कल्पना मात्र है। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु उत्सर यों है कि जैन भी यज्ञ एवं पशु हिंसा विरोधी जुड़वा भाई थे। दोनों भाइयों के लिए विष्णु को रहे, दिगम्बर मुनियों से ब्राह्मणों के शास्त्रार्थ एवं अलग-अलग अवतार लेना पड़ा, वह भी एक ही संघर्ष इसका कथ्य रहा । बलि पौराणिक कथा में समय में ? इसी प्रकार राम व परशुराम का समयज्ञकर्ता ब्राह्मण पूजक होने के बाद भी देवों को कालीन होना भी, अवतार परिकल्पना के हेतु विरोअप्रिय रहा इस कारण लोक में यह कथा देव धाभास उत्पन्न करता है । देवताओं व असुरों की समर्थकों की रुचि के अनुकूल होने से ख्यात हुई। माताएं एक ही पति ऋषि कश्यप की पत्नियां थीं। जैनों के साहित्य, धर्म पर लोक रुचि का दबाव इस तरह अनेक विष्णूमों के जन्म लेने का प्रश्न व प्रभाव निरन्तर रहा । अतः जैन कथा साहित्य उठता है। इन सभी प्रश्नों के लिए जैन व पौराणिक में स्थान पाने का बड़ा कारण इस कथा स्रोतों से प्राप्त कथा रूपों के मूल स्रोत का उत्तर विषय की लोक प्रसिद्धि ही थी। खोजने के लिए हमें किसी एक मूल-कथा स्रोत को जैन स्रोतों में त्रिविक्रम कथा के प्राप्त रूप से खोजना होगा। सबसे पहिले हम वेदों में विष्णु के हमें पूराण कथा के सम्बन्ध में विचार करने की स्वरूप की खोज करेंगे । प्रेरणा मिलती है। क्योंकि जिस पुराण काल में, पुराणों की कथाओं का विकास हो रहा था, नये ऋग्वेद में विष्णु का स्वरूप : संशोधन व परिवर्धन हो रहे थे, उस समय तक ऋग्वेद के अनेक सूक्तों में विष्णु को तीन पद वसुदेव हिण्डी में प्राप्त कथा रूप जो वड्डुकहा का में पृथ्वी, आकाश, सम्पूर्ण संसार को नापने वाला रूपान्तरण है के स्वरूप का निर्धारण हो चुका था। कहा गया है परन्तु वहाँ बलि राजा या बामन अव. प्रतः पुराणों में आयी बलि वामन या त्रिविक्रम तार की कोई चर्चा नहीं है। यथार्थ में यह चित्रण महावीर जयन्ती स्मारिका 76 2-89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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