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________________ इसका प्राकृत रूपान्तर ( जो ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में हुप्रा) वसुदेव हिण्डी है। इसमें मगध निवासी वसुदेव ब्राह्मण चम्पा के श्रेष्ठी चारुदत्ता की कन्या गंधर्वदत्ता को वीणावादन की स्पर्धा में जीतकर विवाह करता है । श्रेष्ठी के अनुरोध पर उसने विष्णु गीतिका बजायी । बसुदेव हिण्डी की विष्णु गीतिका : वसुदेव हिण्डी की विष्णु गीतिका का विषय है— हस्तिनापुर में राजा पद्मरथ और रानी लक्ष्मीमती के दो पुत्र विष्णु और महापद्म । विष्णु की प्रवज्या तथा मुनि रूप में साठ हजार वर्ष तक दुष्कर तप करके विकुवर्णी, सूक्ष्म, बादर विविध प्रकार, अन्तर्ध्यान और आकाशगामिनी श्रादि चार लब्धियां प्राप्त करना । महापद्म राजा बना । उसका पुरोहित नमुचि था जो जैन साधुनों से वाद में पराजित होकर द्वेष रखता था । अवसर पाकर बरदान द्वारा सात दिन के लिए नमुचि को राज्य प्राप्ति, मुनि संघ का चर्तुमास, नमुचि द्वारा उन्हें राज्य से निकल जाने की आज्ञा । न जाने पर, उन्हें घेर कर पशु हिंसा व यज्ञ करना। संघ पर आये संकट के निवारणार्थं मुनि विष्णुकुमार को ग्रामंत्रित । मुनि का समझाना और न मानने पर 'मुनि संघ को प्राण त्यागने हेतु तीन पग भूमि की याचना । चूंकि वर्षा काल में मुनि संघ के गमन का निषेध था अतः प्राण त्याग ही विकल्प था । नमुचि द्वारा भूमि देने की स्वीकृति । शेष पनि विष्णुकुमार का विक्रिया सिद्धि से शरीर बढ़ानो व एक चरण उठा नमुचि का पैरों पड़ना # अप अप गधों की क्षमा याचना । विष्णुकुमार ने ध्रुपद पढ़ा श्री क्षण भर में दिव्य धारण कर लिया । दाहिना च मंदर पर्वत पर ५. 1. 2-88 स्थापित करने से समुद्र जल क्षुब्ध हो गया, इन्द्र आसन चलायमान गया हो। देवों को शान्त करने हेतु प्रेरित किया । तुम्बरु और नारद ने विद्याधरों पर अनुग्रह करके गंधर्वकला की ओर प्रेरित किया । उनकी स्तुति करके शांत कराया । Jain Education International " हे साधुत्रों में श्रेष्ठ ! आप शांति घरें । जिनेन्द्र भगवान् ने क्रोध का निषेध किया है। जो क्रोधशील हैं, उन्हें बहुत समय तक संसार में परिभ्रमण करना होता है ।" 1 कथाकोष ( श्री हरिषेण कृत) में कथा रूप व रूपान्तरण : कथाकोष में नमुचि के अतिरिक्त बृहस्पति, प्रह्लाद, और बलि आदि चार मंत्री उज्जैन के राजा श्रीधर के यहां थे । घटना नायक यहां नमुचि के स्थान पर बलि हो गया । मुनि श्रुतसागर से विवाद व पराजय पर रात्रि में तलवार से श्राक्रमण लोकपाल द्वारा स्तम्भन । प्रातः जनता व राजा द्वारा उस अपराध पर धिक्कारना व निन्दा कर, राज्य से निकाल देना । बलि आदि मंत्रियों का हस्तिनापुर पहुँचना । पड़ौसी राजा सिंहबल को पराजित करके राजा महापद्म से वर पाना। बाकी कथा वैसी । 192 उपसर्ग दूर करने ( मुनि पर माये संकट को ) मुनि बिष्णु कुमार का, सभास्थित बलि के पास वेद मंत्र उच्चारित करते पहुँचना व वृद्ध माता निमित्त तीन पग भूमि मांगना । उवसम साहुवरिया ! न हु कोवो वणिओ जिरिंगदेहि हुति हु कोवरण सीलिया, पावंति बहुरिरंग जाइयम्बाई । अन्त में कथा रूप में रूपान्तरण यों है कि भयविह्वल किन्नरो व खेटों का आकर पूजा अर्चना करना | शासन देवता द्वारा बलिको बांधना, For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 76 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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